पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/६७

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जलकिनार जलचादर जलकिनार-सहा पुं० [हिं० जल+फिनारा] एक प्रकार का रेपामी तागे की जाल की धनी हुई थेली या झोली जिसमें लोग फल कपडा। मादि रखकर एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाते है। जलफिराट-सझा पुं० [सं०] ग्राह या नाक नामक जलजतु । जलखावा--सक्षा पुं० [हिं० जल+खाना जलपान । फलेया। जलकुंतल-सहा पुं० [सं० जलान्तल] सेवार । जलगद-सझा पुं० [सं० जल+फा ग] पानी में रहनेवाला साप । डेडहा। जलकभी-सषा स्त्री० [हिं० जल+फम्भीर कुमी नाम की वनस्पति जो जलाशयों में पानी के ऊपर होती है। जलगर्भ- सम्या पुं० [सं०] बुद्ध के प्रधान शिष्य मानंद का पूर्वजन्म का नाम । विशेष-दे० 'कुभी'-८ । जलगुल्म-मंडा पुं० [सं०] १ पानी मे का भंवर । २ छमा । जलकुकुरी-सका स्त्री० [सं० जलकुपकट] एफ जलपक्षी। मुर्गावी। ३बह देश जिसमें जल कम हो। ४. चौकोर तालाब (को०)। २०-जैसे जल मह रहे जलकुकुरी, पख लिप्त जल नाहिं।- जलघड़ी--पशषौहि० जल+घड़ी ] एक यत्र जिससे समय का जग० ए०, मा० २, पु० ८६ । ज्ञान होता है। जलकुक्कुट-सहा पुं० [सं०] मुरगावी। 30-कई काररव उड़त विशेष-इसमें पानी पर तैरता हपा एक कटोरा होता है जिसके कहूँ जलकुक्कुठ शवत ।-भारतेंदु प्र०, मा० १, पृ. ४५६ । पंदे में छेद होता है। यह कटोरा पानी के नांद में पड़ा रहता जलकुक्कुभ-सझा पु० [सं०] एक प्रकार की नल की चिण्यिा । है। पेंदी के ऐवसे धीरे धीरे कटोरे में पानी पाता है और कुफुदी । मनमुर्गी। फोरा एक घरे में मरता मोर र जाता है। दूधने के शर पा०-कोयष्ठि | शिखरी। फिर कटोरे को पानी से निकालकर खाली करके पानी की जलकुब्जक-मक्षा पुं० [सं०] १. सेवार। २. काई । नांद मे डाल देते हैं और उसमें फिर पहले की तरह पानी भरने जलकूपी-सक्षा स्त्री० [सं०] १. कूर्मा । कूप । २ तालाब । सर । लगता है। इस प्रकार एक एक घटे पर वह कठोरा दुबठा ३. जलावतं । प्रावतं । भंवर [को॰] । हैपौर फिर खाली करके पानी के ऊपर छोड़ा जाता है। जलधरा-सहा पुं० [हिं० जल+घर ] वह स्थार बहाल मादि जलकूर्म-सला पुं० [सं०] शिशुमार या सूस नामक पलजतु।। रखा जाता है। नहाने का स्पान । उ०-वाहों श्रीनापबी केतु-सा पुं० [सं०] एक प्रकार का पुच्छल तारा जो पश्चिम के बलघरा में स्नान कराइये की सेवा सौंपी।-दो सौ बावन, में उदय होता है। भा० १, पृ० २०६। विशेष-सकी चोटी या शिखा पश्चिम की ओर होती है पौर

जलघुमर-सपा पुं० [ हि० जल + धूमना ] पानी का भंवर । जला-

स्निग्ध तथा मूल में मोती होती है। यह देखने में स्वच्छ होता व । चक्कर। है। फलित ज्योतिष के अनुसार इसके उदय से नौ मास तक जलयत्वर-सज्ञा पुं० [सं०] १ वह देश जिसमे जल कम हो । २. सुभिक्ष रहता है। चौकोर तालाव (को०)। जलकलि-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] दे॰ 'जलक्रीडा'। जलचर-सज्ञा पुं० [सं०] सौ. जलचरी] पानी में रहनेवाले जलकेश- पुं० [सं०] सेवार । जतु । जलजतु । जैसे, मछली, कछुपा, मगर, प्रादि । उ०- जलकौ-सहा पुं० [हिं० जल+कोपा 7एक प्रकार का जलपक्षी। जलचर पलधर नभचर माना । जे जड चेतन जीव वहाना । विशेष-इसकी गर्दन सफेद, चोष दूरी और शेष सारा शरीर -मानस, १।३। काला होता है। मादा के पर नर से कुछ विशेष बड़े होते यो०-बलचरफेतु = मीनकेत। कामदेव । उ०-सहित हैं। यह चिडिया सारे यूरोप, एशिया, अफ्रिका पोर उत्तरी सहाय जाह मम हेतू । चलेउ हरपि हिय जसपर पैतू!-- अमेरिका में पाई जाती है। इसकी मचाई से सीम मानस, १।१२५। हाथ तक होती है और यह ए बार में चार से छह सक जलचरी-सुधा श्री० [सं०] मछली। 30-मधुकर मो मन पधिक महे देती है। वैद्यक के अनुसार इसका मांस साने में स्निग्ध, कठोर। बिगसि न गयो कुभ कांचे लौ पिछुरत नदकिमोर । भारी, वातनाशक, शीतम और वयर्षक होना है। छमतें मनी पसचरी बपुरी पपी मेष्ठ मियालो। बल तें जलक्रिया-सहा श्री० [सं०] देव और पितृ प्रादि का तर्पण। बिछुरि तुरत तन त्याग्यो पुनि जल ही की बाहो। सूर०, जलक्रीड़ा- स्त्री० [सं०] वह क्रीड़ा जो जलाशयों मादि में की १०.३७२६ । जाय । जलविहार। जैसे, तैरना, एक दूसरे पर पानी फेंकता। जलचादर--सहा स्त्री० [सं० जल+हि. चादर किसी अंचे स्थान से होनेवाला जल का झीना भोर विस्तृत प्रवाह ! उ.-सहज जलखग-सहा पुं० [सं०] एक प्रकार का पक्षी जो पानी के किनारे सेत पचतोरिया पहिरत पति छवि होति । जलचादर के दीप रहता है। लौं जगमगाति तन जोति ।-बिहारी २०, दो. ३४० । जलखर-सहा पुं० [हिं० बाल+खर] दे० 'जलखरी'। विशेष-प्राय धनवानों मोर राजामों मादि के स्थानों में शोभा जल्लखरी-सक्षा स्त्री० [हिं० जाल+काढ़ना, या खारी] रस्सी या के लिये इस प्रकार जल का प्रवाह कराया जाता है, जिसे जल-