पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५५६

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दढक्का दुवक टक्का -संक्षा पु.[पनु० ] दरेरा। उ०इक इक्क टपक, देत दडवक, सेल तटक्कै थोन बहें। -सुजान०, पृ. ३१। दी-मचा स्त्री॰ [ देश ] कदुक । गेंद । तली । 3.-जोष पौण दछौ जेम पौणियो गिरव एम 1 उठे महीराव जाए, नीव सूं उठास।-रघु० रू०, पृ० १६६ । दड़क-संज्ञा स्त्री॰ [ भनु.] दहाड़। गरज । दडूकना-कि० म. [अनु० ] दहाडना । गरजना। दढोकना-क्रि० स० [मनु० ] दहाड़ना। गरजना। वाघ, सांड़, पाधि का बोलना । दडढ -वि० [सं०६०, प्रा० दव पक्का । मजबूत । दृढ़ । १० सरे राव के रावतं जोर पट्ठ।-ह. रासो, पृ०६६। दढ -वि० [सं० दृढ, मा० दट्ट ] दे॰ 'दृढ़। उ०-सर्प म्यूद्ध माकार सज्जे सभारं। वढं फन्न पुर्य रचे भ्रित्त सारं।-पु. रा०, ११६३३ । ददियक्ष-वि० [हिं० दाढ़ी+इयल (प्रत्य॰)] वाढीवाला 1 जो दाढ़ी रखे हो। दणयर, दणियर@+सशा पुं० [सं० दिनकर, प्रा०विण्यर ] सूर्य। दिनकर । उ०-मा सी देखी नहीं, प्रमुख दोय नयाह। योटो सो भोले पड़ा, धणपर उगहताह ।-ढोला०, ३० ४७८ । दत-सचा पुं० [सं० दत्त ( - दान)] दे० 'दान' उ०-देतौ प्रभव पसाब दत, वीर गोड बछराज ।- वाँको० भा० १, पृ० ७९ । दतनारे-कि. म. [हिं० हटना ] दे० 'डटना'। उ.-केसव कैसह देखन कौं तिन्हें भोरही भोरी कै मानि ती हो । पान खधावत ही तिनसों तुम राति कहा सतराति हती हो। केशव पं., भा० १,०७१। दतवन-सम ली० [हिं० ] दे० 'वतुवन' । दतारा-वि० [हिं० दाँत+मार (प्राय)] १ दानवाला । जिसमें दाँत हों। दातदार । २ बड़े बड़े या दृढ़ दौजीवाला (हाथी, शूकर मादि)। दतिया'-सज्ञा स्त्री० [हिं० दाँत+इया (प्रत्य॰)] दाँत का स्त्रीलिंग मोर अस्पार्थक रूप । छोटा दांत । दतिया-सा पुं० [देश॰] एक प्रकार का पहावी तीतर जो बहुत सुपर होता है। इसकी खाल पच्छे दामो पर विकती है। नीलमोर । २ एक पुराना राज्य । दतिसत-सज्ञा पुं० [सं० दितिसुत ] देस्य । राक्षस (डि०)। दतुमन-सचा स्त्री० [हिं० ] दे॰ 'दतुवन' । दतुइना-सहा सी० [हिं० ] दे० 'दतुवन' । उ०-दतुइन करी न जाय नहीं अध जाय नहाई-पलटु, भा० १, पृ. ३२ । दतुवन-सबा बी० [हि. पांत+पवन (प्रत्य॰) मपवा पावन ] । नीम या बवूल प्रादि की काटी हुई छोटी टहनी जिसके एक सिरे को दांतो से कुचलकर कूची की तरह बनाते और उससे दांत साफ करते हैं। दातुन । क्रि०प्र०-करना। २ दांत साफ करने भौर मुह पोने की क्रिया। क्रि० प्र० करना । यौ०-वतुवन कुल्ला-घांत साफ करने मौर मुह धोने की त्रिया। दतन--संज्ञा स्त्री० [हिं० दे० धतुपन'। दतौन- सक्षा सी० [हिं० ] दे० 'दतुवन' । दत्त'-सा सं०] दसाय । २.वियों के नौ वासुदेवों में से एक । ३ एक प्रकार के बगाली कायस्थों को उपाधि । ४. दान । ५ दत्तक । दत्त-वि. १. दिया हुमा । प्रदत्त । २. दान किया हुमा। ३. सुरक्षित । रक्षिर' (को०)। दत्तक-सहा पु० [सं०] शास्यविधि से बनाया हमा पुत्र । बह पो वास्तव में पुत्र हो, पर पुन मान लिया गया हो। गोद खिया हुमा लगा। मुतवन्ना। विशेष-स्मृतियों में जो मौरस पोर-क्षेत्र में अतिरिक्त दस प्रकार के पुत्र गिनाए गए हैं, उनमे दत्तक पुत्र भी है। इसमें से कलियुग में केवल इतक ही को ग्रहण करने की व्यवस्था है, पर मिथिला और उसके भासपास कृत्रिम पुत्र का भी ग्रहण पमतक होता है । पुत्र के विना पितृऋण से उतार नहीं होता इससे शास्त्र पुत्र ग्रहण करने की माजा देता है। पुत्र प्रादि होकर मर गया हो तो पितृमाण से तो उद्धार हो जाता है पर पिंडा पानी नहीं मिल सकता इनसे उस अवस्था में भी पिंडा पानी देने और नाम चलाने के लिये पुत्र ग्रहण करना मावश्यक है। किंतु यदि मृत पुत्र का कोई पुत्र या पौत्र हो तो दत्तक नहीं लिया जा सकता। दत्तक के लिये मावश्यक यह है कि इत्तक लेनेवाले को पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र पादि न हो। दूसरी बात यह है कि मावान प्रदान की विवि पूरी हो. मर्यात लडके का पिता यह कहकर अपने पुत्र को समर्पित करे कि मैं इसे देता हूँ भौर दत्तक लेनेवाला यह कहकर उसे ग्रहण करे 'धर्माय स्वां परिगृह्णामि, सन्तत्यै स्वोपरिगृह्णामि । द्विजो के लिये हवन मादि भी आवश्यक है। वह पुत्र जिसपर उसका असली पिता भी अधिकार रखे और दत्तक लेनेवाला मी 'दामुष्यायण' कहलाता है। ऐसा लड़का दोनों की संपत्ति का उत्तराधिकारी होता है और दोनों के कुल में विवाह नहीं कर सकता है। दत्तक लेने का अधिकार पुरुषही को है, मतली यदि गोद ले सकती है तो पति की मनमति से ही। विधवा यदि गोत्र लेना चाहे तो उसे पति को प्राज्ञा का प्रमाण देना होगा। वशिष्ठ का वचन है कि 'स्त्री पति की माज्ञा के बिना त पुत्र दे और न ले । नद पवित ने तो दत्तक मोमासा में कहा है कि स्त्रो को गोद लेने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वह जाप होम मादि नहीं कर सकती । पर दत्तकचद्रिका से अनुशार विधवा को यदि पति माज्ञा दे गया हो तो वह गोद ले सकती है। वगदेश और काशी प्रदेश में स्त्री के लिये पति की मनुमति पनिवार्य है, भौर वह इस मनुमति के अनुसार पति के जीते जी या मरने पर गोद ले सकती है। महाराष्ट्र देश के परित वरिष्ठ मे वचन का यह अभिवाय निकालते हैं कि पति की अनुमति की आवश्यकता उस भवस्था