पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५५३

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दधिणाशा २३०१ दुगधना प. दक्षिणाशा-सचा श्री० [सं०] दक्षिण विधा। जिहाँ स सीत प्रगाष । ता भइ सृरिज उरपतन, ताकि पत्ता दक्षिणाशापति- पुं० [सं०] १. यम । २. मंगलग्रह । दक्षिरणाष ।--ढोला०, दु. ३०१। दक्षिणी-सहा स्त्री० [हि. दक्षिण+ई (प्रत्य॰)] दक्षिण देश दखिन -सज्ञा पुं० [सं० दक्षिण, प्रा. दक्खिरण] दे० 'दक्षिण'। की माषा। 30-देषि दखिन विसि हय हिहिनाहीं।-तुलसी (पन्द०)। दचिणी--सबा पुं० दक्षिण देश का निवासी। दखिनहरा-सा पुं० [हिं० दखिन+हारा] दक्षिण से मानेवाली दक्षिणी-वि० दक्षिए देश का । दक्षिण देपा सबधी। हवा । दक्षिण की भोर से पाती हई हवा । इतिहीच-वि० [सं०] १. दक्षिण का । दक्षिण संबंधी । दक्षिण देश व और सिनहा -वि० [हिं० दखिन+हा (प्रा)] दक्षिण का। का।२ जो दक्षिणा का पात्र हो। दक्षिणी । दक्षिण्य-वि० [सं०] दे० 'दक्षिणीय [को०]' दखिनाई-संज्ञा पुं० [हि. दखिन+मा (प्रत्य), दक्षिण से माने वाली हवा । दक्षिन-सा ए० [सं० दक्षिण] दे० 'दक्षिण' । खील वि० [म. दखोल ] अधिकार रखनेवाला। जिसका दसल दक्षिना--संशा बी०स० दक्षिणा ] दे॰ 'दक्षिणा' 10-~मानन या कब्जा हो। को दान दक्षिना = श्री गोकुल पाए ।-दो सौ बावन, भा० १,०१३६ । दखीलकार-सक्षा पु०प० दखील+फ्रा० कार] वह प्रसामी पिसने किसी जमीदार के खेत या जमीन पर कम से कम चारह वर्ष दक्षिनी-वि०, सक्षमपु० [सं० दक्षिणी] दे० 'दक्षिणी'। तक अपना दखल रखा हो। दखन--सका पुं॰ [व दक्षिण, फ़ा० दकन] दे० 'दक्षिण' । दखीलकारी-सहा स्त्री० [अ० दखील+फ़ा. कार] १ दखीलकार दुखमा-सा पुं० [फा. दरमह ] वह स्थान जहाँ पारसी अपने का पद या भवस्था। २ वह जमीन जिसपर दखीलफार का मुरदे रखते हैं। प्रधिकार हो। विशेष-पारसियो मे यह प्रथा है कि वे शव को बचाने या गाड़ते दख्खा -सा पुं० [सं० द्राक्षा, प्रा० दक्खा, दयख ] दे० 'दाख"। नहीं हैं धल्कि उसे किसी विशिष्ट पफात स्थान में रख देते हैं। 30-पहर पयोहर, दुइ नयण मीठा जेहा मख्ख । ढोला जहां घोल कौए प्राधि उसका मास खा जाते हैं। इस काम के एही मारुई, जाणे मीठी दरख ।-ढोला. दु. ४०० । लिये वे थोड़ा सा स्थान पचीस तीस फुट ऊंची दीवार से चारो दगंबरी-सला पुं० [हिं० दिनचर] दे० "दिगार' । उ०-दया दगवर मोर से घेर देते है, जिसझे ऊपरी भाग में जंगला सा लगा नामु एकु मनि एको प्रादि अनूप ।-प्राण, पु० २१२ । रहता है। इसी जंगले पर शव रख दिया जाता हैं। जव उसका मास घोल कोए पादि खा लेते हैं तब हडियो जंगले में दुगइल-वि० [हिं० दगैष] दे० 'दगैख'। से नीचे गिर पड़ती। नीचे एक मार्ग होता है जिससे ये दगड़-धज्ञा पुं० [? या सं० ढक्फा+हिं०४ (प्रत्य लढाई में इडियाँ निकाल ली जाती है। भारत में निवास करनेवाले बजाया जानेवाला घड़ा ढोसा जगी ढोल । पारसियो के लिये इस प्रकार की व्यवस्था ववई, सुरत प्रादि दगड़ना-कि..[?] सच्ची बात का विश्वास न करना। कुछ नगरो में है। दगड़ा-सा [हिं० दगढ़ ] दे० 'दगढ़। दखल-सा पु० [प्र. दखल]१ प्रधिकार । कब्जा। दगदगा-सा [प० दग्दगह] १ उर । भय । २. सदेह । शक । क्रि०प्र०...करना।-मे आना ।-में लाना :-होना । ३. एक प्रकार की कडोल। यो०-दखलदिहानी । देखलनामा । नवलकार | दगदगाना-क्रि० प्र० [हिं० दगना] दमदमाना । चमकना । 30२ हस्तक्षेप । हाथ पालना । उ.--मरख दखल दे चिन जाने। ज्यो ज्यों प्रति कृशता पढ़ति त्यो त्यो दुति सरसात। दगदगात गहें चपलता गुरु प्रस्थाने ।-विधाम (शब्द०)। त्यों ही कनक ज्यों ही वाहत जात ।-गुमान (शब्द०)। क्रि०प्र०-देना। दगदगाना-क्रि० स० चमकाना ! चमक उत्पन्न करना। ३ पहुंच । प्रवेश । जैसे,-- पाप भंगरेजी मे भी कुछ दक्षल दगदगाहटसमा त्री० [हिं० दगदगाना+हट (प्रत्य॰)] चमक। रखते हैं। दमक। क्रि० प्र०--रखना। दगदगी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० दगदगा] दे० 'दगदगा'। दखल दिहानी---वानी [म० दक्षल+फा० दिहानी] किसी वस्तु दगध'-सज्ञा पुं० [सं० दग्ध दे० 'दाह। उ०-पेम का लुबुध दगध पर फिसी को अधिकार दिला देना । कन्जा दिलवाना। पै साधा। -जायसी प्र०, पु.६४।। दुखलनामा-सधा पुं० [अ० दखल+झा० नामह] वह पत्र विशेषत. दगध-वि० दे० 'दम'। 30-ग्यान दगध जोगिंद कुलट कैरव सरकारी माज्ञापत्र जिसमे किसी व्यक्ति के लिये किसी पदार्थ मगि पानं :-पु०रा०, ५५११२१ । पर अधिकार कर लेने की प्राज्ञा हो। दुगधना -कि. प. [सं०६ष, हि० दग+ना (प्रत्य॰)] दखिणाघg+-सया पुं० [सं० दक्षिणापथ, प्रा. दपिखणावध, जखना । उ०-वज प्रगनि चिरहिन हिय जारा। सुलग सुलग वविखणावह ] दक्षिण देश । उ०-उत्तर माज न जाइया, दगषि भइ धारा!--जायसी (शब्द॰) ।