पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५५

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जमीनदोज जमौभा बदों का एक मौजार जिससे वे घोडों के नाल काटते हैं । २. मुहा०-जमीन बदलना प्राधार का परिवतन होना। स्थिति का बदल जाना। जैसे,-प्रद जमीन ही बदल गई।- चिमटी । संडसी। . प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० १४० । जमीन बाँधना= किसी कार्य जमुर्दी-वि० [अ० जमुरंदीन, हि० जमुरंदी] १. दे० 'जमुरंदो'। रेबिये पहले से प्रयाली विश्चित करना। उ.-जमुर्दी जरी के काम ।-प्रेमघन०, मा० २, पृ० २६ । जमीनदोज-वि० [फा० उमीक्दोज १ धरतीयोबीचे या जा रंद-सफा पुं० [अ० ] [ 10 ] पन्ना नामक रल । भीतर । भूमिका । उ०-पौर वय जमीनदोज किले बनने जमर्रदी-वि० [प्र. जमुरदोन ] जमुरंद के रग का हरा । जो सगे।मा० इ० ७०, पृ० १४१ । २ दे० 'जमीदोज' । मोर की गर्दन की तरह नीलापन लिए हुए हरे रंग का हो । जमीनी-वि० [फा० जमीनी ] जमीन सवधी । जमीन का। जमरदी-सा पुं० जमुरंद का रग। नीलापन लिए हुए हरा रग । जमीमा-सचा पं० [अ० जमीमह १ क्रोडपत्र । अतिरिक्त पत्र । जमा-- शाह जमुमा जामुनी । जामुन का रग। २ पूरक । परिशिष्ट [को०)। जमुहाना-10 प० [सं० जुम्भण ] दे० 'अम्हाना' ।। जमीयत-संज्ञा स्त्री० [प्र. जमुईयत ] मोष्ठी। दल । परिषद । जमरक -सका पुं० [फा० जवूरक ] एक प्रकार की छोटी तोप जमामत । समुदाय । उ०-प्रत्येक सरदार के अपनी जमीयत जो घोड़े या ऊँट पर रहती है। उ०-सबके माम सुतर के साथ प्रतिवर्ष सीन महीने तक दरवार की सेवा में उपस्थित सवार मपार सिंगार बनाए । धरे जमुरक तिन पीठन पर रहने की जो रीति चलो पा रही है वह जारी रखी जायगी। सहित निशान सुहाये ।-रघुराज ( शन्द०)। -राज. इति०, पृ० १०४६ । जमरा--सशा पुं० [ फा० बूरफ, हिं० अमूरफ ] ३० 'जमुरक' । जमीर-पक्ष पुं० [अ० जमोर ] १ प्रत करण। हृदय । मन । जमू -सण पुं० [म. जहा+फा० मुहह, ] दे० 'बहर- २ विवेक । ३ (ध्या०) सर्वनाम [को०)। मोहरा' । २०-जुगति जमूरा पाइ कै, सर पे लपटाना । जिप यौ०--जमीरफरोश -मात्मविक्रेठा । मवसरवादी। वा के वेधे नही, गुरु गम्म समाना ।-कवीर० श० मा० ३, जमील- वि० [म. ] [वि॰ स्त्री० जमीला ] रूपवान । सुबर । पु० १४। हसीन [को०] । जमैयत-सहा सी० [अ० जमईयत ] १ दल । समुदाय । २ जमुमा -सहा पुं० [ स० जम्बूक ] दे० 'जामुन' । सभा । गोष्ठी । परिषद [को०)। जमुआ-सा पुं० [सं० यम, हिं० जम+उमा (पत्य), अथवा हिं. यो०-जमेयतुल उलेमा विद्वानों की समा या गोष्ठी। बमना (-पैदा होना) ] एक प्रकार का घातक बालरोग। जमोगा-सपा पुं० [हिं० जमोगना ] १ जमोगने पर्यात स्वीकार जम्यारी-सक्षा पुं० [हिं० जमुमा+मार (प्रत्य॰)] जामुन फा फराने की क्रिया । सरेख । २ किसी दूसरे की बात का किसी जगल । तीसरे के द्वारा समर्थन । सामने का निश्चय । तसदीक । ३. जमुकना-क्रि० प्र० [१] पास पास होना । सटना । न.-जब देहाती लेनदेन की एक रीति जिसके अनुसार कोई जमींदार जमुक्यो कर पृथु तनप, तब तरग तह छोड़ि। भयो पुरदर किसी महाजन से ऋण लेने के समय उसके चुकाने का भार उस मलख रर, सक्यो न सन्मुस दोहि । -रघुराज (शब्द०)। महाजन के सामने अपने काश्तकारों पर छोड़ देता है और अमुन-सहा स्त्री० [हिं० जमुना ] ६० 'यमुना' । उ०-(क) काश्तकारों से लगान के मद्धे उसका स्वीकार करा देता है। उत्तरि नहाए जमुन जल जो सरीर सम स्याम ।-मानस, यौ०-सही जमोग। २११०१ (ख) मनु ससि भरि मनुराग जमुन जस लोटत जमोगदार-सभा पुं० [म. जमा+सं० योग] वह व्यक्ति जो गेल ।-भारतेंदु म, भा०१, पू. ४५५ ।। जमोग की रीति से जमीदार को रुपया देता है।। जमना-भला स्त्री० [सं० यमुना, प्रा० जमुणा, गणॉ] यमुना जमोगना-फि० स० [अ० जमा + सं० योग ] १. हिसाब कितार नदी। वि० दे० 'यमुना'। की जांच करना । २ च्या को मूल धन मे जोहना । ३ स्वय जमनिका-शा स्त्री० [सं० यवनिका ] दे० 'यवनिका उ०--- किसी उत्तरदायित्व से मुक्त होने के लिये किसी दूसरे को जाप्रत स्वप्न सू जमुनिका सुषुपति भई पिटार सुदर । बाजीगर उसका भार सौपना पौर उससे उस उत्तरदायित्व को स्वीकृत जुदौ खेल दिखावन हार।-सु दर० प्र०, भा०२, पृ० ७८५ । कराना। सरेखना। ४ किसी को किसी दूसरे के पास ले जाकर जमनियाँ -सहा ई० [हिं० जामुन+ईया (प्रत्य॰)] १. चामुन का उससे अपनी बात का समर्थन कराना । तसदीक कराना । रग । जामुनी । २ जामुन का वृक्ष । ३ यम का भय । यमपाश जमोगवाना-क्रि० स० [हिं० जमोगना ] जमोगने का काम (लाक्ष०) । २०-जमुनियों की डार मोरी तोड देव हो । किसी दूसरे से कराना । सरेखपाना । -घरम० श०, पृ० २६। जमोगा-सचा पुं० [ हि जमोगना ] ६० 'जमोगा'। जमुनियाँ'-वि० प्रामुम के रन का । जामुनी रग का । यौ०-सही जमोगा। जमुरका-सहा पुं० [फा० जवूर ] कुलाया। जमीया-वि० [हिं० जमाना ] जमाया हमा। जमाकर बनाया जमुरी-सपा सी [फा० जदूर] १ चिमटी के माकार का नाल- कुमा।