पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रजन २२१ जन-ससा पुं० [मं. उजन, हिं० पर्जन] ३० 'दर्जन'। दरमंद-वि० [फा० दर्दमद] १ दुखी। दर्दवाला ! २ दयालु । जा'-सज्ञा पुं॰ [म० दर्जह, हि० दरजा] दे० 'दर्जा' । जो दूसरे को दुखी देखकर स्वय दुख का अनुभव करे। जा-संज्ञा पुं० [हिं० दरबा] लोहा ढालने का एक भौजार । उ०-फरन कुबेर कलि कीरति कमाल करि ताले बंद मरद जिन-सा श्री० [हिं०] दे० 'दर्जिन'। दरदमद दाना था।-अकबरी०, पृ० १४४ । जी-सा० [फा० दी] दे० 'दर्जी'। उ०-ग दरजी वस्नी दरद दरदर-कि० वि० [फा.दर पर] १.वार द्वार । दरवाजे दरवाजे । सुई रेसम मेरे लाल !-स० सप्तक, पृ० १६२ । उ.--माया नटिन लफुटि कर लीन्हे कोटिक नाव नपावै । दर दर लोभ लागि ले होले नाना स्वांग करावै।--सूर रण-समा पुं० [सं०] १ दलने या पीसने की क्रिया। २ ध्वस । (चन्द०)। २ स्थान स्पान पर। जगह जगह। उ.-~-दर विनाश। दर देखो दरौखानन में वोरि पौरि दुरि दुरि दामिनी सी णि-सहा पुं० [सं०] १. प्रवाह । धारा। २ भौर। पावर्त । दकिदमक उठ।-पाकर (शब्द०)। ३. तरग । लहर । ४. तोड़ना । खहन [को०] । दरदरी-वि० [हिं०] देः 'दरदरा' । पी-एमबी [सं०] ३० वरगि'। दरदरा-वि० [सं० दरण | -दलना) [ वि०सी० दरदरी ] जिसके त्, दरदु-सक्षा स्त्री॰ [सं०] १ पर्वत । पहाड़ । २ वषा । बध। कण स्थूल हों। जिसके रवे महीन न हों, मोटे हों। जिसके बांध। ३ प्रपात । झरना। ४. डर । भय । ५ हृदय । ६ कण टटोलने से मालूम हों। वो खूब बारीक न पिसा हो। म्लेच्छ जाति [को०] । वैसे, दरदरा माटा, दरदरा चूर्ण । थ-सपा पुं० [t०] १ कदरा । गुफा । २. गतं । गड्ढा । ३ चारे दरदराना-क्रि० स० [सं० दरण] १ किसी वस्तु को इस प्रकार की तलाश करना । ४. पलायन (को०] । हलके हाथ से पीसना या रगहना कि उसके मोटे मोटे रवे या '-सम्मा (० [फा० ददं] १. पीटा। व्यथा । कष्ट । उ.-दरद टुकडे हो जायं। पहुत महीनन पीसना, थोड़ा पीसना । दवा दोनों रहे पीतम पास तयार ।-रसनिधि (शब्द॰) । जैसे,-मिचं थोड़ा दरदरा कर ले पायो, पहत महीन पीसने २ दया। करुणा । तसं। सहानुभूति । उ.-माई नेफहन का काम नहीं। 1२ जोर से दांत काटना । दरद करति हिलकिन हरि रोवै ।-सुर (शब्द०)। दरदरी'-वि० सी० [हिं० दरदरा ] मोटे रवे की। जिसके रवे विशेष-दे० 'ददं'। मोटे हों। द-वि० [म०] भयदायक । भयकर । दरदरोखर-सक्षा [सं• धरित्री] पृथ्वी । जमीन । धरती (हिं.)। दर-सहा पु० १ काश्मीरमौर हिंदकण पर्वत के बीच के प्रदेश दरदवंत -वि० [फा० दवं+ हि० वत (प्रत्य॰)] कृपालु। का प्राचीन नाम। दयालु । सहानुभूति रखनेवाला। उ.-सज्जन हो या रात को करि धेलो जिय गौर। दोलनि चितवनि पलनि वह विशेष-बृष्ठसहिता में इस देश को स्थिति ईशान कोण मे दरदवत की पौर:-सनिधि (शम्द०)। २ दुखी। जिसके बताई गई है। पर पाषफल जो 'दरद' नाम की पहाड़ी पीडा हो। पीड़ित । उ0-लेउ न मजनू गोर ढिग कोऊ लेने जाति है वह लद्दाख, गिलगित, चित्राल, नागर इंजा आदि नाम । दरदवत को नेक तो लेन देह विश्राम ।-रस- स्थानों में ही पाई जाती है। प्राचीन यूनानी भौर रोमन निधि (शब्द०)। लेखको के अनुसार भी इस जाति का निवासस्थान हिंदूकुछ दरदवंद -वि० [फा० ददंमद ] १ व्यथित । पीडित। जिसके पर्वत के पासपास ही निश्चित होता है। दर्द हो । २ दुखी। खिन्न । २. एक म्लेच्छ जाति, जिसका उल्लेख मनुस्मृति, हरिव पादि। दरदाई -सज्ञा स्त्री० [हिं०] ददं से युक्त होने का भाव । वेदना । दरद । उ.-पीको मोहिं जहर उठत खुटत रेन नाही। कहा विशेष-मनुस्मृति में लिखा है कि पौंडक, भोट प्रापिट, कांदोष, कहूँ करमन की रेव हिय की दरदाई।-तुलसी० श०, पृ.६। पवन, शक, पारद, पलव, चीन, किरात, दरद पोर खस पहले कविय थे, पीछे संस्कारविहीन हो जाने और ब्राह्मणों का दरदानान-सबा पुं० [फ़. दालान के बाहर का दालान । दर्शन न पाने से प्रत्व को प्राप्त हो गए। माजकल जो दरव दरदी-वि० [फा० दर्द, हि० दरद+ई (प्रत्य॰)] जिसे दुख मिला दारद नाम की जाति है वह काश्मीर के पासपास लद्दाख हो । दुखी। पीडित । उ.-मीरा कहती है मतबाली, दरदी को दरदी पहचाने। दरद भौर दरदी के रिश्तों को, से लेकर नागरहूंजा पोर चित्रास तक पाई जाती है। इस जाति के लोग अधिकांश मुसलमान हो गए हैं। पर इनकी पगती मीरा क्या जाने ।-हिमत०, पृ० ७६ । भाषा पौर रीति नीति की ओर ध्यान देने से प्रकट होता दूरद-रा० [फा० दर्द ] ३० दरद' या 'दर्द'। है कि ये पार्य कुलोत्पन्न है। यद्यपि ये लिखने पढ़ने में मुसल. दरद्री-वि० [सं० दरिद्र ] निधन । कगाल । उ• बेहथ्य दरद्री मान हो जाने के कारण फारसी अक्षरों का व्यवहार करते दव्य ज्यों मचल सचल सिर दिपाय । पंगार षेम पेमहकरन । है, तथापि इनकी भाषा काश्मीरी से बहुत मिलती जुलती है। जित्ति कित्ति अभिनष्पई ।-पु० रा०, १२ । ६९ ३ ईगुर। सिंगरफ। हिंगुल । दरनल-सबा पुं० [सं० दरण] २० 'दरण'।