पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५४८

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इंदर २१६५ देश पेट उसपर सांप की लपेट। विधन करत है चपेट पकड फेट फाल की!-दक्खिनी, पु० ४५ । -सहा पुं० [सं० दम्पती ] दे० 'दपति' । उ०-छांदत ना पल एको अकेले, न पौढ़त हैं परजक पै दंपत |--ट, दंपत इंद-सहा पुं० [सं० द्वन्द प्रा० दद ] १. लड़ाई झगठा। उपद्रव । हलचल । २ युद्ध । संघर्ष । सग्राम । उ.-पाज हनो जैचंद दद ज्यों मिटै ततषिन ।-पु. रा०६१।१४६ । ३. हल्ला गुल्ला। शोरगुल । ४ दुख । मानसिक उथल पुथल । १०-(फ) • रोहिनि माता उदर प्रगट भए हरन भक्त के दद।-भारतेंदु ग्र०, भा॰ २, पृ० ५१३ । (ख) रयागढ़ ससय जम कर दवा। सुझि परहि तव भवजल फवा ।-दरिया० बानी, ५०३ । क्रि०प्र०-~मचाना। दंदना@+-सा पुं० [सं० द्वन्तु 1 दे.'द'। 30-फूले पशु पछी सब, देखि ताप कटे तब, फूले सघ ग्वाल बाल कटे दुख दवना --नद० प्र०, पृ० ३७६ । दंदन-वि० [० दमन] नाश करनेवाला। दूर करनेवाला। दमन करनेवाला । दंदश-सदा पुं० [सं० दन्दश] दात । दत को। दंदशक'-.-सद्धा पुं० [सं० दन्दणूक ] १ सपं । २ राक्षस विशेष । ३ कोट । फोहा (को०)। ४ एक प्रकार का नरक । दंदशक-वि० हिंसक । काटनेवाला [को०)। दंदहर-वि० [सं० द्वन्द्वहर ] द्वद्व को दूर करनेवाला। मानसिक याति पहुँचानेवाला । उ०-परसति मद सुगंध ददहर विपिन REET विपिन मैं ।-रत्नाकर, भा० १, पृ०६। दंदह्यमान--वि० [ सं० दन्दह्यमान ] दहकता हुमा। दंदा-सा पुं० [ देश० ] ताल देने का एक प्रकार का पुराना बाजा। दान--सहा . [ फ्रा. ] दांत [को०] । यौ•-ददानसाज- दतचिकित्सक । दाँत बनानेवाला। दाना-कि०म० [हिं० दद ] १ गरम लगना। गरमी पहुँचाता हमा मालूम होना । जैसे, रूई का ददाना, बद कोठरी का दंदाना । २ किसी गरम चीज के मासपास होने से गरम होना । जैसे, रजाई या कंबल के नीचे ददाना। दंदाना-सा पुं० [फा० ददानह ] [ वि० ददानेदार ] दौत के पाकार की उभरी हुई वस्तुमो की पक्ति । शकु या फंगूरे के रूप में निकली हुई चीजो की कतार, देसी घी या मारे मादि में होती है। दंदानेदार-वि० [फा० ] जिसमें दंघाने हों। जिसमें दांत की तरह निकले हुए कगूरो की पक्ति हो । दंदारू-सधा पुं० [हिं• दव+मारू ( प्रत्य० )] छाला । फफोला । दंदी-वि० [सं० द्वन्द्वी, हिं० दद] झगडालु । उपद्रवी। बखेडा करने, वाला । हुज्जती। उ०-कलिजुग मधे जुग चारि रचीला चूफिला चार विधार । घरि घरि ददी घरि घरि बादी परि घरि कथाहार ।--गोरख०, पृ० १२३।। दंदु- पु [सं० द्वन्द ] दे० 'द'। उ०-अप हो कठ फाद गिव चीन्हा । ददु के फांद पाहु का कीन्हा ।-जायसी न (गुप्त), पृ.१७०। पंटुला-वि० [सं० तुन्दिल ] दे॰ 'दिल'। २०-विद्याभरी ददुल दंपति --सुद्धा ० सं० दम्पती दे० 'दपतो'। दंपती--सधा पुं० [स० दम्पत्ती ] स्त्री पुरुष का जोड़ा। पति पली का जोड़ा। दंपा-सक्षा स्त्री० [हिं० दमफना ] बिजली। उ.-चोयते चकोर पहँ पोर जानि च मुखी जो न होती डरनि दसन दुति दपा की।-पूरवी (चन्द०)। दंभ-सला H० दम्भ ] वि० दंभी] १ महत्व दिखाने या प्रयोजन सिद्ध करने के लिये झूठा प्राडबर । घोखे में डालने के लिये ऊपरी विवादका पाखह । उ.--मासन मार दंभ पर बैठे मन मे बहुत गुमाना ।-कवीर मं०, पृ० ३३८ १२ झूठी ठसक । अभिमान । पमड । ३ शठता । शाठ्य (को०)। ४ पिव का एक नाम (को०)। ५ इद्र का वन (को०)। दंभक--सबा पुं० [सं० दम्भक ] पाखही। ढकोसलेवाज । प्रतारक । दंभन-सधा पुं० [सं० दम्मन] पाखड करना। दोंग करना [को० । द दंभान -सज्ञा पुं० [सं० दम्भ का बहुव.] दे० 'दम'। दंभी-वि० [सं० दम्भिन्] १. पाखंठो। पाडंबर रचनेवाला। ढकोसलेवाज । २ झूठो उसकवाला । मभिमानी । घमही। दंभोलि-राचा पुं० [सं० दम्मीलि] इद्रास्त्र । वच। उ०--मत्त मातग बल अग दमोलि दल काछिनी लाल गजमाल सोहै । सूर (शब्द॰) । दश-~~-सहा पुं० [सं०] १. वह घाव जो दाँत काटने से हुपा हो। ५ दतक्षत। २ दाँत काटने की क्रिया । दशन । ३. साप या मौर किसी विषैले जतु के काटने का घाव । जैसे, सर्पदश । ४ पाक्षेपवचन । बौछार । व्यंग्य । कटुक्ति । ५. द्वेष । वैर । मि०प्र० रखना। ६. पात । ७ विले जतुषों का डक । ६. जोड । सघि । प्रथि (को०)। ६. एक प्रकार की मक्खी जिसके टक विषैले होते हैं । डोस । बगदर । उ०—मसक दश बीते हिम पासा । तुलसी (शब्द०)। पर्या०-वनमक्षिका। गौमक्षिका। भमरालिका। पाशुर । दुष्टमुख । र । १० वम् । बकतर । ११ एक असुर । विशेष-इसकी कथा महाभारत में इस प्रकार लिखी है-- सत्ययुग मे दंश नामक एक बड़ा प्रतापी प्रसुर रहता था। एक दिन वह भृगु मुनि की पत्नी को हर ले गया । इसपर भृगु ने उसे शाप दिया कि 'तू मल मन का कीड़ा हो जा' । शाप से डरकर जब मसुर बहुत गिड़गिड़ाने लगा तब भृगु ने कहा-'मेरे वश मे जो राम ( परशुराम ) होगे वे शाप से तुझे मुक्त करेंगे'। वह मसुर शाप के पनुसार फीट हुमा ।