पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/६५

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जरूला जलंग फाम न चले। प्रयोजनीय। २ जो अवश्य होना चाहिए। यौ०-जगोश = छली। पूत। मस्कार । जर्दचश्म= (१) मावश्यक । सापेक्ष्य । श्येन जाति के शिकारी पक्षी । (२) पीली मांखोंवाला। जरूला -वि० [सं० जटा+हिक वाला (प्रत्य॰): थयथा हि का। जर्दचोव-हरिद्रा । हल्दी। कला (प्रत्य॰)] १. गर्भकालीन केगोवाला । गर्मोस्पन्न फेश जर्दा-सक्षा पुं० [ फा० जदह ] दे० 'जरदा' । या जटा से युक्त । उ०--नित ही प्रजजन हित पनुकूली। जर्दालू----सशा पु० [फा. जालू ] एक मेवा । जरदालू । खुबानी। जसुदा जीवन लला जरूली।--धनानंद०, पृ० २३२ । २ विशेष--दे० 'खूमानी'। जट्टल । जन्मजात लक्षण चिह्नों से युक्त ।। जर्दी-सक्षा बी० [फा०] पीलापन । पीलाई । वि.. 'जरदी'। जरोटन-सा बी० [सं० जलाटनी] जोक। उ०-फोर फजरारी जर्दोज--सहा पु.[फा०पारदोज ] दे० 'जरदोज'। कैषों फरफत फेर फेर, सूकत जरोटन की थिरक यकैसी सी। सा सा । जर्दोजी-सका सीजरदोजी] दे॰ 'जरदोजी', --पजनेस०, पृ०६। जर्नल- पं० [अ.] दे० 'जरनल'। जरोल-सहा पुं० [देश॰] एफ पेड जिसकी लकडी बहुत मजबूत जर्नलिस्ट- पुं० [अ० दे० 'पत्रकार। होती है। जर्फ-सम पुं० [५० जर्फ] १ परतन । भाजन । पात्र । २. विशेष- यह इमारत, जहाज और तोपों के पहिए बनाने के काम माती है। यछ वगाल मे, विशेषकर सिलहट के कछार में, योग्यता। पात्रता । ३ सहनशीलता। गंभीरता [को०] पटगाव और उत्तरी नीलगिरि में बहुत होता है। जरी'-सा पुं० [प्र. ज़रंह ] १ प्रणु। २.वे छोटे छोटे कण जो सूर्य के प्रकाश में उड़ते हुए दिखाई देते हैं। ३. जी का जरीट -वि० [हिं० महना] जहाऊ । उ०—कोक कजरीट जरौट लिए फर कोट मुरछल कोऊ छाता।-रघुराज (शब्द॰) । सौवा भाग । ४. बहुत छोटा टुकड़ा या संर। जबर्क-वि० [फा० जर्क बकं ] जिसमें खूब तडक भडक हो। जर्रा--वि० दे० 'जरा'। ___ भरकीला । धमकीला । भहकदार। जर्रा--सक बी. सपस्नी । सौत । सौकन । जर्जर'- वि० [स०] १ जीणं । जो बहुत पुराना होने के कारण जरांक-वि० [ पं० जर्राक ] पूर्व । मुहदेखी कहनेवाला । द्विजिह । बेकाम हो गया हो। २. फूटा। टूटा। खहित । ३ वृद्ध । यो०--जर्राकखाना-धूर्तावास । धूतों की बैठक। युवा । ४ ( ध्वनि) जो किसी पात्र के टूटने से हो (को०)। जरीद-वि० [अ० जदि ] जिरहवस्तर बनानेवाला। शल जर्जर'-सहा पुं० १ छरीला । बुढ़ना । पत्थरफूल । २ इद्र की निर्माता। पताका (फो०)। यौर-दिखाना = शस्त्रागार। जनरानना-साली० [म. जर्जराना] एक मात्रिका का नाम जो जर्राफ-वि० [अ० जर्राफ] १ हसोह। दिल्लगीवाज । २ कार्तिकेय की मनुचरी हैं। प्रतिमाशील (को०)। जर्जरता-सहा श्री० [म० जर्जर+हिं० ता (प्रत्य.)] पुरानापन। जर्रार-वि० [सं०] [ समा जर्रारी ] १ बलिष्ठ । प्रबल । २. जीता। 30-स्मृति चिह्नों की जर्जरता में। निष्ठुर कर लडाका । बहादुर । बीर। ३. विशाल । भारी ( सेना या की वर्षरता में 1-लहर, पृ० ३४ । भीड । जाजोरित-वि० (म० जनन्ति] १ जीरणं । पुराना । २ टूटा। फूटा। सत-सज्ञा पं० प्र० जरिह. १ बहत विशाल सेना।२ एक खडित । ३ पूर्णत पाक्रांत या पमिभूत । भयंकर विषैला चिच्छू जिसकी पंछ जमीन पर घिसटती जर्जरीक-वि० [सं०] १ बहुत वृद्ध । बुढा । २ जिसमें बहुत से छेद चलती है [को०]। हो गए हो। भनेक छिद्रवाला। जर्राही--सक्षा श्री० [५० जर्रार+ई (प्रत्य॰)] बहादुरी। जर्ण --सबा पु० [सं०] १, (घटता हपा या कृष्ण पक्ष फा) चद्रमा । वीरता। सूरमापन । २ धूक्ष । पेड़। जर्राह-सक्षा पुं० [1. ] [ सहा जरहिी] चीर फार का काम जर्णर-वि० जाणं । पुराना क्षीण। करनेवाला । फोहोंपादिको चीरकर पिफित्सा करनेवाला। जा-समा, स्त्री० [हि• जलना, पु.हि. परना] विरह । वियोग। शलचिकित्सक । शल्यरिकित्सक। जलन । जैसे, जर्गा को प्रा। जरोही-समा स्त्री० [म.] चीर फार का काम । चीर फाड की जत-सक्षा पुं० [सं०] १ हाथी । २. योनि । सहायता से चिकित्सा करने का फाम। शस्त्रचिकित्सा । जतिक-सापु० [सं०] १ प्राचीन वाहीक देश का एक नाम । २ शल्यचिकित्सा। उक्त देश का निवासी। जर्वर-~-साझा पुं० [सं० ] नागों के एक पुरोहित का नाम निसने एक जतिल-सया पुं० [सं०] जगली तिल । बनतिलया । चार यज्ञ करके सांपों की रक्षा की थी। जत्त-सहा ० [सं०] दे॰ 'जतं'। जहिल-सधा पुं० [सं०] जगली तिल । पतिल । जर्द- िme s} पीला। पीले रंग का पीत । जलंग'--सबा पुं० [ सं० जलङ्ग ] महाकाल नाम की एक सवा ।