पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/६१

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जरदक जरनिगारी मंथो की तरह की एक प्रकार की वही झाडी जिसकी लंबी विशेष-ये ईसा से ६ सौ वर्ष पूर्व ईरान के शाह गुस्ताप के टहनियों के सिरों पर कांटे होते हैं। समय में हुए थे। इन्होंने सूर्य भौर पग्नि की पूजा की प्रथा विशेष—यह देहरादून से भूटान पौर ससिया की पहाडी तक चलाई थी मोर पारसियों का प्रसिद्ध धर्मग्र थ 'जद भवस्था' ७००० फुट की ऊंचाई तक पाई जाती है। दक्षिण मे कनाडा (जद मवेस्ता) बनाया था। ये 'मीनू चेह' के यशज और (कनारा, कन्नर) मोर लका तफ भी होती हैं। इसमें फागुन यूनान के प्रसिद्ध हकीम 'फीसा गोरस' के शिष्य थे। शाहनामे चैत में फूल लगते हैं जो कच्चे भी खाए जाते हैं और प्रचार मे लिखा है कि जरदुपत तुरानियों के हाथ से मारे गए थे। डालने के काम माते हैं। इनको जरतुश्त पौर जरयुस्त्र भी कहते हैं। जरदक-सहा पुं० [फा० जरदक ] जरदा या पीलू नाम का पक्षी। जरदोज--सबा पु० [फा० जरदोज ] [ सपा ज़रदोजी 1 वह मनुष्य जो कपडों पर कलाबत्तू पोर सलमे सितारे भादि का काम जरदष्टि--वि० [सं०] १. वृद्ध । बुड्ढा । २ दीर्घजीवी। बहुत करता हो। जरदोजी का काम करनेवाला। दिनों तक जीनेवाला। . जरदोजी-सक्षा पु० [फा०] एक प्रकार की दस्तकारी जो कपडों जरदष्टि-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ बुढापा । वृद्धावस्था । २ दीर्घ- पर सुनहले कलाबत्तू या सलमें सितारे मादि मे की जाती है। जीवन । उ.-सुवरन साज जीन जरदोजी । जगमगात तन अगनित जरदा-मक्षा पुं० [फा० जर्दह, ] १ एक प्रकार का व्यजन जिसे ओजी- हम्मीर०, पृ०३।। प्राय मुसलमान लोग खाते हैं। जरदुगव'---सच्चा पुं० [सं०] १ बुढा बैल । २ वृहत्सहिता के विशेष- इसके बनाने की विधि यह है कि चावल में पहले हल्दी अनुसार एक वीषी जिसमे विशाखा, पनुराधा और ज्येष्ठा डालकर उसे पानी में उबालते हैं। फिर उसमें से पानी पसा नक्षत्र हैं। यह चद्रमा की चीथी है। लेते हैं मोर उसे दूसरे बर्तन में घी डालकर शक्कर के शर्बत में पकाते हैं। पीछे से इसमे लौंग, इलायची प्रादि सुगषित द्रव्य जरद्गव-वि० जीएं। प्राचीन । और मसाले छोड दिए जाते हैं। जरद्विष-सज्ञा पुं० [सं०] जल । २. एक विशेष क्रिया से बनाई हई खाने की सूषित सूरती। जरनकुम--सहा स्त्री० [हिं० 1 दे० 'जलन'। विशेष-यह प्राय काले रग की होती है और पान दोहरा, पादि जरनल'---सला पुं० [4. ] वह सामयिक पत्र या पुस्तक जिसमे क्रम के साथ खाई जाती है। यह पीले और लाल रंग की भी से किसी प्रकार की घटनाएँ आदि लिखी हों। सामयिक पत्र । बनाई जाती है। वाराणसी इसका एक प्रमुख व्यापार- जरनल-सज्ञा पुं० [अ० जेनरल ] दे॰ 'जनरल' । केंद्र है। जरनलिस्ट- सज्ञा पुं॰ [म. जर्नलिस्ट ] दे० 'पत्रकार'। यो०-जरदाफरोश जरदा बेचनेवाला। जरना--फि०प० [हिं० जनना] दे॰ 'जलना' । उ०-देखि जरनि ३ पीले रंग का का घोडा। 30---जरदा जिरही जांग सुनौची जड नाति की रे जरति प्रेत के सग ।-सूर०, १३२५ । ऊदे खजन । -सुजान०, पृ०८।४ पीली पांख का कबूतर। जरना -कि० प्र० स० जटन, हि० जना ] दे० 'जहना'। ५ पीले रंग की एक प्रकार की छोट। उ०-नग फर मरम सो जरिया जाना । जरे जो मस नग जरदार--सका पुं० [फा. जरदक ] एक प्रकार का पक्षी। पीलू । हीर पखाना ।-जायसी न (गुप्त), पृ. २४१ । विशेष-इसकी कनपटी पोली, पीठ खानी, पेट सफेद भोर चोंच जरनि-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० जरना (= जलना) १ जलने की पीडा तथा पैर पलि होते हैं। इसे पीलू भी कहते हैं। जलन । उ-पानी फिरे पुकारती उपजी जरनि अपार । जरदार- वि० [फा० जर+दार ] अमीर । धनवान । उ०-~-हुमा पावक पायौ पूछने सुदर चाकी सार -सुबर प्र०, भा० २. मालुम यह गुचे से हमको । जो कोई जरदार है सो तंग दिल पृ० ७२८ । २ व्यथा। पीडा ! उ.-(क) ताते ही देत न है। कविता को०, मा०४, पृ० ३० । दूखन तोहैं। राम विरोधी उर कठोर ते प्रगट कियो है विधि जरदालू-सक्षा पुं० [फा० जरदालू ] खूबानी नाम फा मेवा । मोहूँ। सुदर सुखद सुसील सुधानिधि जरनि जाय जेहि जोए। विशेष-दे० 'खूबानी'। विप वारुणी बधु कहियत विघु नातो मिटत न धोए।-तुलसी (शब्द॰) । (ख) प्रापनि दारुन दीनता कहउँ सहि सिर जरदी-सशा बी० [फा० जरदी ] पिलाई । पीलापन । नाइ। देखे,विन रघुनाथ पद जिय की जरनि न जाइ-तुलसी मुहा०---जरदी छाना=किसी मनुष्य के शरीर का रग बहुत (शब्द०)। (ग) देखि अरनि जड नारि की रे जरति प्रेत के दुर्बलता, खून की कमी या किसी दुर्घटना आदि के कारण सग । चितान चित फीको भयो रे रची जु पिय के रग। पीला हो जाना। -सूर०, ११३२५। २मरे के भीतर का वह चेप जो पीले रंग का होता है। जरनिगार--वि० [फा० जरनिगार ] सुनहरे कामवाला। सुनहरे रदुश्त-- ० [फा० जगदुश्त, मि० सं० जरदष्टि (= दीघजीवी, रग का ! वृद), अथवा सं० जरत्त्वष्ट्र (= एक ऋषि)] फारस देश के जरनिगारी-सक्षा [ फा. जरनिगारी] सुनहरा काम । सोने का प्राचीन पारसी धर्म के प्रतिष्ठाता एक प्राचार्य । पानी । मुलम्मा। .