पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५५७

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दचित २२०५ दचय में हैं जब दत्तक पति के सामने लिया जाय, पति के मरने पर में कोढ़ी ब्राह्मण का पैर उन्हे लग्न गया। उन्होने शाप दिया. विधवा पति के कुटुबियो से अनुमति लेकर दत्तक ले सकती है। कि जिसका पैर मुझे लगा है सूर्य निकलते निकलते वह मर कैसा लडका दत्तक लिया जा सकता है, स्मृतियो मे इस सबध मे जायगा। सती स्त्री ने अपने पति की रक्षा करने और वैधव्य कई नियम मिलते हैं- से बचने के लिये कहा कि जाप्रो सूर्य उदय ही न होगा। (१) शौनक, वशिष्ठ पादि ने एकलौते या जेठे नहके को गोद जव सूर्य का उदय न हुआ और पृथ्वी के नाश की सभावना लेने का निपेष किया है। पर कानकत्ते को छोड और दूसरे हुई तव सव देवता मिलकर ब्रह्मा के पास गए। ब्रह्मा ने हाइकोटों ने ऐसे लडके का गोद लिया जाना स्वीकार किया है। उन्हे अषि मुनि की स्त्री अनसूया के पास जाने की समति दी। देवतामो के प्रार्थना करने पर मनसूया ने जाकर (२) लड़का सजातीय हो, दूसरी जाति का न हो। यदि दूसरी ब्राह्मण पत्नी को समझाया और कहा कि तुम सूर्योदय जाति का होगा तो उसे केवल खाना कपडा मिलेगा। होने दो तुम्हारे पति के मरते ही मैं उन्हे फिर सजीव कर (३) सबसे पहले तो भतीजे या किसी एक ही गोत्र के सपिंड को दूंगी और उनका शरीर भी नीरोग हो जायगा। इस. लेना चाहिए, उसके प्रभाव मे भिन्न गोत्र सपिंड, उसके प्रभाव पर वह मान गई, तब सूर्य उदय हुमा मौर मूत ब्राह्मण को में एक ही गोत्र का कोई दूरस्थ सवधी जो समानोदकों के अनसूया ने फिर जीवित कर दिया। देवतामों ने प्रसन्न होकर अतर्गत हो, उसके प्रभाव में कोई सगोत्र। भनसूया से बर मांगने के लिये कहा । अनसूया ने कहा--ब्रह्मा, (४) विजातियों मे लडकी का लहका, बहिन का लडका, भाई, विगु और महेश तीनों मेरे गर्भ से जन्म ग्रहण करें। चाचा, मामा, मामी का लडका गोद नहीं लिया जा सकता। ब्रह्मा ने इसे स्वीकार किया, पोर तदनुसार ब्रह्मा ने नियम यह है कि गोद लेने के लिये जो लड़का हो वह 'पुत्र सोम बनकर, विष्णु ने दत्तात्रेय बनकर, प्रौर महेश्वर ने च्छायावह' हो अर्थात् ऐसा हो जिसको माता के साय दत्तक दुर्वासा वनकर पनसूया के घर जन्म लिया। हैहयराज ने लेनेवाले का नियोग या समागम हो सके। जब भत्रि को बहुत कट पहुँचाया था तब दत्तात्रेप ऋद्ध होकर दत्तक विषय पर अनेक प्रथ सस्कृत में हैं जिनमें नद परित की सातवें ही दिन गर्भ में निकल पाए थे। ये बड़े भारी योगी 'इत्तफ मीमासा' पौर देवानंद भट्ट तथा कुबेर कृत 'दत्तक- थे पोर सदा ऋषिकुमारो के साथ योगसाधन किया करते चद्रिका सबसे अधिक मान्य हैं। थे। एक बार ये अपने साथियों और ससार से छुटकारा पाने के लिये बहुत समय तक एक सरोवर मे ही वे रहे मुहा०-दत्तक लेना- किसी दूसरे के पुत्र को गोद लेकर अपना फिर भी ऋषिकुमारी ने उनका सग न छोडा, वे सरोवर पुत्र बनाना। के किनारे उनके मासरे बैठे रहे। अत में दत्तात्रेय उन्हे छलने दचचित्त-वि० [सं०] जिसने किसी काम में खूब जी लगाया हो। के लिये एक सुदरी को साथ लेकर सरोवर से निकले और जिसने खूत्र चित्त लगाया हो। मद्यपान करने लगे। पर ऋषिकुमारो ने यह समझकर तव दत्ततीर्थकृत्-सपा पुं० [सं०] गत उत्सपिणी के माठवें महंत (जेन) । भी उनका सग न छोडा कि ये पूर्ण योगीश्वर हैं, इनकी दत्तदृष्टि--वि० [सं०] जिसकी प्रासे किसी वस्तु पर टिकी हों (को०] । मासक्ति किसी विषय मे नही है। भागवत के अनुसार इन्होने चौबीस पदार्थों से अनेक सिझाएँ ग्रहण की थी और उन्धी दत्तशुल्का-वज्ञा स्त्री० [स०] वह लड़की जिसे प्राप्त करने के लिये चौवीस पदार्थों को ये माना गुरु मानते थे। वे चौवीस पदार्थ शुल्फ के रूप में कोई द्रव्य दिया गया हो (को०। ये है--पृथ्वी, वायु, भाकारा, जल, अग्नि, चंद्रमा, सूर्य, दत्तस्यानपाकर्म-समा पुं० [सं०] कौटिल्प के अनुसार कोई चीज कबूतर, मजगर, मागर, पतग, मधुकर(भौरा पोर मधुमक्खी), फिसी को देकर फिर लौटाना। एक बार दान करके फिर हाथी, मधुहारी (मधुमग्रह करनेवाली), हरिन, मछली, पिंगला वापस मांगना या लेना। वेश्या, गिद्ध, पालक, कुमारी फन्या, घाण बनानेवाला, साप, दत्वहस्व-वि० [सं०] जिसे हाथ का सहारा दिया गया हो [को०] । मकडी मोर तितली। दत्ता-सच्चा पुं० [सं० दत्त] दे० 'दत्तात्रेय'। दत्ताप्रदानिक-सज्ञा पुं० [सं०] व्यवहार मे अट्ठारह प्रकार से विवाद पदो में से पांचवा विवाद पद ! किसी दान किए हुए दत्तात्रेय-सहा पु० [सं०] एक प्रसिद्ध प्राचीन ऋषि जो पूराणानुसार पदार्थ को अन्यायपूर्वक फिर से प्राध करने का प्रयत्न । विष्णु के चौबीस अवतारो मे से एक माने जाते हैं। दत्तावधान-वि० [सं० दत्त+मवधान] दत्तचित्त। सावधान । विशेष-मार्कंडेय पुराण में इनकी उत्पत्ति के सबंध में जो फया ५ उ.-भारत साम्राज्य को भी दत्तावधान होना पड़ा है । लिखी है वह इस प्रकार है-एक कोढ़ी ग्राह्मण को स्त्री घडी प्रेमघन०, भा०२ पु० २२२। पतिनता और स्वामिभक्त थी। एक बार वह माहाण एक दत्ति-सका सी० [सं०] दान [को०] । वेषया पर प्रासक्त हो गया। उसके प्राज्ञानुसार उसकी पतिव्रता दात स्त्री उसे अपने कधे पर बैठा कर अंधेरी रात में उस वेश्या के दत्ती-सपा नी• [सं०] सगाई का पक्का होना। • घर पली। रास्ते में माडव्य ऋषि तपस्या कर रहे थे, अंधेरे इत्तेय-सबा पुं० [सं०] इद्र । ४-18