पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५५४

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दगधना २१०२ दग्गना दुगना-फि. स० १ जलाना। बहुत दुख देना। कष्ट दगहार-वि० [हिं० वगना+हा (प्रत्य॰)] जो दागा हमा हो। जो पहुँचाना। दग्ध किया गया हो। दगना-कि.म. [सं० दग्ध, हि० दगष+ना(प्रत्य॰)] १ (बदूक दगा-संचा पी० [अ० वग्रा] छल । कपट । धोखा। या दोप मादि का) हटना । पलना । जैसे,-वंदूक पाप ही क्रि० प्र०-करना !--देना ।-खाना। माप दग पई। २ जवना। दग्ध होना । झुलस जाना। यौ०-दगाबाज । दगादार । उ.-श्री हरिदास के स्वामी स्यामा कुपबिहारी की कटाछ दगाती-वि० [फा० दगा] दगाबाज । पोखेबाज । उ०-पल बस कोटि काम दगे।-स्वामी हरिदास (शब्द०)। ३. दागा करि नहि काहू पकरत दौरि दगाती-धनानद०, पृ० ५६६। जाना । दामना का प्रकर्मक रूप। दगादगी-सक्ष श्री. [फा. दगा ] पोखेवाजी। उ०- सजनी दुगनारे-क्रि० स० दे० 'दागना'। उ०-(क) विषधर स्वास सरिस निपठ प्रचेतगादगी समुझेन । चित वित परकर देत है बगै तन सीतल बन वात। अनलह सौ सरसै दगै हिमकर कर लगालगी का नैन ।-स० सप्तक, पु० २३४। धन गात।-१० सत (शब्द०)। (ख) जे तव होत दिखादिखी मई ममी इक पाक । दगै तिराछी दीठ पर है पीछी दगादार-वि० [ फ्रा' गा+दार घोखेबाज । खली । 30-(क) को डॉक-विहारी (शब्द॰) । एरे दगादार मेरे पातक पपार तोहिं गंगा के कछार मे पछार थार करिहों।-पभाकर (शब्द॰) । (ख) छबीले तेरे नैन बडे दुगना--कि०म० [म. दारा] १ धागा जाना। पकित होना । है दगादार-नीत (शब्द०)। चिह्नित होना। २. प्रसिव होचा । मशहूर होना । उ०-लोक वेद हूँ लौं दगी नाम भले को पोच। धर्मराज जस गाज पवि दगादारी--संज्ञा स्त्री० [फा० दगादार+ई ] दे० 'दगादगी'। दगाद कहत सफोच न सोच ।--तुलसी (शब्द॰) । दगापाज --वि० [फा० दगाबाज ] छली । कपटी। धोखा देनेवाला। दुगरी-सचा . ['देर' से देश०] दे० 'दगरा। उ.-(क) कोक कहे करत कुसाज दगाबाज बड़ो कोऊ कहे दगरा-मा पु० [१] १ देर । विलव । उ०-~मोरहि ते कान्ह राम को गुलाम खरो खूब है।-~-तुलसी (शब्द॰) । (ख) नाम करत तोसौं झगरो। सव कोउ जात मधुपुरी बेचन तुलसी पै मोडे भाग ते भयो है दास, किए अंगीकार एते रहे कौने दियो दिखावहु कारो। अचल ऐंचि ऐचि राखत हो दगावात को।-तुलसी (शब्द.)। जान देह भय होत है दगरी।-सूर (शम्द०)। २. अगर। दगावाज-सबा पुछली मनुष्य । धोखा देनेवाला प्रादमी। रास्ता। उ०-वह जो बडित मेंड बनी दगरे के माहीं। दगाबाजी-सक्षा बी० [फा० दगावागी ] छल । कपट । घोसा। --श्रीधर पाठक (शब्द०)। उ.-सुहृद समाज दगाबाजी ही को सौदा सूत जब जाको काज तब मिले पाय परि सो |--सुलसी (शब्द॰) । दुगरी-सपा स्त्री० [देश॰] वह वही जिसपर मसाई या सादी न हो। दगागेल-सपा पुं० [सं०] वृहत्साहिता के अनुसार एक प्रकार की दगल-सा पु. [देश॰] दे॰ 'दगला' । ३०-सौर सुपेती मदिर विद्या, जिसके अनुसार किसी निर्जल स्थान के ऊपरी लक्षण राती । दगल चीर पहिरहिं वह माती ।-जायसी (शब्द॰) । प्रादि देखकर, भूमि के नीचे पानी होने प्रयवा न होने का ज्ञान दगल-सक्षा पुं० [प० दगन] १ धोखा। फरेव । मक्कर । २ होता है। खोटा सोना या चायी [को०] । विशेष-वृहरसहिता में लिखा है कि जिस प्रकार मनुष्य के दगलफसल-सज्ञा पुं० [म. दग़ल + मनु० फसल या हि० फंसाना] पारीर में रक्तवाहिना शिराएं होती है उसी प्रकार पृथ्वी में घोसा । फरेव । जलवाहिनी शिराएं होती हैं और इन शिरामों के किसी दगला-सज्ञा पुं॰ [देश॰] मोटे वस्त्र का बना हुमा या सईदार स्थान पर होने मयवा न होने का ज्ञान वृक्षों मादि को अंगरखा । भारी लवादा। देखकर हो सकता है। जैसे, यदि किसी निर्जन स्थान मे जामुन गनी-मन्ना खी० [देश] दे॰ 'दगला । To-मुई मेरी माई हो का पेड़ हो तो समझना चाहिए कि उससे तीन हाथ की दूरी खरा सुखाला । पहिरोनही दाती लगै न पाला । कबीर पर उत्तर की ओर दो पुरसे नीचे पूर्ववाहिनी शिरा है, यदि ६०, पु० ३.६। किसी निर्जन स्यान मे गूलर का पेड़ हो तो उससे पश्चिम दगवाना-क्रि० स० [हिं० दागना का प्रे. रूप] दागने का काम तीन हाय की दूरी पर हेढ़ दो पुरसे मीचे मच्छ जल की दूसरे से कराना। दूसरे फो वागने में प्रवृत्त कराना। उ.--- थिरा होगी, इत्यादि। उठि भोरहि तोपन दगवायो । दीनन को बहु द्रव्य लुटायो।- दगैक्ष-वि० [म. दाग+ एल (प्रत्य॰)] १. दागवार । जिसमें दाग रघुराज (सन्द०)। हो । २ जिसम कुछ खोट या दोष हो । दगहा--वि० [हि दाग+हा (प्रत्य॰)] जिसके दाग लगा हो। दगैल'.-अशा पु-[म. दगादगाबाज । छली । २०-सात कोप बौनों दागवाला। २. जिसके सम्मेद दाग हों। पनि पाए । भए दगैनन के मन भाए।-लाल (बन्द०)। हार-वि० [हिं० दाग (-प्रेतकर्म)+हा (प्रत्य॰)] जिसने प्रेक- दगगना -किम० [हिं० दगना] २० 'मना'। उ.-बोर सिा की हो। का । तुपक पदर सब बग्गिय ।-ह० रासो, पृ. १४० । -