पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५६

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१६३१ जमा --संशा पुं० [सं० यम ] दे० 'यम'। यो०-जम्मराजा-यमगज । उ-मनौ जीय पापीन को जम्मराजा रियो दर सोई सबै घूम घोर्ट |हम्मीर०, पृ०५ जम्म -सस सं० जन्म, प्रा० जम्म जन्म 1 उत्पत्ति । जम्मण@f-ससा . [सं० जन्मन, प्रा० अम्मण ] उत्पत्ति । जन्म 1 पैदास। 30-तन माहि मनूपा जो ठहिरावै । जम्मण मरण मिश्त पर दोजप ताये निपट न पावै ।---- पारण०,०६० जम्मना-कि० [हिं०] उत्पन्न होना। पैदा होना । जम्मै मरेन विनसे सोछ।-प्राग०, पृ०२१ जम्मभूमि -संया स्त्री० [सं० जन्म, प्रा० जम्म+म० भूमि] दे० 'जन्मभूमि'। उ०-पन्नयिम जम्मभूमि को मोह घोहिप, घमि छोटिप ---कोति०, पू० २२ । जम्मू-मक्ष पुं० [सं०पम्मू काश्मीर का एक प्रसिद्ध नगर । जन्न । जम्हाई-संडा श्री. ह. 'माई। जम्हाना-कि प० [हिं०] ३० "जमाना' 1 30-बार धार झपि पारा म्हात, लगा, नीक ताकी चौपनि मन न पाए हो। समानंद०, पृ० ४८८ जम्हर---डा पुं० [म.] बनता। जनसमूह । उ.-कर उसकी बुर्गी घरे जम्हर के प्रागे ।-फपीर मं०, पृ० ४६६ । जयंत-वि० [सं० जपन्त वि०सी०जयती] १.विजयो। २ बहरूपिया ! अनेक रूप धारण करनेवाला । जयंत-सा पुं०१ एक रुद्र का नाम । २६द्र के पुत्र उपेंद्र का जाम । ३ संगीत मे ध्रुवक जाति में एक साल का नाग। ४ स्कद। कातिकेप । ५ धर्म के एक पुत्र का नाम । ६ मकर फैपिता का माम। ७ भीमसेन फा उस समय का धनायटी नाम जब वै विगट नरेश के यहाँ पज्ञातवास फरते थे। ८. शरप फै एफ मत्री का माम। ६ एक पर्वतमा माम । जयतिका छी पछादो। १० नो अनुपर देवों का एक भेद। ११. फलित ज्योतिष में यात्रा का एम योग। विशेष-पद पोग उस समय पष्टता है जय परमा उच्च होकर यात्री की राशि में ग्यारहवें स्थान में पहुंच जाता है। इसरा विचार पहुधा युदादि के लिये यात्रा करने के समय होता है, पयोंकि इस योम मा फल पशुपक्ष का नाश। जयंतपुर --- महा पु० [सं० पपरतपुर ] एक प्राचीन नार का नाम जिमे मिमिराज ने स्थापित किया था पोर जो गौतम ऋषि पाश्रम के निकट पा। जयंतिका-संहा की० [म. जपन्तिवा ] . 'जयतो'। जयंती-मंबा की जयन्ती] १ विनय करनेवाली। विज- पिनो । २, ध्वजा । पसाता।३ हलदी। ४. दुर्गा का एक नाम । ५ पायंती पर एक नाम । ६. किसी महात्मा की जन्मतिपि पर होने याना उसव । यगार पाउरसद । ७ एक सापेर जिसे जैव या जेता कहते हैं। चिशेप- पेटकी डासिमां बहुत पतली और पतिया अगस्त की पत्तियों की तरह की, पर उनसे कुछ छोटी होती है। फूट प्रहरी तरह पीसे होते हैं। पूमा पे भर पाने पर पिसे सया वित्त सबी पतली फलिया मगती है। फनियों के पीज उत्तेजक पौर संपोषक होते है पौर दस्त की धीमारियों में पोपच के रूप में काम में पाते हैं। साजका मरहम भी इससे पनता है । इसकी पत्तियां फोरें या सूचन पर पापी जाती है पौर गिलटियों को गसाने का काम करती है। इसकी जा पीसकर विषय के काटने पर सगाई जाती है। यह बंगमी भी होता है और मोग इसे लगाते भी है। इसका बीज जेठ प्रसाद में योया जाता है। इससी एम छोटी जाति होती है, जिसे बभेद' कहते हैं। इसके रेशे ऐ जान बनता है। बंगाल में इसे लोग अप्रैल, मई में होते हैं और गियर, धमटुपर में काटते । पौषा सन की तरह पानी में राहाया पाता है। पाग भोग पर भी पह पेड़ गाया धाता। जंसी का पौधा । योतिपदा एक पोस। पर भाषण मास कृष्णपक्ष की मामी को पापी रात रामय पौर पदंड में रोहिणी नक्षत्र पदे, तप यध योग होता है। ११ को छोटे पौधे चिन्हें विजयादमी + दिन ब्राह्मण बोम पजमानों को मपल द्रव्य के रूप में भेंट करते हैं। नई। पर। १२ परणी। . जय---संहा पुं० [ 10 ] १. युद्ध, विवाद पानि में विपक्षियों का परा- पव। विरोपियों को दमन करके स्वत्य या महत्व स्पापन । जीत । विशेष-सस्कृत में जय पाद पुलिंग है किंतु 'नीठ, विजय' पयं में हिंदी में इसका प्रयोग स्त्रीमिंग में ही मिरता है। क्रि० प्र० करना।-होना ।। मुहा०-जप मनाना-विजय की कामना करना। समृद्धि चाहना । जय हो-माशीर्वाद जो याहारण सोग प्रणाम के उत्तर में देते हैं। विशेष-पाशीद के अतिरिक्त इस शद का प्रयोग यशामों की प्रमिवंदना मूपित करने के लिये भी होनापौर जिग कुछ पापमा पा नाय मिना रहता है। मो, जप पारी पी, शमपर बीड़ी चय। उ पजप अगामि देवि, सुरनर मुनि प्रगुर व्य, मुक्ति मुनि दापिनी जय हाधि फामिफा ।-तुलसी (प.)। चौ०-जय मोपाम! जय श्रीमत। जय गम, मादि (पभिवादन २ ज्योतिष के अनुसार पहम्पति के प्रोष्टपद नामर पर पुगका सौरारा पर्ष। पिशेष-पासित ज्योतिष के अनुमार इस गा में रहा पानी परगता है और दात्रिय, वैश्य सादिया पीटा होती है। ६ विमा के एक पाद नाम । विशेष-पुराणों में लिखा है कि सनकादिर में भगवान पास जाने से रोकने पर रोष कर इसे पोर इसके भाई