पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५४३

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देपासक दंडाकरन दंडपाराकसमा पु- [स० दएहपाशक] 1. दा देनेवाला प्रधान कम- विशेष—पूरब में इस पान्द को पुल्मिग बोलते है पर दिल्ली को पारी। २ घातक । बल्लाद । मोर यह शब्द स्त्रीलिंग बोला जाता है। दंरपाशिक-संज्ञा पुं० [सं० दएरपाशिका पुलिस का अधिकारी। दंडवघ–सं पुं० [सं० दएडवप ] प्राणदंड । फोसी की सबा। उ.-पास, परमार, गहावास तथा प्रतिहार लेखों में पुलिस दंडवासी- पुं० [सं० दएडवांसिन् ] १.द्वारपाल । घरवान । १. अधिकारी के लिये दारिक, दडपाशिक या दंडशक्ति का प्रयोग गांव का हाकिम या मुखिया । किया गया है।-पू. म० भा०, पृ०११०। दंडवाही--संवा पुं० [सं० दएडवाहिन् ] राजा को मोर से नगररक्षा दंडप्रणाम--सज्ञा पुं० [सं० दण्डारणाम] भूमि में डढे के समान पड़कर विभाग का व्यक्ति । पुलिस का कर्मचारी []। प्रणाम करने की मुद्रा । दडवत् । सादर मभिवादन । दंडविकल्प- पु० [सं० दएडविकल्प ] निर्धारित दो प्रकार के क्रि० प्र०-करना। होना। दंड (जुरमाना या सजा) में से किसी एक को चुन लेने की छूट [को०]। दंडप्रनाम -संक पुं० [सं० दरम्प्रणाम 1 दे० 'दंरणाम। १०-दंडप्रनाम करत मुनि देखें। मुरतिमत भाग्य निष । दंडविधान-संपुं० [सं० एविधान 1 दे० 'दंरविधि ६ मेसे। मानस, २०२०५ । दंतविधि-संवा सौ. [सं० दण्डविधि अपराधों के दाड से सबंध रखनेवाला नियम या व्यवस्था । जुर्म मोर सजा का कानून । दंबालपि-पुमा ५० [सं० दएडवालघि ] हाथी । दंडविष्कंभ-सहा पुं० [ दएविष्कम्भ ] बह खंमा जिसमें दही दंडभंग-8 [सं० दरम्भनगासन या मादेश का उस्लपन। दूष ममने की रस्सी बांधी जाय ! दंडाशा का व्यवहार न होना [को०] । दंडवृक्ष-सका पुं० [सै० दएडवृक्ष ] थूहर । सेहर। दरमय-सं . [सं० दएड+भय] दंड या सजा कार । दंडव्यूह-संशा पुं० [सं० दण्डप्यूट] १. सेना को उसके पाकार की दंडमृत्'--वि० [सं० दएडभृत् ] डंडा रखनेवाला । उंहा पसाने या "स्थिति। घुमानेवाला। विशेष-इस म्यूह में भागे बलाध्यक्ष, बीच में राजा, पीछे दरमृत--संह पुं०१.कुम्हार । कुंमकार । २ यमराज (को०)। सेनापति, दोनों भोर से हापी, हाथियों को बगल में घोड़े मोर दंरमत्स्य–स . [सं०दएडमत्स्य ] एक प्रकार की मछली जो घोड़ों की बगल मे पैदल सिपाही रहते थे। मनुस्मृति में इस देखने में डंडे या साँप के साकार की होती हैं। बाम मछली। ब्यूह का उल्लेख है। मग्निपुराण में इसके सर्वतोवृत्ति, दंघमाणव-सबा पुं० [सं०दएडमारव] दे० 'दहमामव'। - ठियंग्वृत्ति प्रादि मनेक भेद बतलाए गए हैं। दंडमाथ-सशपुं० [सं० दएडमाप ] सीधा रास्ता । प्रधान पथ। २. कौटिल्य के अनुसार पक्ष, कक्ष तपा उरस्य में सेना की दंडमान -वि० [सं० दएड+हि. मान (प्रत्य॰)] दड पाने योग्य। समान स्पिति । सजा के लायक । दंडनीय । उ.-प्रदरमान दोन गर्व दंडमान दंडशास्त्र-मज्ञा पुं० [सं० दएर शास्त्र] दंर देने का विधान या मेदवै ।-केशव (शब्द)। कानून किो०] . दंडमानव संशा पुं० [सं० दरडमानव ] वह जिसे दंड देने की दंडसंधि-सा बो• [सं०दएहसन्धि ] कौटिल्य के अनुसार वह प्रषिक प्रावश्यकता पड़ती हो । बालक । लड़का। सधि जो सेना या लड़ाई का सामान लेकर की जाय। अपने से कम थक्ति या बलवाले राजा से धन लेकर की जानेवाली दंरमुख-संपु० [सं० वएडमुख सेनानायक । सेनापति को]। संषि। देशमदा-सहा श्री. [सं०दएडमुद्रा ] १ तंत्र की एक मुद्रा जिसमें दंशस्थान-सका पुं० [सं०दएजस्थान ] १. वह स्थान जहाँ दंड मुद्री बांधकर बीच की उंगली ऊपर को खड़ी करते हैं। २ पहुँचाया जा सकता है। साघुमों के दो चिह्न दंड पौर मुद्रा। विशेष-मनु ने दड के लिये दस स्थान बतलाए हैं-(१) उपस्थ, दंग्यात्रा--संबा खी० [सं० दएडयात्रा ] सेना की चढ़ाई। २ (२) उदर, (३) जिह्वा, (४) दोनों हाथ, (१) दोनों पैर, दिग्विजय के लिये प्रस्थान ! ३. वरयात्रा। बारात । (६) प्राँस, (७) नाक, (८) कान, (६) धन भौर (१०) दंडयाम–सक पु० [सं० दएडयाम] , यम । २. दिन । ३. देह । अपराध के अनुसार राजा नाक, कान मादि काट सकता अगस्त्य मुनि। है या धन हरण कर सकता है। दंडरी-सहा खौ० [सं० दएहरी] एक प्रकार की ककड़ी। उंगरी फल । २, कौटिल्य के मत से वह जनपद या राष्ट्र जिसका शासन केंद्र दंडवस्-सबा । स्त्री० [सं० दण्डवत् ] साष्टांग प्रणाम । पृथ्वी द्वारा होता हो। पर लेटकर किया हुमा नमस्कार। दंडहस्त--सन्हा . [ सं०दएहस्त] १ तार का फूल। २.वारदंडवत -मश पुं०, श्री. [सं० दण्डवत] ० दवत'। उ०—मनि रक्षक । द्वारपाल (को०) । ३ यमराज (को०) । कहं राम दंडवत कीन्हा । माविरवाद विप्र बर दीन्हा ।- दंडा-सा पुं० [सं० दएडक ] दे० 'डडा'। तुलसी (शब्द०)। दंडाकरन -सा पुं० [सै० दण्डकारण्य ] दे० 'यसकारण्य'।