पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५२७

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थप्पा माहि . यन+एला (प्रत्य॰) [स्त्री० यनेली] १. एक थपना-कि०.१. स्थापित होना। जमना। ठहरना। २. प्रकार का फोड़ा जो लियों के स्तन पर होता है। इसमें प्रतिष्ठित होना। सवन और पीड़ा होती है और पाव हो जाता है। २. गुव- थपना-क्रि० स० [मनु० थप यप] पोरे धीरे पीटना या ठोकना। रेसे की जाति का कीड़ा जिसके विषय में प्रसिद्ध है कि वह थपना-सशपु.१ पत्थर, लकड़ी मादि का प्रौजार या टुकड़ा गाय, भैस प्रादि के थन में डंक मार देता है जिससे दूध जिससे किसी वस्तु की पीटें। पिटना।२ यापी। सूच जाता है। थपरा-सा पुं० [ मनु० ] दे० 'पप्पड़। बनेत-सक ह. यान] १ गाँव का मुखिया। २. वह थपाना---फि.स.थपना ] स्थापित कराना। स्थित कराना। भी प्रारमी जो जमींदार की भोर से गांव का लगान वसूल करे । उ.--जगन्नाथ कह दीन्ह पपाई। तब हम पल पैदवारे माई। बनन--सबी• [हिं. थन+ऐल (प्रत्य॰)] वह जिसका थन -वीर सा०, पृ० १९२।। भारी हो (गाप मादि)। थपुत्रा-मशा पुं० [हिं० १पना (पीटना) ] छानन का वह बनेक्षा-स . हि. पन+ऐला ( प्रत्य॰)] दे० 'थनेला'। खपड़ा जो चौग, चौरस मोर चिपटा हो। मपति मामी के बनैनी-माकी.हि. थन+ऐली (प्रत्य॰)] दे० 'थनेला'। माकार का न हो जैसी कि नरिया होती है। पन्ना- पुं० [१. स्यान ] देथान'। उ०-देव काल सबोग विशेष-खपरैल में प्राय. यपुपा मोर नरिया दोनों का मेल होता त दिल्पी घर पन्नो। -पृ० १०, १। ७०२ । है। दो यपुमों के जोड़ के ऊपर नरिया गाँधी कर रखी यपकना-क्रि० स० [ मनु० यप थप] १. प्यार से या पाराम जाती है। पहुंचाने के लिये किसी के शरीर पर धीरे धीरे हाथ मारना । थपेटा-सा पुं० [पतु० ] दे॰ 'थपेड़ा'। हाय से पीरे धीरे ठोंकना । जैसे, सुलाने के लिये बच्चे को थपेड़ना-क्रि० स० [हिं०] थपेड़ा देना। पेड़ लगाना। यसकना। २ धीरे धीरे ठोंकना । जैसे, थापी से गप थपेड़ा-सा पुं० [ मनु० थप थप ] १ हथेली से पहुंचाया हमा पपकना। ३ पुचकारना या दम दिलासा देना। ४ किसी का पाघात । थप्पड । २ एक वस्तु पर दूसरी वस्तु के सरकार क्रोष ठढा करना । शात करना । देग से पड़ने का पापात । धक्का। टक्कर । वैसे, नदीपानी अपका-मका [हि. थपकना] दे० 'थपकी'। का पपेड़ा। उ.-थपकी देने लगी तरंगें मार पड़े।- बपकी- सीह यपना 1. किसी के शरीर पर (प्यार सात, पृ०४१३॥ - ण्टेचा लि! Eथेली से धीरे धीरे पहुँचाया क्रि० प्र०-लगना।-मारना। हुमा माघात । २. हाप से धीरे धीरे ठोंकने की क्रिया। थपोडी-सक्षा श्री० [अनु॰] दे० 'पपड़ी। कि०प्र०-देना। उ.--थपकी देने लगी घरगें मार थपेड़े।- थप्पा-सया पु०.[ मनु० ] थप् का सा शब्द । उ०-थप्प पप्प पन- साकेत, पृ.४१३1 --लगाना। वार कह सुनि रोमाधिम मग ।-कीदि०, पृ.। २ हाथ के झटके से पहुंचाया हुमा कड़ा प्राघात ! ३. जमीन को थप्पड़-सज्ञा पुं० [मनु० थप यप] १. हयेली से किया हमा पाघात । पीटकर चौरस करने की मंगरी। ४. यापी। ५ घोवियों तमाचा । झापट । चपेट । का मुगरा या रग जिससे वे धोते समय भारी कपड़ों को क्रि० प्र०-मारना। लगाना। पीटते है। मुहा०--चप्पड कसना, देना, लगाना-तमाचा मारना।झापड़ यपड़ी- श्रीमनु० थप थप] १ दोनो हथेलियो को एक दूसरे मारना। से जोर से टकराकर ध्वनि उत्पन्न करने की त्रिया । ताली। २. एक वस्तु पर दूसरी वस्तु के चार बार वेग से पढने का कि० प्र०-पीटना ।बजाना। माघात । धक्का। पैसे, पानी के हिलोर का पप्पड, हवा में मुहा०-पपड़ी पीटना या बजाना जोर जोर से हंसी करना। झोंक का यप्पड । ३ दाद या फुसियों का छत्ता पकता। उपहास करना । विस्तगी उडाना । थप्पण-वि० [सं० स्यापन, प्रा० थप्पण ] स्यापित करनेवासा । २. पाली बजने का शब्द । ३ वेसन भी पूरी जिसमे हींग, जीरा बसानेवाला। रक्षा करनेवाला। 30-~-साहा ऊयप यप्पणी, भोर नमक पड़ा रहता है। पह तरनाही पत्र/-रा०, रु.१.१०। पथपा-सा की० [ मनु० थप पप] दे० 'चपकी' । थप्पन-सपा पुं० [मे० स्थापन, प्रा० यमण] स्थापन । स्यापित चपन- ( [ सै० स्थापन 1 स्थापन । ठहराने या जमाने का करना। 30-नुपति को यप्पन उपप्पन समर्प ससात मुत काम । उ०-उथपे थपन पिर थपेउ थपनहार केसरीकुमार फरे करतूति चित्त चाह को ।-मति० प्र०, पृ. ३७२। बम अपनो समारिये । —तुलसी (शब्द०)। थप्परि-मुगा सो० [म० स्थापन, प्रा. पप्पण] न्यास। घरोहर । यो०-पपनहार स्थापित या प्रतिष्ठिन करनेवाला । उ.-राज सुनो घालुरू कहे है पपरि इह फप ! राति परी -क्र० स० [सं० स्थापन] १. स्थापित करना । बैठाना । जुध नहि करें प्राप्त करे फिर युद्ध।-पु. रा. ११४६१। माना । जमाना । २ प्रतिष्ठित करना। थापा-सा पुं० [ला०] एकप्रकार का बहार। यपना -क्रि० स० [सं० स्थापन