पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५२४

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त्वक्सारभेदिनी त्विामीश त्वकसारभेदिनी-सधा स्त्री॰ [सं०] छोटा चेंध । गामी । २ पौधता करनेवाला। काम को जल्दी करनेवाला। स्वक्सारा-सदा श्री. [ से० ] बसलोचन । ३. फुर्तीला । तेज [को०)। त्वकसुगंध-सचा पुं० [सं० स्वासुगन्ध ] नारगी [को०] । त्वरि-सज्ञा ली० [सदे० 'स्वरा'। त्वकसुगंधा---सचा पुं० [सं०त्वसुगन्धा] १. एलुवा । २ छोटी त्वरित'-वि० [स.] वि० श्री त्वरिता । तेज। इलायची । त्वरित-क्रि० वि० शीघ्रता से। 10-त्वरित भारती ला, उतार त्वगंकुर-संज्ञा पुं० [सं० स्वपङ्क र ] रोमांच । लू। पद हगवु से मैं पखार लु।-साकेत, पु. ३१० । स्वग--सबा पुं० [सं०] 'स्वक्' का समासगत रूप [को० । त्वरितक--सज्ञा पुं० [40] सूथत के अनुसार एक प्रकार का स्वगामीरी-सथा श्री० [सं०] घसलोचद ।। चावल जिसे तूर्णक भी कहते हैं। त्वगेंद्रिय-सा खौ• [ सं० स्वगिन्द्रिय ] स्पर्शद्रिय [को०। त्वरितगति--प्रज्ञा पुं० [सं ] १. एक वर्णवत्त का नाम बिस प्रत्येक स्वग्गंध-सा पुं० [सं० त्वगन्ध ] नारणी का पेड़ । चरण में नगण, जाण, नगण और एक गुरु होता है । इसका त्वग्ज-सक्षा पुं० [१०] १ रोम ! रोमा। २ रक्त । लह। दूसरा नाम 'पमृता ति' मी है। जैसे,—निज नग लोजत हर त्वग्जल-सबा पुं० [सं०] पसीना [को०] । जू । पयसित लक्षमि वरजू । (शब्द) २. तेज पाल । त्वरिता-पज्ञा धी० [10] तत्र के अनुसार एफ देवी जिसकी पूजा स्वग्दोप-घका पुं० [सं०] कोढ़ । कुष्ट । युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिये की जाती है। त्वग्दोषापहासमा बी० [सं०] बकुधी। बावची। त्वग्दोषारि-सबा पुं० [सं०] हस्तिफद।। त्वलग-सज्ञा पुं० [ स० ] पानी का साँप । त्वग्दोषी-सहा पुं० [स. त्वदोषिन् ] कोढी। जिसे कुष्ट रोग हो। त्वष्टा-सा पुं० [सं० त्वष्ट्ट ] १. विश्वकर्मा विष्णपुराण के त्वम्भेद-सक्षा पुं० [स] चमडा काटना । चमडे को छीलकर अनुसार ये सूर्य के सात सारथियों में से एक हैं। २ महादेव । निकालना [को०] । शिव । ३ एक प्रजापति का नाम । ४ बढ़ई। ५. वृत्रासुर के पिता का नाम । ६. बारह पादियों में ग्यारहवें मादित्य स्व-सचा बी० [सं०] १. चमड़ा । २ छाल । वल्कन्न । ३ दारचीनी । ४ साप की केंचुली। ५ त्वक् इद्रिय । दे० 'स्व' । जो प्रख के अधिष्ठाता देवता माने जाते हैं। ७. एक वैदिक देवता जो पशुों मोर मनुष्यों के गर्भ में वीर्य का विभाग त्वच-सज्ञा पुं० [सं०] १ पारधीनी । २ तेजपत्ता। ३. करनेवाले माने जाते हैं। सूत्रधर नाम की वर्णसंकर जाति । छाल (को०)। ६ चित्रा नक्षत्र के प्रपिठाता देवता का नाम । स्वचन-सज्ञा पुं० [स.] १ खाल से ढाकना। २. खाल स्वष्टि-सा सी० [सं०] १. मनु के अनुसार एक सकर जाति । २. उतारना [को०] 1 बढ़ई का धंधा (को०)। त्वचा-सज्ञा स्त्री० [सं० ] त्वक् । धर्म । चमडा । त्वचापत्र-सहा पुं० [सं०] १ तेजपत्ता । २ दारचीनी। ३ त्वष्टर-सबा स० [सं० त्वष्ट ] दे॰ 'त्वष्टा' । उ.--हे त्वष्टर । इसका सतान दो ।---हिंदु० सभ्यता, पू० ८१।। छाल (को०)। त्वचिसार-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] बॉस । त्वाच-वि० [सं०] [वि० सी० त्वाची ] त्वचा से सबंधित [को०] वचिसगधा-सझा खो[ स० त्वचिसुगन्धा ] छोटी इलायची! स्वाष्टी-सहा स्त्री॰ [ मं० ] दुर्गा । त्वदीय--सर्व० [सं०] [ सौ• त्वदीया ] तुम्हारा। त्वष्ट्रा-सझा पुं० [सं०] १ स्वष्टा (विश्वकर्मा ) का बनाया त्वन्निासत-वि० [स० त्वत् +नि सृत] तुम से निकला मा 1 30-- हुमा हथियार, वध। २ वृत्रासुर का एक नाम ! ३ सूख चला है सचित त्वनि सूत नेह अमिय । -पवासि, चित्रा नक्षत्र। त्वाष्ट्री-सशास्त्री० [सं०] विश्वकर्मा की कन्या सज्ञा का एक नाम । त्वम्-सर्व० [स.] तुम [को०) । जो सूर्य को पाही थी मौर जिसके गर्भ से प्रश्विनीकुमार का या कि वि० [स शीघ्रतापूर्वक 1 वेग से कोमा जन्म हुमा था। २ चित्रा नक्षत्र । त्वरण-सज्ञा पुं० [सं०] २० 'त्वरा' (को०)। विटपति-पदा पुं० [सं०] सूर्य [को०] । त्वरणीय-वि० [स] जिसे शीघ्रता से किया जाय । जिसके करने विष-या स्त्री [0] १ तीन पायोलन । २ प्रचहता। ३ के लिये शीघ्रता की अपेक्षा हो [को०) । घबडाहट । परेशानी । ४ वाणी। ५ सौंदर्य । ६ प्रभा। त्वरटा-सज्ञा सी• [ स०] वेग । शीघ्रता [को०] । चमक [को०] । त्वरा--सज्ञा स्त्री [सं०] शीघ्रता । जल्दी। विधापति-सघा पु० [सं० स्विषाम्पति ] सुर्य [को॰] । त्वरारोह-सज्ञा पुं० [स० ] कबूतर [को०] । विपा-सज्ञा श्री० [सं०] प्रभा । दीप्ति । तेज | स्वरावान-वि० [सक स्वरावत् [वि० वी० वरावती] १. शीघ्र- त्वियामोश-सचा पुं० [सं०] १. सूर्य । २ माक का पेड़ ।