पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५४०

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२१८ - द्विधी वर्णमाला चारण स्थान कारण होता गल्छ । अम शीश पर गंगा ६-संस्कृत या हिंदी वर्णमाला में मठारहवा व्यजन जो तवर्ग का तीसरा वणं है। इसका उच्चारण स्थान दंतमूल है, दंतमूल में जिह्वा के अगले भाग के स्पर्श से इसका उच्चारण होता है। यह भल्पप्रोण है और इसमें सवार, नादौर घोप नामक बाह्य प्रयत्न हैं। दंग-वि० [फा०] विस्मित । चकित । माश्पर्यान्वित । स्तब्ध । हक्का बक्का। क्रि०प्र०-रह जाना । —होना। दंग-सा १ घबराहट । भय | डर । उ०-जब रथ साजि चढ़ी रण सम्मुख जीय न मानो दंग। राघव सेन समेत संघारों फरी रुधिरमय भंग।-सूर(शब्द०)।२ दे० 'दगा'। दंगा-सक्षा पुं० [ देश ] अग्निकरण । ३०-इक राह चाह लागी असुर निरसहाय प्राकार नव । मवरग प्रधी पर उलटियो, दंग प्रगट्यो जाण दव।-रा० स०, पृ०२० । दंगई-वि० [हिं० दंगा+ई (प्रत्य॰)] १ दगा करनेवाला। उपद्रवी लड़ाका । झगडालू। २ प्रचंड । उन। ३ दगली। बहुत लवा । लवा चौडा | मारी। दंगल-सज्ञा पुं० [फा०] १ मल्लों का युद्ध। पहलवानों की वह कुश्ती जो जोड़ बदकर हो मौर जिसमें जीतने वाले को इनाम मादि मिले । २ अखाड़ा । मल्लयुद्ध का स्थान । मुहा०-दगल में उतरना = कुश्ती लाने के लिये मखाड़े में माना। ३ जमावड़ा। समूह। समाज | दल ! उ०-सावन नित सतन के घर में, रति मति सिपवर में। नित वसत नित होरी मगल, जैसी बस्ती मोह जंगल, दल बादल से जिनके दगल पगे रटे की कर में। देवस्वामी (शब्द॰) । क्रि०प्र०-जमाना ।-वाधना । ४ वह मोटा गद्दा या तोशक | 10-(क) पहलकार हाय धोकर सामने बैठ जाते थे, वह दगल पर रहता था, खान! एक बडी सी कुरसी पर चुना जाता था। --शिवप्रसाद (शब्द-) । (ख) बावर्ची जब छुट्टो पाता हो किसी बडे दंगल पर पांव फैला कर लबा पड़ जाता । -शिवप्रसाद (पन्द०)। दंगली-वि० [फा० दंगल] १ युद्ध करनेवाला। लड़ाका । प्रलय कर । उ०-भूषन भनत तेरी खरगळ दंगली।-भूषण प्र०, पृ० ४५। २ दगल में कुश्ती लड़नेवाला । दगल जीतनेवाला। दंगवारा-सचा पुं० [हिं० दंगल+ वारा ] वह सहायता जो किसी गांव के किसान एक दूसरे को हल वैल पादि देकर देते हैं। जिता । हरसीत। कंगा-महा पुं० [फा० दगल] १ झगड़ा! बखेडा । उपद्रव । 30 खेलन लाग बालफन संगा। जब तब करिय सखन ते दगा।विधाम । (शब्द०)। क्रि०प्र०-करना ।होना । यौ०-दगा फसाद । २ गुल गपाडा । हुल्लड। शोर । गुल । उ.-शीश पर गंगा हसे भुजन भुजगा हूँ हाँस ही को दंगा भयो नंगा के विवाह मे।-पनाकर (शब्द०)। दंगाई-वि० [हिं. दगा] दे० 'दगई। दंगैव-वि० [हिं० दंगा+एत या यैत (प्रत्य॰)] १. दगा करने और_TH देगात वाला । उपद्रवी वागी । बसवाई। दंड--सबा पुं० [सं० दण्ड } १ डहा। सोटा । लाठी। विशेष-स्मृतियों में पाश्रम मोर वणं के अनुसार दर धारण करने की व्यवस्था है। उपनयन सस्कार के समय मेखला मादि साथ ब्रह्मचारी को दह मी धारण कराया जाता है। प्रत्येक वर्ण के ब्रह्मचारी के लिये भिन्न भिन्न प्रकार के दडों की व्यवस्था है। ब्राह्मण को बेल या पलाश का दर केशात तक ऊँचा, क्षत्रिय को बरगद या खैर का दड ललाट तक और वैश्य को गूनर या पलाश का दंड नाक तक ऊँचा धारण करना चाहिए। गृहस्थों के लिये मनु ने बस का डंडा या छडी रखने का मादेश दिया है। सन्यासियों में कुटीचक और बहूदा को त्रिदंड (तीन दंड), हंस को एक वेणुदड और परमहंस को भी एक दड धारण करना चाहिए। ऐसा निर्णयसिंधु में उल्लेख है। पर किसी किसी प्रथ में यह भी लिखा है कि पर"हस परम ज्ञान को पहुंचा हुपा होता है मत उसे दह मादि धारण करने की कोई मावश्य. कठा नहीं। राजा लोग शासन मौर प्रतापसूचक एक प्रकार का राजदर धारण करते थे। मुहा०--दह ग्रहण करना= सन्यास लेना! विरक्त या संन्यासी हो जाना। २ उडे के भाकार की कोई वस्तु । जैसे, भुजदंड, शुद्धादा, वैतसहंड, इक्षुदड इत्यादि । ३ एक प्रकार की कसरत जो हाथ पैर के पजों के बल पौंधे होकर की जाती है। क्रि० प्र०-करना 1-पेलना ।-मारना ।—लगाना । यो०-दडपेल । चक्रदर। ४. भूमि पर पौधे लेटकर किया हुमा प्रणाम । दहवत् । यौ०-दह प्रणाम । ५ एक प्रकार व्यूह। दे० 'दंडव्यूह। ६ किसी अपराध के प्रति कार में अपराधी को पहुंचाई हुई पीडा या हानि । कोई मूल चूक या बुरा काम करनेवाले के प्रति वह कठोर व्यवहार जो उसे ठीक करने या उसके द्वारा पहुँची हई हानि को पूरा कराने के लिये किया जाय। शासन और परिणोध की व्यवस्था । सजा । तदारुक। विशेष-राज्य चलाने के लिये साम दान, भेद पोर ड ये चार नीतियाँ शास्त्र में कही गई हैं। अपने देश में प्रजा के पाप्मन के लिये जिस दंडनीति का राजा मात्रय लेता है उसका विस्तृत