पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५५२

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दामुन १२०० दक्षिणावह दक्षसुत-सका. [सं०] देवता । मुर। दक्षिणाग्नि-सहा श्री० [सं० दक्षिण+मग्नि ] यज्ञ मे गाईपत्यागि दक्षसता-संवा बी. [सं०वक्ष+सुता] दे० 'दक्षकन्या' (को०)। से दक्षिण पोर स्थापित पग्नि । दक्षांड-सका पुं० [सं० दक्षाएड ] मुरगी का पंग [को०] । दक्षिणाप्र-वि० [सं०] जिसका पगला परा धक्षिण की ओर हो दक्षा-वि०बी० [सं०] कुचला । निपुरखा। __दक्षिणाभिमुख [को०] । दक्षा-सा श्री. १. पृथ्वी। २ गगा का एक नाम (को०)। दक्षिणाचल-शा ० [सं०] मलयगिरि पर्वत । मलयाचल । दक्षाय्य-सका पु० [सं०] १. वैवतेय । मरु, । २ पीष । गृद्ध [को०)। दक्षिणाचार-सपा पुं० [सं०] १. सदाचार। शुद्ध भो उत्तम माचरण। २ तात्रिकों में एक प्रकार का माथा दक्षिण'-वि० [सं०] १ दहना । वाहवा। बायाँ का रखटा। पर विसमें अपने भापको शिव मानकर पचतत्व से शिव के सव्य । २. इस प्रकार प्रवृत्त जिससे किसी का कार्य सिद्ध पूजा की जाती है। यह माघार वामाचार से श्रेष्ठ भी हो। अनुकुल। ३ साधु । ईमानदार । सच्चा (को०)। ४. प्राय वैदिक माना जाता है। उस पोर का जिधर सूर्य की भोर मुंह करके खड़े होने से दाहिना हाथ पढे । उत्तर का उलटा। दक्षिणाचारी-सवा पुं० [सं०] दक्षिणापारिन] १. विशुद्धाचारी यौ०-दक्षिणापथ । दक्षिणायन । धर्मशील । सदाचारी । २ वह तांत्रिक जो दक्षिणाचार दीक्षित हो। ५ निपुण । दक्ष । चतुर । दक्षिणापथ-सज्ञा पुं० [सं०] विध्यपवत के दक्षिण भोर का वह प्रदे। दक्षिण-सहा ०१ दविक्षन की दिशा । उत्तर के सामने की दिशा। जहाँ से दक्षिण भारत के लिये रास्ते जाते हैं। २.काम्य या साहित्य मे वह नायक जिसका मनुराम अपनी सब नायिकामों पर समान हो। ३ प्रदक्षिण। ४ तत्रोक्त दक्षिणापरा-सका बी० [सं०] नैऋत कोण । एक मापार या मार्ग दक्षिणाप्रवण-सक्षा पुं० [सं०] वह स्थान जो उत्तर की अपेक्षा विशेष--कुलार्णव तत्र में लिखा है कि सबसे उत्तम तो वेदमार्ग दक्षिण की पोर प्रषिक नीचा या ढालुमा हो। है, वेद से पग्छा वैष्णव मार्ग है, वैष्णव से अच्छा थैव मार्ग विशेष-मनु के अनुसार श्राद्ध आदि के लिये ऐसा ही स्था है, शैव । पछा दक्षिण मार्ग है, यक्षिण से पाछा वाम मार्ग उपयुक्त होता है। है और वाम मार्ग से भी मच्छा सिवांत मार्ग है। दक्षिणामर्ति--सहा पुं० [सं०] स्त्र के अनुसार शिव की एक मूर्ति । ५, विष्णु । ६ शिव का एक नाम (को०)। ७ दाहिना हाथ या दक्षिणाभिमुख-वि० [सं०] दक्षिण की मोर मुह किए हए। जिसमें पावं (को०)। दे० 'दक्षिणाग्नि' । रथ के दाहिनी मोर मुख दक्षिण दिशा की भोर हो। फा पश्व (को०)। १० दक्षिण का प्रदेश (को०)। . दक्षिणायन'-वि० [सं०] दक्षिण की पोर । ममध्यरेखा से दक्षिा दक्षिणकालिका- श्री[ सं०] १. तंत्रसार के अनुसार तांत्रिकों की पोर । जैसे, दक्षिणायन सूर्य । की एक देवी । २ दुर्गा [को०] । दक्षिणायन-सक्षा पुं० १. सूर्य की कर्क रेखा से दक्षिण मकर रेख दक्षिणगोल-सक्षा पुं० [सं०] विपुवत् रेखा से दक्षिण पढ़नेवाली की ओर गति । २. वह छह महीने का समय जिसमें सूर्य का राशियां, जो यह है-तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम रेखा से चलकर बराबर दक्षिण की पोर बढ़ता रहता है। पौर मीन। विशेष-सूर्य २१ जून को कर्क रेखा प्रति उत्तरीय प्रयनसीम दक्षिणपपन-सका ३० [सं० ] मलयपवन । मलयानिल । पर पहुंचता है पोर फिर वहाँ से दक्षिण की पोर बढ़ दक्षिण मार्ग-छा पुं० [सं०] १. एक प्रकार की सात्रिक साधना। लगता है भोर प्रायः २२ दिसबर छक' दक्षिणी प्रयन सीम २. पितृयान [को०] | मकर रेखा तक पहुंच जाता है। पुराणानुसार जिस सम दक्षिणस्थ- पुं० [सं०] स्यवाह । रथ हाँफनेवाला [को०] । सूर्य दक्षिणायन हो उस समय फुगा, तालाब, मदिर मार्ग दक्षिणा-सा श्री. [सं०], दक्षिण दिशा । २. पाच घन जो न बनवाना चाहिप पोर न देवतापो की प्राणप्रतिष्ठा करने ब्राह्मणों या पुरोहितों को पज्ञादि कर्म कराने पीछे दिया चाहिए। तो भी भैरव, वराह, नुसिंह मादि को प्रतिष्ट पाता। वह धान जो किसी शुभ कार्य मादि के समय की जा सकती है। ग्राह्मणों को दिया जाय। दक्षिणाव-वि० [सं०] जिपका घुमाव दाहिनी मोर को हो कि० प्र०--देना।—लेना । जो दाहिनी पोर घुमा हुभा हो । विशेष-पुरायो में दक्षिणा को यज्ञ की पत्नी बसखाया है। दक्षिणावते..---सदा पुं० एक प्रकार का शव जिसका घुमाव दाहिन ब्रह्मवैवर्त पुराण मे लिखा है कि कार्तिकी पूर्णिमा की रात पोर को होता है। को जो एक बार राप्त महोत्सव हुमा उसी में श्रीकृष्ण के दक्षिणावर्तकी- सना स्त्री• [सं० पक्षिणावर्तकी ] दे० 'दक्षिण दक्षिणाश से दक्षिणा की उत्पत्ति हर थी। वतंवती। ३ पुरस्कार। भेट । ४. वह नायिका को नायक के अन्य स्त्रियों दक्षिणावर्तवती–समा स्त्री० [सं०] वृश्चिकाली नाम का पौधा । से सबध करने पर भी उससे बराबर वैसी ही प्रीति रक्षती हो। दक्षिणावह--का पु० [सं०] पक्षिय से पानेवाली हवा ।