पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५९

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जयारे __ १७०२ जरकटो एक नाम । ३. हरी दूब । ४..अरणी नामक.वृक्ष। ५ जयती जय्य-वि० [सं०] जय करने योग्य । जो जीतने योग्य हो। या जत का पेह । ६. हरीतकी। हड़ । ७ दुर्गा की एक सहचरी जरंड-वि० [सं० जरठ ] क्षीण । वृद्ध । पुराना को का नाम । ८. पताका । ध्वजा । -६. ज्योतिष शास्त्र के जरंत-सचा पु० [सं० जरन्त ] १. वृद्ध व्यक्ति । धूदा प्रादमी। २. अनुसार दोनों पक्षो की तृतीया, अष्टमी और प्रयोदशी तिथियो। महिष । भैंसा [को०] । १० सोलह मातृकामों में से एक । ११. माघ शुक्ल एकादशी। जर' -सधा पुं० [सं० जरा ] जरा। वृद्धावस्था । १२ एफ प्राचीन बाजा जिसमे बजाने के लिये तार लगे होते न जर'-वि० [सं०] १. क्षय होने या जीणं होनेवाला । २ क्षीण। थे। १३. जया पुष्प । गुड़हल का फूल । घडहुल । १४. भौग। जर'- १५ शमीवृक्ष । छौंकर । वृद्ध । पुराना । ३ क्षय या जीणं करनेवाला [को०] । जया-वि० [सं०] जय दिलानेवाली । विजय फरानेवाली । उ०- जर --या पुं० [सं०] १. नाश या जीर्ण होने की क्रिया। २ जैन दर्शन के अनुसार वह कर्म जिससे पाप, पुण्य, कलुष, राग- तीज अष्टमी तेरसि जया । चौथी चतुरदसि नौमी रखया। द्वेषादि सब शुभाशुभ कर्मों का क्षय होता है। - -जायसी (शब्द०)। जयाजय-सचा पुं० [सं०] जय और पराजय । जीत हार [को० जर'-सक्षा ० [सं० ज्वर] दे० 'ज्वर' । उ०-खने सताप सौत जर - जाए। की उपचरथ संदेह न छोड़।-विद्यापति०, पृ० १३७ जयादित्य-सक्षा पुं० [सं०] काश्मीर के एक प्राचीन राजा का नाम जो काशिकावृत्ति के कर्ता थे। जर -सझ ० [ देश० ] एक तरह का समुद्री सवार । कचहरा ।- (लश०)। जयाद्वय-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] नयती मोर हड़ । जर-सहा स्त्री० [हिं० जह] दे० 'ज'। जयानीक-सहा पुं० [सं०] १. पद राना के एक पुत्र का नाम २. राजा विराट के एक माई का नाम । . जर -संज्ञा पुं० [फा० जर ] १ सोना । स्वणं। - जयापीड़-सक्षा पुं० [ म० ] काश्मीर के एक प्रसिद्ध राजा गो ईसवी यौ०-जरफस = दे० 'जरकरा' । जरकार =(१) स्वर्णकार । माठवी शताब्दी मे हुए थे। सुनार (२) सोने का काम की हुई वस्तु । नरगर । जरदोजो। विशेष-ये एक बार दिग्विजय करने के लिये निकले थे, पर जरनिगार । जरनिगारी । जरवक्त । बरवाफ्ता । भरदोज। रास्ते में सैनिक इन्हें छोड़कर भाग गए। इसपर ये प्रयाग २ धन । दौलत । रुपया । उ०-जर ही मेरा मल्लाह है जर चले गए थे जहां इन्होंने RECEE घोडे दान किए थे। राम हमारा ।--भारतेंदु म, भा० १, पृ० ५१५ । पावती-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ कातिकेय की एक मातृका का यौ०-जरअस्ल = मूलधन । सरसरीद । सरगर । गर गिरी' नाम । २. एक संकर रागिनी जो धवलश्री, बिलावल भौर हिंगरी की रकम । जरदार । जरनपद % रोकष्ट । नकद । सरस्वती के योग से बनती है। रुपया। जरनोलाम- नीलामी से प्राप्त धन । जरपेशगी- यावह-वि० [सं० जय+प्रावह ] जय प्राप्त करानेवाला को। अग्निम धन । दयाना। यावहा-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] मद्रदती का वृक्ष । जरई-सज्ञा स्त्री० [हि० जड ] धान प्रादि के वे वीज जिनमें अकूर जयाश्रया-सचा स्त्री० [सं०] जरड़ी घास ! . निकले )। । जयाश्व-सट्टा पुं० [सं०] राजा विराट के एक भाई का नाम । विशेष-धान को दो दिन तक दिन में दो बार पाना से भिगोते जयाहया, जयाह्वा-शा स्त्री॰ [सं०] ३० 'जयावहा' । • हैं, फिर तीसरे दिन उसे पयाल के नीचे ठककर ऊपर से पत्थरों - से दधा देते हैं जिसे 'मारना' कहते हैं। फिर एक दिन तक उसे जयिष्णु-वि० [सं० [सं०] जयशील । जो जीतता हो । - - - - उसी तरह पड़ा रहते देते हैं, दूसरे या तीसरे दिन फिर खोलते - जयी'---वि० [सं० जयिम् ] [वि॰ स्त्री० जयिनी ] विजयी ।.. है । उस समय तक बीजो मे से सफेद सफेद मकुर निकल पाते जयशील .... हैं। फिर उन्हें फैला देते हैं और कभी कभी सुखाते भी है। जयी-सचा स्त्री० [सं०. यव ]-दे० ' . ऐसे बीजो को जरई पौर इस क्रिया को 'बरई करना' कहते जयेंद्र-सधा पुं० [सं० जयेन्द्र ] काश्मीर के राजा विजय के पुत्र का है। यह जरई खेत में वोने के काम माती है और शीघ्र जमती .. _ नाम जो भाजानुबाहु थे। । है। कभी कभी-घान की मुजारी भी बद पानी में चल दी जयेत्-सका पुं० [सं०] पाव जाति के एक. राग, का.. IIम जो जाती है और दो तीन दिन तक वैसे ही ,पडी रहती है, चौथे पूरिया और कल्याण के योग से बनता है। इसमे पचम स्वर दिन उसे खोलते हैं। उस समय वे बीज जरई हो जाते हैं। नही लगता। ... ...२ ...कभी कभी इस बात की परीक्षा के लिये कि वीज जम गया जयेद्गौरी-पया स्त्री० [सं० सं० जयेत् + गौरी = जयेद्गौरी] । या नहीं, भिन्न भिन्न मानो को भिन्न भिन्न रीति से जरई एक सफर रागिनी जो जयेत् और गौरी के मेल से बनती है। की जाती है। .... __जयंती-सश स्री [म०] एक संकर रागिनी जो गौरी और जयश्री २'दे० 'जई'।.. 'के मेल से उत्पन्न होती है। यह सामत, ललितं और पूरिया "जरकटी-सक्षा पु०' [देश॰] एक शिकारी पक्षी। उ०-जुर्रा बाज प्रयवा टोड़ी, सहाना और विमास राग के योग से भी वन बाँसे कुही बहरी लगर लोने, टोने जरकटी त्यो शचान सान सकती है। पार है।-रघुराज (शब्द॰) ।