पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५८

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जयध्वज जया' जयध्वज-संवा पुं० [सं०] १ तालजघा के पिता का नाम जो जयमल्लार-मथा पुं० [सं०] सपूर्ण जाति का एक राग जिसमें सब भवती के राजा कार्तवीर्याजुन का पुत्र था। २. जयपताका। शुद्ध स्वर लगते हैं। जयती। जयमारपी-सझा स्त्री० [सं० जय+माल्य 1 दे० 'जयमाल'।०- जयध्यनि-सचा स्त्री० [सं०] दे० 'जयघोप' । का कह देउ ऐस जिउ दीन्हा । जेइ जयमार जीति रन लीन्हा । जयन-सा पु० [सं० जयनम् ] १. जय । जीत । २ हाथी, घोडे -जायसी ग्र, पृ. १२२ । प्रादि की सुरक्षा के लिये एक प्रकार का जिरहवस्तर (को०] । जयमाल-संज्ञा स्त्री० [सं० जयमाला ] वह माला जो विजयी को जयना -क्रि० म० [सं० जयन ] जीतना। उ०-(क) भरत विजय पाने पर पहनाई जाय । २ वह माला जिसे स्वयंवर के धन्य तुम जग जस जयळ । फहि प्रस प्रेम मगन मुनि भयक । समय कन्या अपने घरे हुए पुरुष के गले में गलती है 150- -तुलसी (शब्द०)। (ख) ले जात यवन मोहि करिके जयन । उ०-गावहि छवि अवलोकि सहेली। सिय जयमाल राम उर -भारतदु ग्र०, भा०१, पृ० ५०२ । मेली ।—मानस, १ । २६४ ।। जयनी-सशा स्त्री० [सं०] इद्र की कन्या । जयमाला-सा स्त्री० [हिं० जयमाल ] दे० 'जयमाल' । ३०--सोहत जयपत्र-संहा पुं० [सं०] वह पत्र जो पराजित पुरुष अपने पराजय जनु जुग जलज सनाला। ससिहि समीत देत जयमाला- के प्रमाण में विजयी को लिख देता है। विजयपत्र । उ०- मानस, १ । २६४। मम जयपत्र सकारि पुनि सुंदर मुहि अपनाय। -भारतेंदु जयमाल्य-पञ्चा पुं० [सं० जय+माल्य ] दे० 'जयमाल'। प्र०, मा०, १, पृ०६०८ । २. वह राजाज्ञा जो पर्या प्रत्यर्थी जययज्ञ-मधा पुं० [सं०] अश्वमेध यज्ञ। के बीच विवाद के निबटारे के लिये लिखी जाय। वह कागज जयरात--सबा पुं० [सं०] कलिग देश के एक राजकुमार का नाम जो जिसपर राजा की भोर से किसी विवाद का फैसला लिखा हो। कौरवो की भोर से महाभारत के युद्ध में लड़ा था भौर भीम विशेष-प्राचीन काल में ऐसे पत्र पर वादी और प्रतिवादी के के हाथ से मारा गया था। कपन, प्रमाण मोर धर्मशास्त्र तया राजसभा के सम्यों के मत जयलक्ष्मी -सका स्त्री॰ [सं०] दे० 'जयश्री'। लिखे हुए होते थे और उसपर राजा का हस्ताक्षर पौर मोहर जयलेख-सका पु० [सं० दे० 'जयपत्र। होती थी। जयवाहिनी--सज्ञा स्त्री० [सं०] १ इंद्राणी। शची। २. विजय करने- जयपत्री-सका स्त्री० [सं०] जावित्री। वाली सेना [को०] । जयपराजय-मझा श्री- सं० जय+पराजय] दे० 'जयाजय'। जयशाली-सहा पुं० [सं० जय + शाली] यादव घंश के प्रसिद्ध जयपाल-सबा पुं० [20] १ जमालगोटा । २ ब्रह्मा का एक नाम राजा जिन्होंने जैसलमेर नगर बसाया और वहाँ का किला (को०) 1३ विष्णु। ४ राजा। बनवाया था। जयपुत्रक-सज्ञा पुं० [सं०] प्राचीन काल का गुमा खेलने का एक विशेष-अपने पिता के सबसे पडे पुत्र होने पर भी पहले इन्हें प्रकार का पासा। राजसिंहासन नहीं मिला था। पर अपने छोटे भाई के मर जाने जयप्रिय-सका ० [सं०] १ राजा विराट के भाई का नाम । २. पर इन्होंने शहाबुद्दीन गोरी से सहायता लेकर अपने भतीजे ताल के साठ मुख्य भेदों में से एक । मोजदेव को मारा पौर राज्याधिकार प्राप्त किया था। विशेप-इसमें एक लघु, एक गुरु पौर तय फिर एक लघु होता सिंहासन पर बैठने के बाद सवत् १२१२ में इन्होने जैसलमेर नगर बसाया मोर किला बनवाया था। है। यह तिताला ताल है और इसका बोल यह है,-ताह । घिधिकिट ताहं गन यों। जयश्रृंग-सज्ञा पुं० [सं० जयशृङ्ग] विषष की घोषणा के निमित्त जयफर-ससा पुं० [हिं० जायफल ] दे० 'जायफल । ३०-जयफर बजाया जानेवाला सींग का बाजा (को०] । लोग सपारि छोहारा। मिरिच होई जो सहै न झारा।- जयश्री-सशास्त्री० [सं०] १. विजय की अधिष्ठातृ देवी विज्यलक्ष्मी जायसी (शब्द०)। २. विजय । जीत। ३ ताख के मुख्य साठ भेदों में से एक । जयभेरी-सका पु० [सं०] विजय डका । जीत का नगाड़ा [को०)। ४ देशकार राग से मिलती जुलती सपूर्ण जाति की एक रागिनी जो सध्या के समय गाई जाती है। कुछ लोग इसे जयमंगल-सहा पुं० [सं० जयमङ्गल ] १ बद्द हाथी विसपर राजा विजय करने के उपरांत सवार होकर निकले। २. राजा के देशकार राग की रागिनी मानते हैं। सवार होने योग्य हाथी । ३ ताल के साठ भेदों में एक। जयस्तम-सक्षा पुं० [सं० जयस्तम्भ ] वह स्तम जो विजयी राजा विशेष-यह शृगार भौर वीर रस में बजाया जाता है। यह फिसी देश का विजय करने के उपरांत पपनी विजय के चौताला ताल है और इसका वोल यह है-तकि तकि । । स्मारक स्वरूप बनवाता है । रि ग्यसूचक स्तभ । दातकि । धिमि घिमि । थों। जयस्वामी-सज्ञा पुं० [सं० जयस्वामिन् । १ शिव का एक नाम । ४ ज्वर की चिकित्सा में प्रयुक्त मायुर्वेदीय जयमगल नामक २छादोग्य सूत्र तथा प्राश्वलायन ब्राह्मण के व्याख्याता [को०] । रस (को०)। ५. विजय की खुशी । जय का मानद (को०)। जया—संघा सी० [सं०] १. दुर्गा का एक नाम । २. पार्वती का