पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५५०

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दक्सिन' बल्कि किसी पद के अंत में षोडने से होता है। वैसे, सुखद दईमारा--वि० [हिं० दई+मारना] [वि.नी. दईमारी1 ईपवर (सुख देनेवाला), जलद ( जल देनेवाला, बादल ) प्रादि। का मारा हुमा। जिसपर ईश्वर का कोप हो। प्रभागा। मदभाग्य । फमबस्त। उ०-फीहा"फीहा करी या पपीहा द'--सहा ० [सं०] 1 पर्वत । पहाड़। २ दान । ३ दाता । दईमारे को।--श्रीपति (शब्द०)। द-संधली १ मा । कपत्र । स्त्री। २. रक्षा ! ३ खन। -सज्ञा पुं॰ [सं०देव ] दे० 'देव'। उ०-हए लिए बुलि दइ दईमारोg+-वि० [हिं०] दे० 'ईमारा। भमरि करुनाकर माहा दर मार की भेल ।-विद्यापति, उढा-वि० [सं० मधि+मर्ष ] दे० 'डेढ़' । ४०-दउढ़ वरस री मारुवी, बिह वरसारित कृत। उपरउ जोवन बहि गयउ, दहा -प्रज्ञा पुं० [सं० [व] दे० 'देव' । १०-माह दाम में फाह हूं फिउँ जोवनवट !- ढोला०, दु. ४५० । नसावा । करत नीक फलु मन इस पावा।-मानस, २२१६३। दुरना-कि.म० [हिं० दौड़ना] दे० 'दौड़ना। दइ -सा पुं० [सं० देव] दे० 'देव'। उ०-धीरज धरति सगुन दुसरा-सहा पुं० [हिं०] दे० 'दौरा'। चल रहत सो माहिन । बर किसोर धनु घोर दान नहिं दक-सा' पु० [सं०] जल । पानी। दाहिन । -तुचसी प्र०प० ५४ । दकन--पणा पुं० [सं० दक्षिण, फा० दकन] दक्षिण भारत । देश का दइजरी - वि० [हिं०] २० 'दईवारी'। दक्षिणी भाग । २. दक्षिण दिक् । दविखन । दइजाई-सका पुं० [सं० राय ] दे० 'दायजा'। कार-संज्ञा पुं० [सं०] तवर्ग का तीसरा प्रक्षर '६' । दइव--संशा [.दत्य 1 दिति का पुत्र । दे० 'दैत्य' । उ०- माल_ममा Eिnशिता दकागेल-संघा पुं० [सं०] वृहत्साहिता अनुसार भूमि के नीचे जल marr नगर पजुध्या रामहि राजा । खैहैं दइव वाष सव साजा। का ज्ञान करानेवाली एक विद्या । वि० दे० 'दगार्गल' [को०] ! फवीर सा०, पृ.८०४।। दकियानूस-सहा पुं० [यू. से अ० दक्यामूस] रोम देश का एक दइमारा-वि० [हिं॰] [वि० स्लो. दहमारी] दे० 'ईमारा'। उ. पत्याचारी सम्राट् जो सन् ३४६ ई० मे सिंहासन पर बैठा था। (क) दुप दही नहिं लेवरी कहि कहि पचिहारी। कहति सूर कोऊ घर नाहीं कहाँ गई दइमारी।-सूर (शब्द०)। (ख) दकियानूसी-वि० [अ० दक्यानुसी] १ दकियानूस के समय का । मास्नु घरन हिस दुप मजारी । मो परि उचरि घरी इमारी। पुराना । २ बहुत ही पुराना । कढिप्रस्त । पर्जर। निकम्मा। -नद० प्र०, पृ. १४८ । उ०-हम पाप क्या पुरातन दफियानुसी पुष्टि का परिचय देकर या प्रति प्रगतिवाद का बहाना करके इस जागरण का दइया-शा पुं० [स. देव ] दे० 'दैव' (स्त्रियों की बोलचाल मे स्वागत न करेंगे ?-फूकुम (भू०), पृ०११। पाश्चर्य एव खेद मादि का व्यजक)। उ०-भोर के पाए दोक भइया। कोनों नहिन लेक दइया ।-नव० प्र०, दकीक-वि० [अ० दकीक मुश्किल । कठिन । गूढ़ । उ०-दिस्या पू०२५५ । सख्त मुश्किल मकै दकीक । या पानी का वा इक घपमा प्रमीक ।-दक्खिनी०, पृ. ३४५ । दइवा-सपा पुं० [सं० देव, प्रा. दइव] दे॰ 'देव'। ८०-वेरि एक दइव दहिन जनो होए, निरधन धन जके घरव मोनें गोए। दकीका-सशा गुं० [भ. दकीकह] 1 कोई बारीक वात। २ युक्ति । विद्यापति, पृ० ३५४ । उपाय। दई-संज्ञा पुं० [स० दव] १ ईश्वर । विधाता। ०-गई फरि मुहा०-कोई दकीका बाकी न रहना कोई उपाय बाकी न बाह दई के निहोरे ।-दास (शब्द०)। रखना । सब उपाय कर चुकना । जैसे,--मुझे नुकसान पहुंचाने यो०-धईमारा। में तुमने कोई दकीका वाकी नहीं रखा। मुद्दा०-ईका घाणा- पिवर का मारा हुमा । प्रभागा। फम ३ क्षण । जहा। वस्तु । उ0-जननी कहति, दई की थाली । काहे को इत दुक्काक---वि० [प. दलकाक] १. कूटनेवाला। पीसनेवाला। महीन राती।-सूर (प.) । दई का मारा= दे० 'ईमाराई करनेवाला । १ गूढ़ या सूक्ष्म पातों को कहनेवाला। दईहे देवा हे देवी रक्षा के लिये ईश्वर की पुकार | उ.- दक्खणा-कि०म० दक्षिण, प्रा० पविखण] दक्षिण दिशा में स्थित (क) दई दई पालनी पुकारा।-सुषसी (पाद०)। (ख) दक्षिणी -मोढी भोरंग साहनउर निस दिवस पधीर। दीरघ सांस न हि पुन, सुख साईहि न भूल। दई दई क्यों सन लग्गी दवजण मुलक, सरक न सके सरीर-रा० रू०, फरत है, दई दई सो कवून ।-विहारी (शब्द०)। पृ० १६६ २ देव स योग । पट । प्रारम्य । दक्खिन-सा पुं० [सं० दक्षिण, प्रा. दविस्तरण] [वि. दक्खिनी] दईजार, दुईजारी-वि० [हिं०] [वि.ली. दईजारी ] प्रमागा। १. वह दिशा जो सूर्य की ओर मुह करके खड़े होने से दाहिने दईमारा। (स्त्रिया)। हाथ की पोर पड़ती है। उत्तर के सामने की दिशा । जैसे,दर्दव -सभा पुं० [सं० दैत्य] दे. दैत्य' । उ.-कीन्हे सि राइस भूत जिधर तुम्हारा पैर है वह दक्खिन है। परीता। कीन्हेसि मोकग देव दईता ।—जायसी (पान्द०)। विशेष-यद्यपि सस्कृत 'दक्षिण' शब्द विशेषण है पर हिंदी , सर (मनाला काहे को इत. दुक्का-वि