पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५३७

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थेह थे। यनर--समपु. एक प्रकार का मोटा पौंडा या गन्ना जो मदरास में दूह के साकार का काला रंगा हमापिय जिसे पीने का तंश होता है। मदरासी पौंडा । देचनेवाले अपनी दुकानो पर चिह्न के लिये रखते है। वह थूना-सा पुं० [देश॰] मिट्टी का लोदा जिसमे परेता सोसकर मृत बोझ जो कपड़े में बंधी हुई राबके ऊपर सी निकासकर या रेशम फेरते हैं। वहाने के लिये रखा जाता है। ६. मिट्टी का सौदा जो बोझ के लिये ढेकली की गाड़ी लकडी के छोर पर पोपा जाता है। यूनि-सा स्त्री॰ [हिं० यून ] दे० 'थूनी'। यूनिया-सज्ञा स्त्री० [हिं० यून+इया (प्रत्य॰)] दे० 'युनो'। थूषा-सा स्त्री० [ मनु० थू थू ] युडी। पिक्कार का शब्द। उ.-चौदह पंद्रह सालवाले ल के पहाडा गोट चुके थे. छप्पर थूह-मश पुं० [ देथी] भवन का शिखर । मकान की ऊँची छत। की थूनिया पकड़े हुए वैठक कर रहे पे-काले०, पृ०३ । --देशी०, पृ० १६५। हड़-सा पुं० [सं० स्यूण ] दे० 'यूहर'। थूनी-सक्षा स्त्री० [सं० स्थूण] १ लकढी पादि का गहा हुमा कडा थहर-सहा पुं० [सं० स्यूण (-थूनी)] एक छोटा पेड जिसमे बल्ला । खंमा । स्तम । थम । २ वह खमा जो किसी बोझ को रोकने के लिये नीचे से लगाया जाय । चडि | सहारे का लचीली टहनियाँ नही होती, गांठों पर से गुल्ली या हरे के प्राकार के डंठल निकलते हैं। उ०-यूहरों से सटे हुए पैर खभा। उ०-चाँद सूरज फियो तारा, गगन लियो बनाय। मौर झाइ हरे, गौरज से धूम से जो खडे हैं किनारे पर ।याम्ह यूनी विना देखो, राख लियो ठहराय।-जग० श., प्राचार्य, पृ० १६८।। चा० २, पृ० १०६। विशेष-किसी जाति के थूहर में बहुत मोटे दल के लये पत्ते कि००-लगाना। होते हैं और किसी जाति में पत्ते बिलकुल नहीं होते। फोटे भी ३ वह गदी हई लकड़ी जिसमें रस्सी का फदा लगाकर मथानी किसी में होते हैं किसी मे नही । थूहर के उठलों पोर पत्तों में ___ का डडा पटकाते हैं। एक प्रकार का कड़पा दुध भरा रहता है । निकले हुए उठलों न्हो- सवा नौ [सं० स्यूण] दे॰ 'यूनी' । के सिरे पर पीले रंग के फूल लगते हैं जिनपर मावरणपत्र थवी-सघा खी० [देग०] सौप का विष दूर करने के लिये गरम लोहे या विउली नहीं होती। पु. भोर स्त्री० पुष्प अलग अलग से काटे हुए स्थान को वागने की युक्ति ।। होते हैं। थूहर कई प्रकार के होते है जैसे, कोटेवाला थूहर, थर'--सहा. [ देश० ] समूह। कोठी (वास की) 13०-प्रथिराज तिधारा थूहर, पोधारा यूहर, नागफनी, खुरासानी थूहर, प्रबोधिय घार पर हकि साह उपरि परिय । जाने कि पग्गि विलायती थूहर, इत्यादि। खुरासानी थूहर का दूष विला उद्यान वन बस थूर दव प्रज्जरिय।-पु. रा०, १३ | १४०। होता है। थूहर का दूध भौषध के काम में पाता है। थूहर के दूध में सानी हुई बापरे पाटे की गोली देने से पेट यूर'-सबा पुं० [सं० तुवर ] मरहर । तूर । तोर ! का पदं दूर होता है मौर पेट साफ हो जाता है। थूहर के थूरना क्रि० स० [सं० युवंग (= मारना)] १ फूटना । दूध में भिगोई हुई चने की दाल (माठ या दस दाने ) साने दलित करना। २ मारना । पीटना 1 उ.-धूरत करि रिस से पच्छा जुलाब होता है मोर गरमी का रोग दूर होता है। जयहि होति सतहर सम सुरत ! यूरत पर बल भूरि हृदय मह यूहर की राख से निकाला हुमा खार भी दवा के काम में पूरि गरूरत । गोपाल (शब्द०)। ३.ठूसना । स कर मे पाता है। काटेवाले यूहर के पत्तों का लोग प्रचार भी भरना। ४ खूब कस कर खाना । ठूस ठुस कर खाना। डालते हैं । थूहर का कोयला वारूद बनाने के काम मे माता थूरना-क्रि० स० [सं० शुट ] ३० तोडना'! है। वैधक में थूहर रेषक, तीवण, मग्निदीपक, कटु तथा शूल, थूल -वि० [सं० स्यूल] १ मोटा। भारी। २ भद्दा । उ0 गुल्म, मष्ठी, वायु, उन्माद, सूजन इत्यादि को दूर करनेवाला श्रवणादि वचनादि देवता मन न भादि, सूक्षम न थूल पुनि माना जाता है। धूहर को सेहर भी कहते हैं। एक ही न दोह हैं !-सु वर० प्र०, मा० १, पृ० ७६ । पर्या०-स्नुही। समतगुग्धा । नागढु। महावृक्षा । सुधा । वचा। थूला–वि० [सं० स्तूल ] [विकली यूलि, थूलो ] मोटा ताजा । शीहुँदा । सिडेंट । दहवृक्षक । स्नुक। स्नुषा । गुइ। गुस। उ.-करतार करे यहि कामिनि के कर फोमलता फलता कृष्णसार निस्लिशपत्रिका | नेत्रारि । फाडशाख । सिंहतु ट। सुनि के। सघु दीरघ पातरि धूलि तही सुसमाथि टरे सुनि के काडरोहक । मुनि के !-तोष ( शब्द०)। थूहा-सज्ञा पुं० [सं० स्तुप, यूव] १. ठूह । पटाला । २ टोला । थूनी-सक्षा श्री• [हिं. मूला ( - मोटा)] १ किसी अनाज का थूही-सका बी० [हिं० यूहा] १ मिट्टी की ढेरी । ह । २. मिट्रो के दला हमा मोटा कण। दलिया । २ सूजी । ३ पकाया हुमा सभे जिनपर गराको वा घिरनी को लकडी ठहराई जाती है। दलिया जो गाय को बच्चा जनने पर दिया जाता है। यथर-वि० [देश०] थका हुप्रा । पात । सुस्त । हैरान । युवा-सया पु० [सं० स्तूप, प्रा० यूप, यूब ] १ मिट्टी मादि के ढेर यौ-सर्व० बहु० [से स्वम्] तुन या पाप । उ०-ज्यू ये जाएउ त्य का बना हुमा टोला।दूह। २. गीली मिट्टी का पिडा या फरउ, राजा माइस दीघ । ढोला०, दु.।। लोंदा । ढोमा । भैली ! धोधा । ३ मिट्टी का इदा जो सरहद थेइ इषु-वि० [अनु॰] दे० 'येई येई'। 30-लाग मान पे येइ के निशान के लिये उठाया जाता है। सीमासुचक स्तूप । ४. करि उपटत घटत ताल मृदग गंभीर।--पूर० (चन्द०)।