पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५३८

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येई थेई थोड़ा थेई येई-वि० [मनु०] तालसूचक नृत्य का शब्द मौर मुद्रा । थिरक थैलीशाही-सक सी० [हिं० थैली + फ़ा० माही] पूजीवाद । थिरककर नाचने की मुद्रा मोर ताल । थोद-सद्या स्त्री० [सं० तुन्द ] दे तोंद'। उ०-थोद थलकि बर क्रि० प्र० करना। चाल, मनों मुदग मिलावनो।-नंद० प्र०, पृ. ३३४ ॥ कर-सा पुं० [हिं० टेफ, ठेप, थेष (= स्तभ, खंभा) ] (ला०) भाटिया-सहा की. [ हि. तोच का स्त्री. भल्पा ] दे० 'तोंद' । शरीररूपी स्तंभ। शरीर। उ०-सत कोटि तीरथ भूमि उ.-उज्ज्वल तन, योरी सी थोदिया, राते मबर सोहै।परिकरमा फरि नवावै थेक हो ।-कवीर सा०, पृ. ४११। नद० प्र०, पृ० ३४१ । थेगली-सक्षा बी० [हिं०] दे० 'थिगली'। उ०-पांच तत्त के गुदडी थो-क्रि० प्र० [हिं०] दे० 'या' । उ-का जाने तुम कहा बनाई। चौद सुरज दुइ पेगली लगाई। कबीर० श० लिख्यो थो जाको फल मैं पायो ।-नट०, पृ०२१। भा०२, १४०। थोक-सक्षा पुं० [सं० स्तो।क, प्र० घोवेंक, हि. थोक]१ढेर। थेघा-सज्ञा पुं॰ [ देश० ] सहारा। अवलवन । उ०-गगन गरज राशि । अटाला । २ समूह । मुड । जत्या । मेघा, उठए घरनि येषा। पंचसर हिय होल सालि ।विद्यापति, पृ. १३५॥ मुहा०-थोक करना = इकट्ठा करना। जमा करना । उ०-द्रुम थेटो-वि० [देशक] मारम का। असली। मुख्य । उ०-ममल भड चढ़ि काहे न टेरो कान्हा गैया दूरि गई। विहरत फिरत है माजरा थाहर जासी थेट ।-ौकी०प्र०, भा० १, पृ. ३४॥ सफल बन महिया एकह एक भई। छोडि खेल सब दुरि जात हैं बोले जो सके थोक कई।-सूर (शब्द॰) । योक की थेवा-सक्षा पुं० [देश॰] १ अंगूठी का नगीना। २ फिसी घातु का पोक-ढेर की ढेर। बहुत सी। उ.--वह यह भी जानते वह पत्र जिसपर मुहर खोदी जाती है। ३ अंगूठी का वह थे कि मेरी पोक की पोक डाक चिनी हाकखाने में जमा हो घर जिसमें नगीना जठा जाता है। रही है।--किन्नर०, पु. ५४ । थैचा-समा सन्ना पुं० [देश॰] खेत में मचान के ऊपर का एप्पर । थे 2-वि० [सं०] वाद्य का अनुकरणामक एक शब्द । दे० 'थेई घेई । ३ विक्री का इकट्ठा माल । इकट्ठा बेचने की चीज । खुदरा का उलटा। जैसे, हम योक के खरीदार हैं। ४ जमीन का थैरज -सधा पुं० [सं० स्थैर्य] कठोरता । स्थिरता । दृढ़ता । 10 ट्रकड़ा जो किसी एक प्रादमी का हिस्सा हो। चक । ५. एहरि तोहर थैरज जत से सब कहत धनि गेलि सून संकेता इकाही वस्तु । कुल । ६ वह स्थान जहाँ कई गांवो की सीमाए' रे।-विद्यापति, पृ. २६० । मिलती हो। वह जगह जहाँ कई सरहदें मिलें। थैला-सज्ञा पुं० [सं० स्थल (= कपडे का घर)] [श्री. अल्पा० थैली] थोकदार-सक्षा पुं० [हिं० थोक फ्रा. दार ] इकट्ठा माल बेचने१. कपडे टाट माधि को सीकर बनाया हमा पात्र जिसमें वाला व्यापारी। कोई वस्तु भरकर बद कर सके। बडा कोण । बढा वटुमा। थोड़ -वि० [सं० स्तोक ] दे० 'थोडा'। उ०-बहुल कोडि चढ़ा कीसा। कनिक थोध, घीव पेंचा दीप घोड। -कीर्ति० पू०६८। मुहा०-थैला करना मारकर ढेर कर देना। मारते मारते । ढीला कर देना। थोड़ा-वि० [सं० स्तोक, पा० यो+डा (प्रत्य॰)] [वि. २ रुपयों से भरा हुमा थैला । तोड़ा । उ-चोल्यो वनजारो दम स्त्री. थोडी] जो मात्रा या परिमाण में अधिक न हो। खोलि थैला दीजिए जू लीजिए जू प्राय ग्राम चरन पठाए हैं। न्यून । अल्प । कम । तनिक । जरा सा । जैसे,—(क) थोडे -प्रियादास ( शब्द.)। ३ पायजामे का वह भाग जो दिनों से वह बीमार हैं। (ख) मेरे पास अब बहुत थोडे रुपए जघे से घुटने तक होता है। रह गए हैं। यौ०-थोड़ा थोडा-कम कम । कुछ कुछ। थोडा बहुत % कुछ। थैली-सञ्ज्ञा खी० [हिं० थैला ] १ छोटा थैला। कोश। कोसा। कुछ कुछ। किसी कदर । जैसे,-थोडा बहुत रुपया उनके बटुपा । २ रुपयों से भरी हुई थैली। तोड़ा। पास जरूर है। महा०—थैली खोलना- थैली में से निकालकर रुपया देना। उ.-तब भानिय व्यौहरिया बोली। तुरत देउँ मैं थैली मुहा०-योग थोडा होना = लज्जित होना। सकुषित होना। खोली।-तुलसी (शब्द०)। हेठ पहना। शैलीदार-सपा हि थैली+फादार१ बह मादमी जो थोड़ा-क्रि० वि० मल्प परिमाण या मात्रा मे। जरा । तनिक । खजाने में रुपए उठाता है । २ तहवीलदार । रोकडिया । जैसे,-थोडा चलकर देख लो। थैलीपति-सका पुं० [हि. थैली+सं० पति पूजीपति । रुपएवाला ! मुहा०-थोडा ही नहीं। बिल्कुल नही। जैसे,---हम थोड़ा ही मालवार । 30-पालामेंट में शुद्ध थैलीपतियों का वहमत ___ जायेंगे, जो जाय उससे कहो। या।-माए ३० रू०, पृ. २६४ । विशेष-बोलचाल में इस मुहा० का प्रयोग ऐसी जगह होता है थैलीबरदारी-सचा स्त्री० [हिं० थैली+फा वरदार ] थैली उठाकर जही उस बात का खइन परता होता है जिसे समझकर पहुंचाने का काम । पैलियों की ढोमाई । दूसरा कोई बात कहता है। चक । ५. का हो। वह जालस्थान जहाँ