पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५४१

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२१८१ दंडकारण्य वर्णन स्मृति ग्रंथो मे है। ऐसे दंड को तीन श्रेणियों मानो गई दंडऋण--सबा पुं० [सं० दएड ऋण ] वह ण जो सरकारी हैं-उत्तम साहस (भारी दर, पैसे, वध, सर्वस्वहरण, देश- जुरमाना देने के लिये लिया गया हो। निकाला, अगच्छेद इत्यादि), मध्यम साहस मौर प्रथम दंडकंदक-सधा [सं० दएड कन्दक ] धरणी फंद । सेमर का मुसला। साहस । प्रग्निपुराण तथा पर्यशाल में अन्य देशो के प्रति दंडक-सधा पुं० [सं०एउक ] 1 इडा। २दा देनेवाला पुरुष । काम में लाई जानेवाली दरविधि का भी उल्लेख है जैसे, शासक । ३ छदो का एक वर्ग। वह छद जिसमें वणों की लुटना, भाग लगाना, भाघात पहुंचाना, वस्ती उजाड़ना संख्या २६ से अधिक हो। इत्यादि। -विशेष--दठक दो प्रकार का होता है, एक गणारमक, दूसरा ७ अर्थदह । वह धन जो अपराधी से किसी अपराध के कारण मुक्तक । गणात्मक वह है जिसमे गणों का वधन होता है पर्यात लिया जाय ! जुरमाना।ौड़। किस गण के उपरात फिर कोन सा गण माना चाहिए, इसका क्रि० प्र०, लगाना !-देना।—लेना। नियम होता है। जैसे, कुसुमस्तक, निमगी, नीलचक्र इत्यादि। उ०-(नीलचक)। जानि के समै भषाल, रामराज साल मुहा०-दंड डालना- (१) जुरमाना करना। प्रर्थदंड लगाना। साजि ता समै भकाज काज कैकई जु कौन । भूप तें हराय (२) कर लगाना । महसूल लगाना। दड पड़ना- हानि बैन राम सीय वधु युक्त बोलिक पठाय बेगि कान- सुदीन । होना । नुकसान होना । घाटा होना। वैसे,-घड़ी किसी काम की न निकली, उसका रुपया द8 पड़ा। दंड भरना=(१) -(शब्द०)। मुक्तक वह है जिसमें केवल पक्षरों की गिनती होती है अर्थात् पो गणों से बधन से मुक्त होता है। जुरमाना देना । (२) दुसरे के नुकसान को पूरा करना । दड किसी किसी मे कही कही लघु गुर का नियम होता है। भोगना या भुगताना = (१) सजा अपने ऊपर लेना। दह हिंदी काव्य में जो फक्षित ( मनहर) पौर घनाक्षरी सहना । (२) जान बूझकर व्यर्थ कष्ट उठाना। दंश सहना छद मधिक ग्यवहृत हुए हैं वे इसी मुक्तक के, प्रतर्गत हैं। नुकसान उठाना । घाटा सहना । उ.-( मनहर कवित्त)। पानंद के कद जग ज्यावन विशेष-स्मृतियों में मयंदद की भी तीन श्रेणियाँ है,-प्रथम जगतवद दशरथनद के निदाहेई निवहिए। कहै पद्माकर साहस ढाई सौ पण तक, मध्यम साहस पाच सौ पण तक पवित्र पन पालिवे को चौरे, चक्रपाणि के परिपन कों पहिए । और उत्तम साहस एक हजार पण तक। -पभाकर , पु. २३८।। ८ दमन । ग्रासन । वश । शमन । ४. इक्ष्वाकु राजा के पुत्र का नाम । विशेष-सन्यासियो के लिये तीन प्रकार के दड रखे गए हैं विशेष-ये शुक्राचार्य के शिष्य थे। इन्होंने एक बार गुरु की (१) वान्दर-वाणी को वश में रखना; (२) मनोदड-मन कन्या का कोमार्य भग किया। इसपर शुक्राचार्य ने शाप को चचल न होने देना, अधिकार में रखना मोर (३) देकर इन्हे इनके पुरके सहित भस्म कर दिया। इनका देश फायदंड-शरीर को कण्ट का मभ्यास कराना । सन्यासियों जगल हो गया मोर दडकारण्य कहलाने लगा। का श्रिदह इन्हीं तीन दही का सूरचक चिह्न है। ५. दंडकारण्य । ६ एक प्रकार का वातरोग जिसमे हाथ, पैर, ६ ध्वजा या पताका का वास। १० तराजू की रही। डॉदी। पीठ, कमर मादि मंग स्तब्ध होकर ऐंठ से जाते हैं। ७ शुद्ध ११. मयानी । १२. किसी वस्तु (जैरे, करछी, पम्मच मादि) राग का एक भेद । ८ हल में लगनेवाली पक लवी लकही। की बडी। १३ हल की लरी लकडी। हुल में लगनेवाली हरिस (को०)। लबी लकही। हरिस । १४ जहाज या नाव का मस्तूल । १५ दंडकर्म-सश [सं० दएहकर्मन् ] दंड देने का काम । दंद। एक योग का नाम। १६ लवाई की एक माप जो चार मजा कोना हाथ की होती थी। १७ हरिवंश पुराण के अनुसार इक्ष्वाकु ' दंडकल-सशा पुं० [सं० दण्डकल ] एक छद का दाम जिसमें तीस राजा सो पुत्रों में से एक जिनके नाम के कारण वंड मात्राएं होती हैं [को०। कारण्य नाम पहा ! वि० दे० 'दड-४ । १० कुबेर के एक पुत्र का नाम । १६ (दंड देनेवाला ) यम । २०. विष्णु । दंसकला-सा सी० [सं० दरडकला ] एक छद जिसमें १०, ८ पौर २१ शिव । २२ सेना। फौज । २३ पश्व । घोड़ा । २४. १४ के विराम से ३२ मात्राएं होती हैं। इसमें जगण न भाना चाहिए । जैसे-फल फूलनि ल्यावै, हरिहि सुनावै, है साठ पल का काल । चौवीस मिनट का समय । २५. वह प्रांगन जिसके पूर्व पोर उत्तर कोठरिया हो । २६ सूर्य का या लायक भोगन की। मह सब गुन पूरी, स्वादन रूरी, हरनि भनेकन रोगन की। एक पाश्र्वचर। सूर्य का एक अनुचर (को०)। २७ गई। घमंड । भमिमान (को०)। २८ वाच बचाने की एक प्रकार दंडका-सञ्चा खो० [सं० दण्डका ] दहक बन । दडकारण्य (को०] । की लारीको म ल को नाला मे AERT वंडकाक-सा पुं० [सं०दएडकाक ] काला और बड़े माकारवाला ३१ राजा के हाय का दह जो शासन का प्रतीक होता है कोपा । डोम कौमा (को॰] । (को०)। ३२. रोड । पतवार (को०)। दडकारण्य-सदा पुं० [सं० दएडकारण्य ] वद प्राचीन वन जो