पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/६०

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जरकस, जरकसी १७०५ जरद अंची जरकस, जरकसी-वि० [फा० पारकश ] १. जिसपर सोने प्रादि जरठ-वि० [सं०] कर्कश । कठिन । २ वृद्ध । बुड्ढा । उ.- के तार लगे हो। उ०—(क) छोटिए धनुहियाँ पनहिया जरठ भय मन्त्र कह रिद्धेसा । —मानस, ४२६ 1 3 जीर्ण । पगन छोटी, छोटिए कयोटी कटि छोटिए तरकसी। लसत पुराना। ४ पांडु । पीलापन लिये सफेद रग का । भंगली झीनी दामिनि की छवि चीनी सुंदर बदन सिर जरठ-सचा पु० बुढ़ापा । पगिया जरकसी । -तुलसी (शब्द०)। (ख) अब झकि जरठाईg..-सा पी० [सं० बरठ] बुढ़ापा । वृद्धावस्था । जीरणं - झाँकि झमकि मुकी उमकि झरोखे ऐन । कसे कचुकी जरकसी प्रवस्था । लमी बसी ही नैन :-शृं० सत० (शब्द) ! जरडी-सहा ली० [सं०] एक घास का नाम जिसे खाने से गाय जरकसि -वि० [हिं०] दे० 'जरकसी' । उ०-पहिरे जरकसि पर भैस अधिक दूध देती हैं। मामूपण अंग अंग नैति रिझाय |--नद० ग्र०, पृ० ३४६ । विशेप-चैटाक मे इसे मधुर, शीतल, दाहनाशक, रक्तशोधक जरसरीद-वि० [फा० जरखरीद ] मक्द दाम देकर खरीदी हुई और रुचिर माना है। जमीन जायदाद जिसपर खरीददार का पूर्ण अधिकार हो । पो०-गर्मोटिका । सुनाला । जयाप्रया। 30-जब देखो तब तू ते-चुप । गोया बेटा नहीं जरखरीद जरण-सझा पुं० [सं०1१ हींग । २. जीरा । ३. काला नमक । गुलाम है। -भारावी, पू० १७१ । सौवचंल । ४. कासमद । कसौजा। ५. जरा । बुढापा । ६ जरखेज-वि० [फा० जरखेज ] उपजाक। जिसमें ग्व अन्न पैदा दस प्रकार के ग्रहों में से एक जिसमें पश्चिम से मोक्ष होना होता है । उवंग ( अमीन का विशेषण)। प्रारम होता है । ७ सुफेद जीरा । जरखेजी-सज्ञा स्त्री॰ [फा० पारखेजी ] उर्वरता । उपजाऊपन । जरणद्रुम-सहा पुं० [सं०] १. साखू का धृक्ष । सागौन का पेड।। जरगर-संज्ञा पुं० [फा० जरगर) स्वर्णकार । सुनार [को०)। जरण-सहा श्री० [सं०] १ काला जीरा । २ दृद्धावस्था । जरगह-सज्ञा स्त्री० [फा० जर+जियाह ] एक घास जिसे चौपाये बुढापा । ३ स्तुति । प्रशसा । ४. मोक्ष । मुक्ति । वहे स्वाद से खाते हैं। जरत-वि० [सं०] [वि० स्त्री० जरना] १ बुढा । वृद्ध । २ विशेष-यह घास राजपूताने प्रादि में बहत वोई जाती है। बहुत दिनों का। किसान इसे खेतों में कियारियां बनाकर बोते हैं और छठे जरत्-सहा एक वृद्ध व्यक्ति । पुराना पादमी [को०] । सातवें दिन पानी देते हैं। पद्रह बीस दिन में यह काटने लायक जरत-इंच. पु० [सं०] १. वृद्ध व्यक्ति । पुराना प्रादमी। २ हो जाती है । एक बार वोने पर कई महीनों तक यह बराबर सांड [को०)। पद्रहवें दिन काटी जा सकती है। यह दाने की तरह दी जाती जरता बलता-सा पुं० [हिं०] दे० 'जलना के प्रतर्गत 'जलता बलता'। है और न घोडे इसके खाने से जल्दी तैयार हो जाते हैं। जरतार -पक्षापुं० [फा० जर+तार] सोने या चाँदी पादि का जरगा-संज्ञा श्री० [फा० जर+जियाह ] दे० 'अरगह। तार । जरी। उ०-बीच जरतारन की हीरन के हार को जरज-मश पुं० [देश॰] एक कंद जिसकी तरकारी बनाई जगमगी ज्योतिन की मोतिन की झालरें।-देव (शब्द०)। __ जाती है। जरसारा-वि० [हिं० जरतार ] [वि० मी० जरतारी ] जिसमें विशेष-यह दो प्रकार का होता है। एफ की जड गाजर या सुनहले या रुपहले तार लगे हो। जरी के काम का । 30- मूली की तरह होती है पौर दूसरे की जड शलजम की तरह जरतारी मुख पै सरस सारी सोहत सेत । सरद जलद मिद होती है। जलज पर सहज किरन यदि देत ।-स० सप्तक, पु० ३४५ । जरजर -वि० [सं० जर्जर ] [ वि० स्रो० जरजरी ] ३० 'जर्जर'। जरता :-वि० [हिं० जलना] जो दूसरों को देखकर वहन उ.-(क) सविषम खर शरे अंग मैल जरजर कहइते के जलता या बुरा मानता हो। ईर्ष्या करनेवाला । पतियाइ । -विद्यापति, पृ. ४८२ (ख) नाव जरजरी जरतिका, जरती-समा स्त्री॰ [सं०] घृदा स्त्री । बूढी महिला। भार बहु खेवनहार गवार --दीन० प्र०, पृ० ११३॥ जरजराना-मि० अ० [स० जर्जर ] जरित होना । जी हाना। जरतुश्त-सक्षा पुं० [फा० जरतुश्त ] दे० 'जरदुएत' ।। जरजरी- समालो० [हिं० जह+जडी ] जड़ी बूटी। सुनहरी जरत्करण-खी० [सं० ] एक वैदिक पि का नाम । . जदी। १०-नाग दवनि जरजरी, राम सुमिरन वरी, भनत जरत्कारु'-सझा पु० सं०] एक पि का नाम जिन्होंने चासकि रैदास चेत निमैता।-२० वानी, पृ० २०॥ नाग की कन्या से व्याह किया था। प्रास्तिक मुनि इनके जरछा-वि० [हिं० जरना +० क्षार ] १. भस्मीभूत । पुत्र थे। २ नष्ट। जरत्कारुर-सष्ठा [सं०] जरत्कारु ऋपि की श्री जो वासुकि जरजाल- पुं० [म. जर+फा० जलूक ( = गोली घरी) लोहे नाग को कन्या थी । इसका नाम मनसा भी था। के तारों में बंधे हुए बहुत मे फल छुरी इत्यादि जो तोप में जरद-वि० [फा० वा ] पीला । जर्द । पीत । उ०-पो जरद भर के छोडे जाते हैं। उ०—लिए तुपक जरजाल अमूरे। से दुसाला यारी केसर की सी क्यारी है।-धनानद, पृ० १७६ । भरि वान वल पूरे।-हम्मीर०, पृ. ३० । जरद अंडो-संशा स्त्री० [फा० जर्द, हि. जरद+पछी] काली