पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५५९

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दधिधेनु १२०० १०-कब को भयो रे ढोटा दषिदानी ।-प्रकवरी०, (१) दषिसुत जात होहिं देना द्वारिका स्याम सुदर पृ०११ सफल भुवन नरेस । -सूर०, १०४२६४ । दधिधन-सहा बी. [सं०] पुराणानुसार दान के लिये कल्पित गौ यो०-दपिसुत सुठ-पद्रमा का पुष, बुध, पद विद्वान् । जिसकी कल्पना दही के मटके में की जाती है। पडित । उ०-जिनके हरि वाहन नहीं दधिमुत सुत बेहि दधिधानी-सखा पुं० [सं०] वह पान जिसमें दही रखा हो । यही रखने नाहिं । तुजसी ते नर तुन्छ है विना समोर उहाहि ।-स० का बर्तन [को०] । साक, पृ० २१॥ दधिनामा-सचा पुं० [सं० दधिनामन् ] फैथ का पेड़ । ४ जालघर दैत्य । 30-विधगुवचन पपसा प्रतिहारा । तेहिवे दधिपुष्पिका-मशास्त्री० [स० ] सफेद अपराजिता । मापुन दविसुत मारा।--विधाम (शब्द०)।५ विप। बहर दधिपुष्पी-मज्ञा स्त्री० [सं०] सेम। उ.-नहि विभूति दधिसुत न कठ यह मृगमद पदन परचित तन ।-सुर (चन्द०)। दधिपूप-सा पुं० [सं०] एक प्रकार का पफयान जो दही में , दधिसुत-सरा पुं० [सं०] मक्खन । नवनीत । फेंटे हुए शालि पान के चूर्ण को घी मे तलने से बनता है। दधिफल-मक्ष पुं० [सं०] केय । कगिरय । दधिसुता ---सा श्री० [सं० उदधिसुता] सीप । उ-वधिता सुत प्रवलि कार इद्रमायुध जानि-सूर (शब्द॰) । दधिमंड-सदा पु० [सं० दधिमएड ] दही का पानी । यो०-दधिसुता सुत-सीप का पुष-मोती। मुक्ता। दधिमहोद-सहा पुं० [से. दधिमएठाद पुराणानुसार दहा धिम्नेह-सहा पं० [सं०] दहीको मलाई। का समुद्र दधिस्वेद-सफा पुं० [सं०] तक। छाछ । मट्ठा । दधिमथन----सहा पुं० [सं० दधिमन्यन ] दही को मपने की दघी -सबा पुं० [सं० उदधि] दे० 'उदधि'। उ०-रिछ बानराय, ___क्रिया [को०] । भए सो सहायं । हनुमान तायं, दघो सीस पायं।-१० दुधिमंथाना-सबा पुं०० दधिमन्यन1 दही चिनोने या मथने ग०, २।२४। का काम । उ०-सीता दिन में वह ब्रजवासिनी जब दधि- , दधीच -सया पु० [सं०] दे० 'दीपि'। उ.-जीत महीपति मथान को वैठती तब ही थी गोवर्धननाथपी वा पास माह हाइनही मह जोत वघोष के हाडन ही मैं!-मति , विराजते ।-दो सौ बावन०, मा०२, पु०६। पु० ३९२। दधिमुख-सक्षा पुं० [सं०] १. रामचंद्र जी की सेना का एक बदर जो यौ०-धीपास्थि-दे० दधीच्यस्थि। सुप्रीव का मामा और मधुबन का रक्षा था। रामायण के दधीचि-सशा पुं० [सं०] एक वैदिक अपि जो यास्क के मत से अनुसार यह सुग्रीव का ससुर था। २ फनवाले सोपों में श्रेष्ठ मययं के पुत्र ये और इसी लिये दधीचि कहलाते थे। किसी एक नाग का नाम (को०)। पुराण के मत से ये कदम पि को कन्पा पोर पर्व की दधियार--मरा पु. [ देश ] जीवतिका की जाति को एक लता पली शाति के गर्भ से उत्पन्न हुए थे मोर किसी पुराण के मत मपुप्पी । मधाहुली । से ये शुक्राचार्य के पुत्र थे। विशेष-इस लता के पत्ते नवे और पान के प्राकार के होते हैं। विशेष-वेदों मोर पुराणों में इनके सबध में अनेक कार इसकी डठिणे पादि मे से दूध निकलता है और इसमे सूर्यमुखी है, जिनमे से विशेष प्रसिद यह है कि इंद्र ने इन्हें मधुविद्या की तरह के फूल लगते हैं। इसका व्यवहार मौषध में होता हैं। सिखाई थी मोर कहा था कि यदि तुम यह विद्या रचलामोगे दधिवक्त्र-समा [10] दे० 'दधिमुख' [को०] 1 तो हम तुम्हें मार डालेगे। इसपर अश्यियुगस ने पोषि दधिशर-सपा पु० [सं०] दे० 'दषिमड' को। का सिर काटकर अलग रख दिया और उनके पद पर दधिशोण-मा पु० [सं०] वदर । शनर [को०) । घोड़े का सिर लगा दिया और तब उनसे मधुविद्या सीखो। दधिपाय्य-शा पुं० [सं०] घुन । घी (को०)। जब इद्र को यह बात मालूम हुई तो उन्होंने प्राकर उनका घोडेवाला सिर काट डाला। इसपर अश्वियुगल ने उनके घर दधिसभव-- पुं० [सं० दघि + सम्भव) मनन । नवनीत । नैनू । पर फिर वही मनुप्यवासा पहला सिर लगा दिया। एक बार दघिसागरमा पु[सं०] पुराणानुसार दही का समुद्र । वृयामुर के उपद्रव से बहुत दुखित होकर देवता दधिसार-सहा ई० [सं०] नवनीत । मक्खन । पास गए। उस समय निश्चित मा कि वोधि की हटियों दधिसुत-सवा पुं० [सं० उदधि+सुत] १ कमल । उ०-देखो में के बने हुए मस्त्र के अतिरिक्त मौर किसी मात्र से पुषासुर दपिसुत में दधिजात । एकपभो देसि सखी री रिपु मै रिपु मारा न जा सकेगा। इसलिये इंद्र ने दीपि से उनकी हरियो जु समात 1--सुर०, १०।१७२२ मुक्ता। मोती 13०-दपि. मांगी । दधिषि ने अपने पुराने शत्रु पोर हत्याकारी को सुत जामे नव दुवार । निरखि नैन भवभयो मनमोहन रटत देह भी विमुख लोटाना उचित न ममा मोर उनके लिये अपने कर नारबार ।-सूर०, १०११७३ । ३ उडुपति । परमा। प्राण त्याग दिए । तर उनको हड़ियों से मन बनाकर 30-(क) राधे दषिमुत क्यो न दुरावति । हौजु कहाति पत्रासुर मारा गया। तभी से दीपिका पदभारी बानो वृपमानु नदिनी काई जीम सतावति ।-सूर० १.१७१४ । होना प्रसिद्ध है। महाभारत में यह भी सिवा है कि बापट