पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/६६

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जलंग जलकाय जलंग-वि. जलमबंधी । जनीय । जल का। जलई-सका श्री० [हिं० जडना या बीजल 1 वह कोटा जिसके जलंगम-मक्षा पुं० [ म० खलङ्गम ] चांगल दोनों प्रोर दो पंकुड़े होते हैं और दो तस्तों के पोर पर जलती -वि० [हिं० जालना] जलनेवाली। जलती हुई। जडा जाता है। यह प्राय नाव के तल्लों को जहने में काम प्रज्वलित । १०-तन भीतर मन मानिया बाहर फहूँ न । माता है। लाग । ज्वाला ते फिर जल मया बुझी जलती पाग।- जलकंटक-मा पु० [सं० जलकण्टक] १. सिंधारा २ फुमी। कवीर मा० स०, पृ०, ४५ जलदु-सफ पुं० [सं० जलकराड एक प्रकार की खुजली जो पानी जलंघर-संशपुं० [सं० जलन्धर ] १ एक पौराणिक राक्षस का। मे बहुत फाल तक लगातार रहने से पैरों में उत्पन्न होती है। नाम जो शिव जी की कोपाग्नि से गगा-समुद्र-सगम में उत्पन्न जलकंद-संहापु० [सं० जलकन्द ] १ फेला । फदसी। २ कांदा। हुमा था। जसकंदरा। विशेष-पद्य पुराण में लिखा है कि यह जनमते ही इतने जोर जलकदरा-सया पुं० [सं० जल+कन्दली] फांदा नामक गुल्म जो से रोने लगा कि सब देवता व्याकुल हो गए। उनकी भोर से प्राय. तालों के किनारे होता है। जय ब्रह्मा ने जाकर समुद्र से पूछा कि यह किसका लड़का है तब जलक-समा पु० [सं०] १ शख । २ फोही ! उसने उत्तर दिया कि यह मेरा पुन है, माप इसे ले जाइए। जलकपि--साठा . [सं०] शिशुमार या सूस नामक जलातु । जब ब्रह्मा ने उसे अपनी गोद में लिया तब उसने उनकी दादी जलकपोत-समापु० सं०] एक प्रकार की चिपिया जो पानी में इतने जोर से खीची कि उनकी प्रांखों से प्रासू निकल पड़ा। किनारे होती है। इसी लिये ब्रह्मा ने इसका नाम 'जलघर' रहा। बड़े होने पर जलकना-कि०० [हिं० झलकना] चमकना । जगमगाना। इसने इद्र की नगरी अमरावती पर अधिकार कर लिया। देदीप्यमान होना। उ०-खिलवत से निकल जलकते दरयार प्रत में शिव जी इद्र की ओर से उससे लड़ने गए। उसकी मे पाया ।-कचीर म०, पृ० ३६०। स्त्रीदा ने, जो कालनेमि की कन्या थी, अपने पति के प्राण जलकरंक- ० [सं० जलकरडू] १ नारियस । २. पद्म। वचाने के लिये ग्रह्मा की पूजा प्रारम की। जब देवतामों ने कमल । ३ शख । ४ लहर । तरग । जललता । देखा कि जलधर किसी प्रकार नहीं मर सकता तय प्रत में जलकर--सहा पु० [हि. जल+ फर] १ यह पदार्थ जो जलाशयों “जलघर का रूप धारण करके विष्णु उसफी स्त्री यू दा के मादि मे हो और जिसपर जमींदार की पोर से कर लगाया पास गए। चू दा ने उन्हें देखते ही पूजन छोड़ दिया। पूजन जाय। जैसे, मछली, सिंघाड़ा, कवलगट्टा आदि। २ इस छोडवे ही जलधर । प्राण निकल गए। वदा ऋद्ध होकर प्रकार के पदार्थों पर का कर । ३. वह द्रव्य या कर जो शाप देना चाहती थी पर ब्रह्मा के बहुत कुछ समझाने नगरों में पानी देने के बदले में नगरपालिकाएँ वसूस करती बुझाने पर वह सती हो गई। है। पानी का कर। २ एक प्राचीन कापि का नाम । ३ योग का एक वध । जलकल-सहा पुं० [हिं०] पानी परमाने की कल । पानी का नल । जलंधर-समा पु. [ हि. जलोदर ] दे० 'जलोदर'। यौ०–जसकन विभाग-दे० पाटर घो। जलबलसज्ञा पुं॰ [ म० जलम्बल ] १ नदी । २ भजन । जलफल्क-सज्ञा पुं० [सं०] १ सेवार। २ फीस काई। जल-वि० मु.]१ स्फूविहीम। ठढा । जरू। २ मूढ़। जलकल्मष-सपा पुं० [सं०] समुद्रमंचन में निकला हुमा विप (को। हतज्ञान [को०)। जनकप्ट-समा० [सं० जल+फष्ट जन का प्रभाष । पानो जल-संक्षा पुं० [सं०११ पानी । २ उशीर । यस । । पूर्वापादा की कमी। नक्षत्र ज्योतिष के अनुसार जन्मकुडली में चौपा स्पान । जलकांक्ष-संपा० [सं० जलका क्ष] [बौ• जसकाक्षी] हापी। १. सगषवाला। नेत्रपाला। ६ धर्मशाल धनुसार एक जनकोत--सह #०जनकान्त] वायू । हवा । पवन । प्रकार की परीक्षा या दिव्य । वि० दे० 'दिव्य'। जलकांतार-मंगा पुं० [सं० बलकान्तार] वरुण । जलअलि-सज्ञा पुं० [सं०] १ पामी का घर। २. एक फासा जलकादा-पहा पुं० [हि. जल+कावा] दे. कांदा'। की ढा जो पानी पर तेरा करता है। परीवा। भौंपा। २०--भरत दशा तैहि अवसर कैमी । जल प्रवाह जस अलि जलकाफ-ससा [मं० ] जसकोमा नामक पधौ। गति जैसी।---तुलसी (शब्द०)। पर्या-दारपूहा कालबाटक । विशेप-इसकी वनावट खटमल की सी होती है, परतु माकार जलकामुक-HT पुं० [म.) १ सूर्यास्त्री। २ मुद विनी नाम का में यह खटमल से पहत वहा होता है। इसका स्वभाव है गुल्म (को०)। कि यह प्राय एक पोर घूम घूमफर तैरता है। जलप्रवाह जलकाय-सपा [20] जैन शास्त्रानुसार वह शरीरवारी जिन के विरद्ध भी यह तेजी से तर सफता है। जल ही शरीर है। ४-७