पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५५१

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दक्खिन २१५ दक्षसावर्णि सन्द दक्खिन विशेपण के रूप में नहीं आता। दक्खिन प्रोर, दक्ष को सोलह कन्याएं उत्पन्न हई-थवा, मैत्री, दया, ति दक्खिन दिशा मादि वार्यो मे भी पविखन विशेषण नही है। तुष्टि, पुष्टि, क्रिपा, उन्नति, बुद्धि, मेघा, मुति, तितिक्षा, हो, २, दक्षिण दिशा में पानेवाला प्रदेश। ३. भारतवर्ष का वह स्वाहा, स्वधा मोर सठी। दक्ष ने इन्हे ब्रह्मा के मानसपुत्रों भाग. जो दक्षिण की पोर है। विध्य पौर नर्मदा के प्रागे में चोट दिया। द्रको वक्ष की सती नाम की कन्या प्राप्त का देश। हुई। एक बार दक्ष ने अश्वमेघ यज्ञ किया जिसमें उन्होंने दक्खिन-क्रि० वि० दक्खिन को मोर । दक्षिण दिशा में। जैसे अपने सारे जामातामों को बुलाया पर रुद्रको नहीं बुलाया। उनका गाँव यहां से पक्खिन पड़ता है। सती विना बुलाए ही अपने पिता का यश देखने गई। वहीं पिता से अपमानित होने पर उन्होंने अपना परीर स्याग दिया। दक्खिनी'-नि० [हिं० पक्खिन ] ! दक्खिन का। जो दक्षिण इसपर महादेव ने क्रुद्ध होकर दक्ष का यश विध्वस कर दिया - विशा में हो। जैसे, नदीका दक्खिनी किनारा । २. पो मौर दक्ष-को शाप दिया कि तुम मनुष्य होकर ध्रुव के वश दक्षिण के देश का हो। वक्षिण देश में उत्पन्न । दक्षिण में जन्म लोगे। प्रवके वशज प्रचेतागण ने पर घोर तपस्या देव सबंधी । जैसे, बक्खिनी मादमी, दक्खिती बोली, दक्खिनी की तब उन्हें प्रजासृष्टि करने का दर मिला और उन्होंने - सुपारी. दमिखनी मि। कचकन्या मारिषा के गर्भ से दक्ष को उत्पन्न किया। दक्ष ने दक्खिनी-संशा दक्षिण देश का निवासी। पतुर्विध मानस सृष्टि की । पर जब मानस सृष्टि से प्रजापुद्धि दक्खिनी:-सज्ञा ली. दक्षिण देश की भाषा। न हुई तब उन्होंने वीरण प्रजापति की कन्या प्रसिक्नी को दक्ष'-वि० [सं०] १ जिसमें किसी काम को चटपट सुगमतापूर्वक प्रहण किया और उससे सहन पुत्र और बहुत सी कन्याएँ करने की शक्ति हो। निपुण ) कुशल । चतुर । होशियार । उत्पन्न की। उन्ही कन्यामों से कश्यप पादि ने सृष्टि पलाई। बसे,-दह सितार बजाने में बहा पक्ष है। २. दक्षिण। भौर पुराणों में भी इसी प्रकार की कथा कुछ हेर फेर से दाहना । 3.--(क) वक्ष दिसि रुचिर वारी कन्या। साय है। -तुलसी (शब्द.)। (ख) माग अनुराग सहित २. मनि ऋषि । ३. महेश्वर । ४. शिव का वैल । ५. ताम्रपूड़। पदिरा अधिक ललिताई। तुलसी (शब्द०)।३ साधु । मुरगा। ६ एक राजा को उशीनर के पुत्र थे। ७. विष्णु । सच्चा । ईमानवार । सत्यवक्ता (को०)। ८ बल 18 बीयं । १० पग्नि (को०)। १ नायक का एक दक्ष-संवा ०१. एक प्रजापति का नाम जिनसे देवता उत्पन्न हुए। भेद जो सभी प्रेयसियों में समान भाव रखता हो (को०)। १२. शक्ति। योग्यता। उपयुक्तता (को०)। १३. छोटा या दुरा विशेष-ऋग्वेद मे दक्ष प्रजापति का नाम माया है और कहीं स्वभाव (को०)। कहीं ज्योतिष्कगण के पिता कहकर उनकी स्तुति की गई है। . दक्ष प्रविति पिता थे, इससे वे देवतामों के मादिपुरुष कहे पक्ष दक्षकन्या-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सती। वि० दे० 'क्ष'। २. जाते हैं। जहां ऋग्वेद में सृष्टि की उत्पत्ति का यह क्रम • पश्विनी मादि तारा। बतलाया गया है कि पब से पहले ग्रह्मणस्पति ने कर्मकार की दतक्रतुध्वंसी-ज्ञा पुं० [सं० दक्षतुम्वसिन्] १ महादेव । २. तरह कार्य किया, पसद में पद उत्पन्न पा, उत्तानपद से मू महादेव के पास से उत्पन्न वीरभद्र जिन्होंने पक्ष का यह मौर मू से विशाएँ हुई, वही यह भी लिखा है कि 'पदिति से विध्वंस किया था। रक्ष जन्मे और दक्ष से प्रदिति षन्मी'। इस विलक्षण वाक्य के क्षजा-संज्ञा स्त्री० [सं०] दे॰ 'दक्षकन्या' । सबष मे निशक्त में लिखा है कि 'या तो दोनों ने समान जन्मन यौ०-दक्षजापति = (१) शिव । महेश्वर । (२) चंद्रमा [को०] । साम किया, अथवा देवधर्मानुसार दोनों की एक दुसरे से उत्पत्ति वक्षण-वि० [सं० दक्षिण] दे० 'दक्षिण'। 10-पक्षण प्रयन सु और प्रकृति हुई। शतपथ ब्राह्मण मे दक्ष को सृष्टिका सुरत ऋतु, उपजे गए न नरक ।-ह. रासो, ५.३० । पासक पौर पोषक कहा गया है। हरिव में दक्ष को दक्षतनया-सज्ञा क्षी० [सं०] दे० 'दक्षकन्या' [को०)। विष्णुस्वरूप कहा गया है। महाभारत और पुराणों में जो दक्षता-संघबी[सं०] निपुणता योग्यता । कमाल । दक्ष के यज्ञ की कथा है उसका वर्णन वैदिक इयों मे नहीं मिलता, हो, रुद्र प्रभाव के प्रसग में कुछ उसका मामास दक्षदिशा--समबी• [सं०] दक्षिण शिक्षा । सा मिक्षता है। मत्स्यपुराण में लिखा है कि पहले मानस दतन -वि० [सं० दक्षिण ] दाहिना । दाहिनी भोर का। 80सृष्टि हुमा करती थी। दक्ष ने जब देखा कि भानस द्वारा मेढ़ ह ऊपर वक्षन पाव पानिए ।-सुदर० प्र०, भा० १, प्रबार ही होती है तब उन्होने मैयुन हारा सृष्टि का पु०४२। माय बताया। नायन -वि० [सं० ] १. 'दक्षिलायन' 13-मारे पसराण में दक्ष की कथा इस प्रकार है-ब्रह्मा ने सृष्टि स्मानामत हु, मारे उत्तरायन है, भादै देह सर्प सिंह बिजुली कामना से धर्म, मनु, मृषु तमा सनकादिको माला लव - र.., मा० २, पू.६४२ । केप सत्वन्न किमा। चिराने मंजूठे से दक्षको दिवा-सा [6] प्रकार का गीत । लाईसपलो को उत्पनाच पी समा-- गायनाम ।