पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५४४

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दंडाक्ष उ.-परे माइ बन परबत माहाँ । दंडाकरन वीम बन जाहाँ। खाना। ३ एक छद जिसे दंडकला भी कहते हैं। दे --जायसी (शब्द०)। 'दटकला। डाक्ष-सका पुं० [सं० दण्डाक्ष ] महाभारत के अनुसार चंपा नदी दंडालसिका-स० [सं० दएड+प्रलसिका] जा ! कालरा पोग। के किनारे का एक तीर्थ ।। दंडावतानक-सशा पु० [म० दएड + मतानक ] दे० 'ददापतानक' दंडाख्य-सा पुं० [सं० दण्डास्य ] वृहत्साहिता के अनुसार वह भवन जिसके दो पाश्वं में से एक उत्तर और दूसरा पूर्व की दडाहत-वि० [सं० दएडाहत ] डडे से मारा हुमा । मोर हो। दंडाइत-सका पुं० छाछ । महा। दंडाजिन-सा पुं० [सं० दण्डाजिन ]. साधु सन्यासियो क दंडिक-सहा . [ म० दएिटक ] १. नगररक्षा कर्मचारी। २. धारण करने का दइ पोर मृगचम । २. झूठमूठ का माईवर । दइधर । छको वरदार । ३ एक प्रकार का मरम्य [को०] धोखेबाजी का ढकोसला । कपटवेश । दंडिका-सपा मी० [सं० दरिडका ] १ बीस पक्षरों की एक दडादंडि-.-सहा पी० [सं० दण्डादएिड] इंडों की मारपीठ । धणेत्ति जिसपा प्रत्येक घर में एक रगए फे उपरांत एक लट्ठबाजी। लाठी की लडाई । जगण, इस प्रकार गणों का ओडा तीन बार पाता है और दंडाधिप-सचा पुं० [सं० दण्ड+ अधिप ] दह देने का प्रमुख मधि पत में गुरु लघु होता है। इसे वृत्त पोर गउका भी कहते कारी [को०] 1 है। जैसे,-रोज रोज राजगैन में लिए गुगान ग्वाल तीन दडाध्यक्ष-समा पु० [सं० दण्ड+मध्यक्ष ] दडाधिकारी । न्याया भात । वायु सेक्नायं प्रात वाग जात माव ले सुफूल पाठ । धीश । 30--दहाध्यक्ष या प्राचीन न्यायकरणिक का उल्लेख २ यष्टिका । छड़ी (को०)। ३ फतार । पक्ति (को०)। ४ नहीं मिलता-पू० म० भा०, पृ० १०८। रज्जु । डोरी (को०)। ५ मोठी की लर, हार यादि (को०)। दंडानीक-सझा पुं० [म० दएपनी सेना की टकसी या दंडित-वि• पुं० [सं० दरिडत] दड पाया हुपा। जिसे दह मिता विभाग [को०] हो। सजायाफ्ता। २. जिसका घासन किया गया हो। दडापतानफ-सक्षा पुं० [सं० दण्ड + प्रपतानक ] एक प्रकार फी शासित । 3.-परित गण मस्ति गुण दरित मनि देखिए। घातव्याधि जिसमे कफ पौर वात के विगने से मनुष्य का --केशव (शब्द०)। शरीर सूखे काठ की तरह जड़ हो जाता है। १०-देह को दंहिनी-मक्षा स्त्री॰ [सं० दक्दिनी] दहोरपला । एक प्रकार का साग । दड के समान तिरछा कर दे यह दशपतानक कष्ट साध्य है। दंडिमुंड-समा पु. ० दएिडमुए] शिव का एक नाम [को०)। माधव०, पृ० १३८ । दंडी- सं० दएिनन् ] वह धारण करनेवाला व्यक्ति । दडापूपन्याय--सघा पुं० [सं० दएड+अपूपन्याय ] एक प्रकार का २ मराज । ३ राजा । ४ द्वारपाल । ५. वह मन्यासी जो न्याय या दृष्टास कथन जिसके द्वारा यह सूचित किया जाता दड पौर कमहलु धारण करे। है कि जब किसी के द्वारा कोई पहुत कठिन कार्य हो विशेष-ग्राहाण के मतिरिक्त मौर किसी को दही होने का गया तब उसके साथ ही लगा हुमा सहज भौर सुखकर कार्य अधिकार नहीं है। यद्यपि पिता, माता, स्त्री, पुष भादि के अवश्य ही हुमा होगा। जैसे, यदि डडे में बंधा हमा अपूप रहते भी दड लेने का निपेष है, तथापि लोग ऐसा करते है। प्रति मालपूपाकही रखा हो पोर पीछे मालूम हो कि डडे मात्र देने के पहले गुरु शिष्य होनेवाले के सब सस्कार (पन्नफो चूहे खा गए तो यह अवश्य ही समझ लेना चाहिए कि प्राशन मादि) फिर से करते हैं। उसकी शिखा मूड दी जाती चूहे मालपुए फो पहले ही खा गए होंगे। है मौर जनेऊ उतारकर मस्म कर दिया जाता है। पहला दंडायमान--वि० [सं० घण्डायमान ] डहे की तरह सीधा खड़ा । नाम भी बदल दिया जाता है। इसके उपरात दशाक्षर मन खना। 30---यह कौतुक देखने के उपरांत विषणु महाराज देकर गुरु गेरुवा वल्ल मोर दंड कमहल देते हैं। इन सबको देवी की गुति करने को दडायमान हुए। है महामाया ! गुरु से प्राप्त कर शिष्य दडी हो जाता है पोर जीवनपर्यंत सच्चिदानदरूपिणी । मैं तुमको नमस्कार करता हूँ। कुछ नियमों का पालन करता है। दंडी लोग गेरुमा वस्त्र कवीर म०पू० २१४। पहनते हैं, सिर मुहाए रहते हैं और कभी कभी भस्म मौर क्रि० प्र०-होना। बद्राक्ष भी धारण करते हैं। दही लोग मग्नि और धातु का दंगार-सक्षा . [ सं दण्डार ] १ धनुष । २ मदगल हादी। ३. स्पर्श नहीं करते, इससे अपने हाथ से रसोई नहीं बना सकते। किसी ग्राहमण के घर से पका भोजन मागकर खा सकते हैं। नाव । ४ स्यदन । २५ । ५ नुम्हार का चाक (को०] । दहियों ने लिये दो वार भोजन करने का निपेष है। इन दंडाई-महापु० [सं० पएडाह ] दड देने योग्य । दडमागी। दंड सब नियमो का चारह वर्ष तक पालन करके पत में दरको पाने योग्य [को०] 1 जल मे फेंककर दडी परमहस पाश्रम को प्राप्त करता है। दंघालय-सहा पु० [ स० दण्डालय ] १ न्यायालय वहाँ से दड का दडियों के लिये निर्गुण ब्रह्म की उपासना की व्यवस्था है। विधान हो । २. वह स्थान जहां वह दिया जाय । जैसे, जेव दिनसे यह उपासना न हो सक वे शिव भादि की उपासना