पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५३३

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थाम्ह २१८१ या। ४. सहारा देना । सहायता देना । मदद देना । सभालना । जैसे,- थाली-संक्षा सौ. [सं० स्याली ( बटलोई 1 कास या पंजाब के गेई ने याम लिया, नहीं तो प्रन्न के बिना बडा पीतल का गोल छिछला बरतन जिसमे खाने के लिये भोजन कष्ट होता। रखा जाता है। बड़ी तश्तरी। संयोकि०-लेना। महा०—पाली का बैगन = लाम मौर हानि देखकभी इस पक्ष, ५ किसी कार्य का भार ग्रहण करना । अपने ऊपर कार्य का कभी उस पक्ष में होनेवाला। मस्थिर सिद्वात का बिना दी भार लेना। जैसे,—जिस काम को तुम ने यामा है उसे पूरा का लोटा। 10---जबरखा होंगे उनकी न कहिए। यह पाली करो। ६ पहरे में करना। चौकसी में रखना। हिरासत के बैंगन हैं।—फिसाना०, भा० ३, पृ० १६ । थाली जोरमें करना। कटोरे के सहित पाली । पाली पोर कटोरे का जोडा। पाली थाम्हां-बापुं० [म० स्तम्म] १ भाषार । खमा। टेक । उ० फिरना = इतनी भीर होना कि यदि उसके बीच थाली फेंकी चाँद सूरज कियो तारा गगन मियो बनाय । पाम्द थूनी पाय तो वह ऊपर ही ऊपर फिरती रहे नीचे न गिरे । भारी बिना देखो, रखि लियो ठहराय । गव, मा० २, मीर होना । पाली बजना=साप का विष उठार का मत्र पृ० १०६। पढ़ा जाना जिसमें पाली बजाई जाती है। पाली जाना = थाम्हना-क्रि० स० [देश०] ३० 'पामना' । (१) साँप का विष उतारने के लिये याली बजाकर मंत्र थाय-तका पुं० [सं० स्पान, प्रा० ठाय] दे० 'स्थान' 1 उ.-धमकंत पढ़ना। (२) बच्चा होने पर उसका डर दूर करने के लिये परनि पहि सिर निझय। हलहलिय दिग्ग उहिम्ग पाय । थाली बजाने की रीति करना। २. नाच की एक गत जिसमें थोड़े से घेरे के बीच नाचना पुरधूरि पूरि जुट्टिन भमिति । दिसि व विसि राज पसरंत __ पड़ता है। कित्ति।-पृ० रा०,१।६२५ । थायी--वि० [सं० स्थायी] दे० 'स्पायी। यौ०-याली कटोरा नाच की एक गत जिसमें पाली पौर थारा' मा पुं० [ देश०] दे० 'थाल'। १० भावना यार परबंद का मेल होता है। हुसास के हायनि यौं हित मुरति हेरि उतारति-घनानद, थाव-सहा सो. [ देश ] दे० 'थाह'। पु. १४८ । थावर-संबापुं० [सं० स्थावर 1 दे० 'स्थावर। ०-नर पसु कोठ था -सया पु० [देश॰] ठोकर । प्राघात । उ०-हुयखुर पारन, पतग मैं थावर जगम मेव।-स• सप्तक, पृ० १७८ । छार फुट्टि गिरि समुद पक हुर।-५० रासो, ७४ । थाह-समा श्री० [सं० स्था] १. नदी, ताल, समुद्र इत्यादि के नीये धारा-सर्व० [हिं० तिहारा ] तुम्हारा । 3.-मनमेल्हूं पाणी को जमीन । जलाशय का तलभाग। धरती का वह तल विजुकहित (1) गोरी पारा जनम की बात ।-मी. रासो, जिसपर पानी हो। गहराई का मत । गहराई को हद । पु० ३४॥ वैसे,-जब चाह मिले तब तो लोटे का पता लगे। यारो—सा बी० [सं० स्थाली] दे. 'पाली'। क्रि० प्र०-पाना ।-मिलना । थारू-सक्षा पुं० [देश॰] एक जगली जाति जो नेपाल को तराई में मुहा०-थाह मिलना= जल के नीचे को जमीन तक पहप हो पाई जाती है। जाना। पानी में पैर टिकने के लिये जमीन मिल जाना। विशेष-यह पूर्व से पश्चिम तक बसी हुई है मौर अपने रीति डूबते को पाह मिलना-निराश्रय को माश्रय मिलना । सकट रिवाज, जादू टोना मादि सदिगत विश्वास से बंधी हुई है। में पड़े हुए मनुष्य को सहारा मिलना। इसे लोग पुरानी जनजाति मानते हैं मोर वर्णव्यवस्था में इनका स्याननाम शूद्र का रखते हैं। २. कम गहरा पानी । जैसे,-जही पाह है वहाँ तो हलकर पार याल-प्रशा पुं० [हिं० थाली] बडी थाली। कासे या पीतल का पड़ा कर सकते हैं। उ०-चरण धूते हो जमुना पाह हुई।पिछला बरतन । बल्लू (शब्द०)। ३ गहराई का पता । गहराई का प्रवाज । थाला-म० [सं० स्थल, हि० यल] १ वह घेरा या गड्ढा जिसके क्रि०प्र०-पाना ।-मिलना । भीतर पोषा लगाया जाता है। थावेला । पालवाल । २ मुहा०-याह लगना - गहराई का पता चलना । पाह लेनाकुडी जिसमे ताला लगाया जाता है ( लश.)।३ फोड़े का गहराई का पता लगाना। घेरा। फो की सूजन । प्रकाशोथ । ४. संवा पार। सोमा। हर परिमिति । जैसे,—उनके धन की थालिका- सश श्री. [ से० स्थालिका ] २० 'थाली'। 30---सोरह पाह नहीं है । ५. सख्या, परिमाण मादि का अनुमान । कोई सिंगार किए पीतम को ध्यान दिए, हाप किए मगलमय वस्तु कितनी या कहा तक है इसका पता । जैसे,—उनकी कनक यालिका-भारतेंदु ग्र०, मा० २, पृ० २६८ । बुद्धि की चाह इसी बात से मिल गई। थालिका'-.-सया [हिं० थाला] वृक्ष का पाला। मालवाल । कि प्र.-पाना ।—मिलना ।—लगना। उ०-पुरजन पूजोपहार सोमित ससि धवल धार मंजन मुहा०-थाह लेना-फाई वस्तु कितनी या कहाँ तक है इसकी भवमार भक्ति कल्प पालिका -तुलसी (शब्द०) जाँच करना।