पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५३४

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थाहना २१८२ थिराना ६. फिसी बात का पता जो प्राय गुप्त रोति से लगाया जाय । ठहरा हुमा । मचल । २ जो पंचल न हो। शात । पीर । २. अप्रत्यक्ष प्रयल से प्राप्त अनुसंधान । भेद । जैसे,—इस बात की जो एक ही अवस्था में रहै । स्थायी । दृढ़ । टिकाऊ । थाह लो कि वह कहा तक देने को तैयार हैं। धिरकु २-- सपा बी० [सं० स्थिरा] स्थिरा। पृथ्वी। उ.-थिर क्रि० प्र०-पाना ।-लेना। पूर हुपा कर सूर थके । छल पेख वृदारक व्योम छके।मुहा०-मन की थाह - प्रत करण के गुप्त मभिप्राय की जान रा० रु०, पृ० ३६ । फारी। चिर फी बात का पता। संकल्प या विचार का पता। थिरक-सचा पुं० [हि. थरकना 1 नृत्य में चरणो की चल उ.-कुटिल जनन के मनन की मिलति न कबहूँ थाह। गति । नाचने मे पैरों का हिलना डोलना या उठाना मौर गिराना। थाहना-क्रि० स० [हिं० थाह] १. पाह लेना । गहराई का पता थिरकना-कि०म० [सं० अस्थिर+करण 1. नाचने में पैरो का पलना । २. पंदाज लेना ! पता लगाना । क्षण क्षण पर उठाना और गिराना। नृत्य में अगसचालन थाहरा-वि० [हिं० थाह] १.छिछला। जो गहरा न हो। जिसमें फरना । जैसे, थिरक यिरककर नाचना। २. मग मटका जल पहरा न हो। उ०-खरखराइ जमुना गह्यो प्रति थाहरो कर नाचना । ठमक ठमककर नाचना । सुमाय । मानह हरि निष पांव ते दीनी ताहि दवाय ।- थिरकौहाँ- विहि . थिरकना+पोहा (प्रत्य॰)] थिरकनेवाला । सुकवि (शब्द०)। थिरकता हुमा। शिएटर--समपु० [.१ रगमूमि । रगशाला। २ नाटक का थिरकौहार-वि० [सं० स्थिर ] ठहरा हुमा । रुका हुमा । उ०-दृग पभिनय । नाटक का तमाशा । उ०-पलव, कमेटी, थिएटर थिरको मधखुलै देह कोहँ ढार । सुरत सुखित सी देखियति पौर होटलों में 1-प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ०७१। दुखित गरभ के भार ।-विहारी (शब्द॰) । विगली-सधा श्री० [हिं० टिकली] वह टुकडा जो किसी फटे हुए थिरचर-सहा पुं० [सं० स्थिर+चल] स्थावर और जंगम । 30 कपड़े या पौर किसी वस्तु का छेद वद करने के लिये टाका तान लेत चित की चोपन सौ मोहै वृदावन के थिर चर। या लगाया जाय । चकती। पेवद । -~~ नज० प्र०, पृ० १५१ । मि०प्र०-लगाना। थिरजीह -मक्षा पुं० [सं. स्थिरजिह्व] मछली । महाल----थिगली लगाना- ऐसी जगह पहुँचकर काम करना थिरता....सखा खी० [सं० स्थिरता ] १ ठहराव। प्रचलत्व । २ शि ..मक्षा सौ. . # मिधरना 1, na जहाँ पहुँचना बहुत कठिन हो। बोड तोड़ भिडाना। युक्ति स्थायित्व । मचचलता। ३. शांति । धीरता। लगाना । बादल मे थिगली लगाना = (१) अत्यत कठिन काम करना। (२) ऐसी बात कहना जिसका होना। थिरताईएसचा सी० [सं० स्थिर+ताति (वै. प्रत्य॰)] असभव हो। दे० 'पिरता'। थिव-वि० [सं० स्थित ] १ ठहरा हुमा। २ स्थापित ! रखा थिरथानी-सझा पु० [सं० स्थिर स्थान ] थिर स्थानवाले, हमा। 30-भए घरम में थित सब द्विजजन प्रजा काज निज लोकपाल मादि। उ०-सुकृत सुमन तिल मोद बासि विधि लागे।-भारतेंदु ग्र०, भा० १, पु० २७२ । जतन जत्र भरि कानी। सुख सनेह सब दियो दसरहिं खरि लेलेख यिरथानी ।—तुलसी (शब्द०)। थिति-समा स्त्री० [सं० स्थिति ] १ ठहराव। स्थायित्व । २. विश्राम करने या ठहरने का स्थान । ३ रहाइस। रहन । थिरथिरा--- ० दश०] एक प्रकार का वुलदुल जो बाडे के दिनों ४ बने रहने का भाव। रक्षा। उ०-ईश रजाइ सीस सब मे सारे भारतवप में दिखाई पड़ता है। हो । उतपति थिति, लय विपद् पमी के ।-तुलसी थिरना-कि०म० [ मं० स्थिर, हिं० थिर+ना(प्रत्य॰)] १ पानी (शब्द०)1५ भवस्था । दशा । या मोर किसी द्रव पदार्थ का हिलना डोलना बंद होना । थिविभाव-महा[सं० स्थिति भाव ] दे॰ 'स्थायी भाव'। हिलते डोलते या लहराते हुए जल का ठहर जाना। जल का क्षब्ध न रहना । २ जल के स्थिर होने के कारण उसमे थिबाऊ-वधा पु० [देश॰] दाहिने पग का फउक्ना प्रादि जिसे ठग घुली हुई वस्तु का तल में बैठना। पानी का हिलना, घूमना लोग प्रशुभ समभते है (ग)। प्रादि वद होने के कारण उसमे मिली हई चीज का पंव में थियेटर-सया पुं० [प.] १ वह मकान जहाँ नाटक अभिनय जाफर जमना। ३ मैल मादि नीचे बैठ जाने के कारण जल दिखाया जाता है। नाट्यशाला । नाटकघर । २. पिनय । का स्वच्छ हो जाना। ४ मैल, धूल, रेत मादि के नीचे नाटक । बैठ जाने के कारण साफ चीज का जल के ऊपर रह थियोसोफिस्ट-सा पुं०[म.] थियोसोफी के सिद्धात को माननेवाला। जाना । निथरना। थियोसोफी-सया प्रौ[4. ईश्वरीय ज्ञान जो किसी देवी पक्ति चिरा--अधा श्री . स्थिरा1 पुथ्वी। पयवा मरमा रामसे दुपा हो। चिराग-क्रि० स० [हिं० पिरना ]१ पानी पादि का हिपना थिर-वि० [सं. स्थिर] १. जो चलता या हिनठा डोलता न हो। डोलना बंद करना । क्षुब्ध जल को स्थिर होने देना । ३