पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५२५

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थकना विषि-सही [सं०] १. किरण ! २. सक्ति (को०) ३ चमक । प्रभा (को०)। ४ भोज । तेज प्रताप (को०)। वेष-वि०स०] तेजस्वी बमकता हुपा। प्राभामय [को०] । तेय-वि० [सं०] डरावना । भयावना [को । सरु-सहा पुं० [सं०] १ तलवार का मूठ । २ सर्प । त्सरुमार्ग-सञ्चा पु० [सं०] तलवार को लडाई [को॰] । त्सारुक-सचा पुं० [सं.] वह जो तलवार चलाने में निपुण हो। थ-हिंदी वर्णमाला का सत्रहवा व्यजन वर्ण और तवर्ग का दूसरा थंभनी--सज्ञा स्त्री॰ [ स. स्तम्भनी ] योग में एक तत्व या धारणा। अक्षर । इसका उच्चारण स्थान दत है। योग को धारणामों में से प्रपन धारणा। ज०–पहिली। यंका-सका पुं० [?] बिलमुकता । घारणा थभनो, दूजी द्रावण होय । तीजी पहिनी जानिए यंर-मका पुं० [ देश०, सं० स्थण्डिल, प्रा० थडिल ] भूमि । स्पान । चौथि भ्रामिनी सोय ।-मष्टाग०,१०६ । प्रदेश । उ०-गुन गठि कवि पाए सु च । दिय अनंत यभा-सचा पुं० [सं० स्तम्भ ] दे० 'थवा' 30-जली भीत भीत द्रव्य वीजीठ थड 1-पृ० रा०, ६१। २४६७ । जल भीतर, पवन भवन का थमा री।-सत तुरसी०, यहा-वि० [हिं० ठढा ] शीतल । ठंढा । उ०—चित सूशिव जब पृ०२३४॥ मिल तब तनु थडा होय । 'तुका' मिलना जिन्हास ऐसा बिरला थीभत--वि० [सं० स्तम्भित ] १ रुका हुमा। ठहरा हमा। कोय । बक्खिनी०, पृ० १०६। पड़ा हुमा । २ मचल । स्थिर । ३. भय या पाश्चयं से घडिली -सका पुं० [सं० स्थएिडल, प्रा० थडिल ] यज्ञ की वेदी। निश्चल । ठक। यथा-समा० [ देश?] नुस्य (ताता येई इत्यादि)। उ०- मिनी-सधा स्त्री० [सं० स्तम्भिनी] योग की एक धारणा। उ०- मंधान करि चासे नही पढ़ि पढ़ि राखे प्रथ। थय करत पग यह येक मिनो एक द्राविणी एक सु दहिनी कहिए । पुनि परत नहिं कठिन प्रेम को पथ।-व्रजन, पृ०१४० । येक भ्रामिणी येक शोषणी सद्गुरु बिना न लहिप-सुदर. यंत्र--सबा पुं० [सं० स्तम्भ, प्रा० यम, थब ] १ स्वभा । स्तम। प्र०, भा० १. पृ०५२। १०-राजकुल कीति थव थिर।-कानन०, पृ०२। २ न थंभी-सभा सी० [सं० स्तम्भी, प्रा. थंभ, थव+ई(प्रत्य॰)] थ सहारा टेक । ३ राजपुतो का भेद । पार। सहारे का खभा । दे० 'पवी' । उ.-निकसि गह थमी ढहि परा मदिर, रलि गया चिक्कड गारा । सतवाणी, वन-सा पुं॰ [सं० स्तम्मन, प्रा० यवण ] सहारा । टेक । उ.- भा०२, पृ०८। धरती पवन उदित प्रकाशा। ता पर सूर करे परकासा । -धरम०, पृ० १७ । थभनाई-क्रि० भ० [सं० स्तम्भन ] दे० 'यमना'। यंदा-सा पुं० [सं० स्तम्भ, प्रा. थव 1 खभा। थव । यम । उ०- थंभवाना-क्रि० स० [हिं० यमना ] दे० 'चमवाना'। माटी की भीत पवन का थवा, गुन मौगुन से जाया।- थंभाना -क्रि० स०.[ सं० स्तम्भन ] दे० 'थमाना। दरिया. वानी, पु०६५। थ-सक्षा पु० [सं०] १ रक्षण । २ मगल। ३. भय । ४ पवंत । थपी-सी• [सं० स्तम्भी1१. खडी लकडी। २. पाट । सहारे ५. भयरक्षक । ६ एक व्याधि । ७ भक्षणा माहार। को रस्ली। यूनी। थ -सना ली. [हि ठीव, ठोई]१.ठावें। जगह। २ ढेर। यम-सचाई. सं. स्तम्भ, प्रा. थम खमा। उ०-जधन को अटाला। करली सम जाने। प्रयवा कनक थभ सम माने ।- थइलो-सचा ली. [ हिं.1 दे० 'थैली'। सूर (शन) थक-सञ्ज्ञा पुं० [सं० स्था] दे० 'या'। मनसभा सं. स्तम्भन 1१ रुकावट। ठहराव।२ तत्र के थकन-सा खी० [हि. थकना ] दे० 'पकान'। यह प्रयोगों में से एक। दे० 'स्तभन' । ३ वह पोपध जो थकना-कि० म. [ सं०/ स्तभ् वा/ स्था+करण</क, प्रा. शरीर से निकलनेवाली वस्तु (जैसे, मल, मूत्र, शुक्र इत्यादि) थक्कन अथवा देवा ] १ परिश्रम करते करते पोर परिश्रम को रोके रहे। के योग्य न रहना। मिहनत करते करते हार पाना । जैसे, यो०-बलयमन = वह मन्त्र प्रयोग जिसके द्वारा जल का प्रवाह चलते चलते या काम करते करते पक जाना। या बरसना मादि रोक दिया जाय । महिथभन घरती को संयो०क्रि.-जाना। स्पिर रखना। पृथ्वी को रोमना। पृथ्वी को यभाना या पहाना । उ०प्रमरित पय नित नहि वच्छ महियभन २. कव जाना। हैरान हो जाना । जैसे,—फहते कहते पक गए जावहि । हिंदुहिं मधुर न देहि कटुक तुरकहि न पियावहिं । पर वह नही मानता। -प्रकवरी०, पृ. ३३३ । सयोक्रि०-जाना।