पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५६०

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दधीच्यस्थि १२०० दफराना ने हरिनार मे बिना शिव जी के यश किया था, तब इन्होंने दनुजराय-सचा पुं० [सं० दनुज+हि० गय ] दानवों का राजा दक्ष को शिव जी के निमश्रित करने के लिये बहुत समझाया हिरण्यकशिपु।। था, पर उन्होंने नहीं माना, इसलिये ये यज्ञ छोड़कर चले गए दनुजारि-सक्षा पुं० [स. ] दानवो के मात्रु । थे। एक बार दधीचि वडी कठिन तपस्या करने लगे । उस दनुजारी-सक्षा पु० [सं० दनुजारि] दनुजो के शत्रु । विष्रगु । उ.---- समय इद्र ने डरकर इन्हे तप से भ्रष्ट करने के लिये अलबुषा बीचहि पथ मिले दनुजारी। मानस, १११३६ ! नामक अप्सरा भेजी। एक बार जब ये सरस्वती तीर्थ में दनुजेंद्र-सहा पुं० [सं० दनुजेन्द्र ] दानवों का राजा.-रावण । तपस्या कर रहे थे तब पलबुषा उनके सामने पहुंची। उसे दनुजेश-सक्षा पुं० [सं०] १ हिरण्यकशिपु । २. रावण । देखकर इनका वीर्य स्खलित हो गया जिससे एक पुत्र हुमा। इसी से उस पुत्र का नाम सारस्वत हुमा । दुनुजसंभव-सा पुं० [सं० दनु-सम्भव ] दनु से उत्पन्न, दानव । दधीच्यस्थि-सषा पुं० [सं० दधीचि मस्यि १ इद्राला वज। दजिसून-सन्ज्ञा पुं॰ [ सं० ] दे० 'दनुजस भव' । २ हीरा । हीरक । दनू-सा स्त्री० [सं० दनु ] दे॰ 'दनु' । दन्न-सचा पुं० [अनु० ] 'दन्न' शब्द जो तोप भादि के छूटने अथवा दश्न-सा पुं० [सं०] चौदह यमो में से एक यम । इसी प्रकार के प्रौर किसी कारण से होता है। दध्यानी-सज्ञा पुं० [सं०] सुदर्शन वृक्ष । मदनमस्त । दुपट-सज्ञा स्त्री० [हिं० डोट के साथ अनु.] धुडकी। उपट । दध्युत्तर-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] दही की मलाई। डांटने या उपटने की क्रिया । दध्युत्तरक, ध्यत्तरग-सक्षा पुं० [सं०] दे० ' दध्युत्तर' [को०] । दपटना-क्रि० स० [हिं० डांटना के साथ भनु० 1 किसी को डराने दन-ससा पुं० [सं० दिन ] दिवस । दिन (डि.)। के लिये विगडकर जोर से कोई बात कहना । डांटना । दनकर-सक्षा पुं० [सं० दिनकर, प्रा. दिण्यर, दरगयर ] दिनकर । घुड़कना। सूर्य (हिं.)। दपुर-सज्ञा पुं० [सं० दर्प ] दर्प । अहकार । अभिमान । शेखी। दनगा-सज्ञा पुं॰ [ देश० ] खेत का छोटा टुकडा । घमड। उ०-सात दिवस गोवर्धन राख्यो इद्र गयो दपु दनदनाना-मि० भ० [ मनु.] १ दनदन शब्द करना । २ छोहि ।—सूर (शब्द०)। मानद करना । खुशी मनाना। दपेट-सहा सी० [हिं०] दे० 'दपट'। दनमणि---सचा पुं० [सं० दिनमरिण ] द्युमणि । सूर्य (डि.)। दपेटना-क्रि० स० [हिं०] दे॰ 'दपटना' । दनादन-कि० वि० [मनु०] दनदन शब्द के साथ । जैसे,—दनादन दुप्प -सा पुं० [सं० दपं, प्रा० दप्प] दे० 'दप' । तोपें घटने लगी। दफतर-सज्ञा पुं० [फा० दफ़्तर] दे० 'दफ्तर'। दन-सा खी० [सं०] दक्ष की एक कन्या जो कश्यप को दफतरी-सज्ञा पुं० [फा० दफ्तरी] दे० 'दफ्तरी। व्याही थी। दफतरीखाना-मक्षा पुं० [फा० दफ्तरीखानह] दे० 'दफ्तरीखाना' । विशेष--इसके चालीस पुष हप थे जो सब दानव कहलाते हैं। दफती-सहा स्त्री० [अ० दफ्तीन कागज के कई तरुतो को एक में साट उनके नाय ये है--विचित्ति, शवर, नमुचि, पुलोमा, कर बनाया हुमा गत्ता जो प्राय जिल्द वोधने प्रादि के काम असिलोमा, केशी, दुर्जय, मय शिरी, अश्वशिरा, अश्वशकु, में माता है। गत्ता। कुट । वसली। गगनमुळ, स्वर्भानु, अश्व, मश्वपति, पुपवर्वा, अजक, अश्वग्रीव, कमश्वमावा दफदर-सा पुं० [हिं० दफतर] दे० 'दपतर' । उ०—तबलक तत्त र सूक्ष्म, तुहुष्ट, एकपद, एकचक्र, विरूपाक्ष, महोदर, निचंद्र, दया को दफदर, सत कचहरी भारी।-घरनी० वानी, पृ०३। निकुभ, कुजट, कपट, शरभ, शलभ, सूर्य, चद्र, एकाक्ष, अमृतप, प्रलय, नरक, वातापी, शठ, गविष्ठ, वनायु और दीजिह्व।। दफन-सचा पुं० [अ० दफन] १ किसी चीज को जमीन में गाड़ने की इनमे जो चामोर सूर्य नाममाए हैं, वे देवता बद्र और सूर्य किया।२ मुरदे को जमीन में गाडने की क्रिया। से भिन्न हैं। दफनाना-क्रि० स० [म. दफ़न+माना] १ जमीन मे दबाना । दनु-सघा पु० एक वानव का नास जो थी दानव का चस्का था। गाडना।२ (लामा) क्सिो दुर्व्यवहार, कटुता भादि को पूरी विशेष -इद्र द्वारा प्रस्त एवं पीड़ित इस राक्षस को राम पौर तरह भुला देना। सदन ने मारापा। शिरविहीन कवष की आकृति का होने दर दुफरा-सज्ञा पुं० [देश॰] काठ का वह टुकडा या इसी प्रकार का से इसका एक नाम वतुकबष भी है। मौर कोई पदार्थ जो किसी नाव के दोनों मोर इसलिये लगा दिया जाता है कि जिसमे किसी दूसरी नाव की टक्कर से दनुज-मा पु० [सं०] दनु से उत्पन्न, असुर । राक्षस । उसका कोई अग टूट न जाय । होस (मश०)। दनुजदतनी-सक्षा स्त्री० [सं०] दुर्गा। दफराना-क्रि० स० [देश॰] १ किसी नाव को किसी दूसरी नाव दनुजद्विट-सा पुं० [ दनुजद्विप् ] सुर । देवता [को०)। के साथ टक्कर लड़ने से बचाना । २. (पाल), खड़ा करना - दनुजपुत्र-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] दे० 'दनुज' को०] । (लरा.) ३. बचाना ! रक्षा कराना ।