पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/६८

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जेलचारी जलद चादर कहते हैं। कभी इसके पीछे माले बनाकर उनमें दीपक है। मंग मंग तरंग उठे दुति की परिह मनौ रूप अवैधर । की पक्ति भी जलाई जाती है जिससे रात के समय जलचादर -धनानद, पृ० ५८५। के पीछे जगमगाती हुई दीपावली बहुत योभा देती है। जलजासन-समा पु० [सं०] कमल पर बैठनेवाले, ब्रह्मा। जलचारी-मज्ञा पुं० [सं०] [खी. जलचारिणी] जल में रहनेवाला जलजिह-सहा पुं० [सं०] नक । नाका घड़ियाल [को० । जीव । जलचर । जलजीवी-सका पु० [सं० जखजीविन्] मल्लाह । मटुमा [को०] । जलचिह-संज्ञा पुं० [सं०] कुभीर या नाक नामक जलजतु । जलजोनि -संश्रा पुं० [सं० जल ( = कृपीट)+योनि, प्रा० जोणि] जलचौलाई-समा श्री० [हिं०] दे० 'चौलाई'। प्रन्ति । पावक। उ०-बातवेद जलजोनि हरि चित्रभान जलजंत--सहा पुं० [सं० जलयन्त्र, प्रा. जलजत ] फुहारा। दे० वृहमान !-मनेकार्थ०, पृ० ४।। 'जलया। उ.-जसजत छट्टि महाराज माय । रानीन जुक्त जलडमरूमध्य-सज्ञा पुं० [8] भूगोल मे जल की वह पतली प्रणाली मन मोद पाय ।-५० रासो, पृ० ४०।। जो दो बहे समुद्रों या जलों के मध्य मे हो भौर दोनों को जलजंतु-मुठा पुं० [सं० जलजन्तु ] जल में रहनेवाले जीवजत् । मिलाती हो। जलचर। जलडिंव-सा पुं० [सं० जलडिम्ब भावूक । घोंघा । जलजतुका-सञ्चा सौ• [म. जल जन्तुका] जोक । जलतरंग-सझा पुं० [सं० बलतरङ्ग] १. जल का हिलोर । जल की जलजंत्र -सझा पुं० [स० लयन्त्र, प्रा. जलजत्र, जलजत] झरना । लहर । २. एक प्रकार का बाजा। फुहारा । उ०--ब? पोर सघन पर्वत सुगध । जलजंत्र छुट विशेष-यह बाजा धातु की बहुत सी छोटी बड़ी कटोरियो को उच्चे सवध -ह. रासो, पृ०६३।। एक कम से रखकर बनाया और वजाया जाता है। बजाने के जलजचुका--सबा बी० [सं० जलजम्बुका] सलजामुन जो साधारण समय सब कटोरियों में पानी भर दिया जाता है और उन जामुन से छोटा होता है । २० 'जल जामुन' । कटोरियों पर किसी हलकी मंगरी से मापात करके तरह तरह जलजबूका-सहा श्री० [सं० जलजम्वका दे० 'जलजवुका'। के ऊंचे नीचे स्वर उत्पन्न किए जाते हैं। जलन'-वि० [#०] जल मे उत्पन्न होनेवाला । जो जल मे उत्पन्न हो। जलतरन -पुं० [सं० जल +तरण, हि तरना] पानी में जलज'-सा पुं० [सं०] १ कमल । २ शस। ३. मछली। ४ तैरने को विद्या। 30-पसुमाषा पो जलतरन, धातु रसाइन पनीही नाम का वृक्ष । ५ सेवार।६ प्रवुवेत । जलवेत । ७. - जानु । रतन परख भी चातुरी, सकस मग सग्यान ।- जलजतु ८ सामुद्रिक या लोनार नमक । ६ मोती। १. माधवानल०, ३० २०८। कुचले का पेड़। ११ चौलाई । जलतरोई-सहा श्री० [हिं० जल +तरोई] मछली। (हास्य ) । जलजन्म-सहा पुं० [सं० जलजन्मन्] कमल (फो०] । जलताडन-सहा पु० [सं०] पानी पीटना । जल को पीटने का काम । अलजन्य-सहा पुं० [सं०] कमल । २. (लाक्ष०) निरक्षक कार्य । व्यर्थ का काम [को०)। जलजला-वि० [ सं ज्वल+जलजज्वल ] झोषी । दोष्ठ होने जलतापिक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार की मछली जिसे हिलसा, वाला । विगइल। हेलसा कहते हैं। जलजला-सहा पु० [फा० जलजलह] भूकप । भूखोल । जलतापी-सडा पुं० [सं०मलतापिन् ] ३० 'जलतापिक' । जलजलाना-क्रि० स० [सं० ज्वरल, प्रा. जल, झाल, झल झल् झल जलताल-प्रभा पुं० [सं०] सप्लाई का पेड़ [को०] । करना । चमकना । उ.-वे हिलकर रह जाते हैं, उजली धूप जलविक्तिका-सा स्त्री० [सं०] सलई का पेह । जलजलाती हुई नाचती निकल जाती है।-पाकाश, जलत्रा-सका स्टी - [स०] १. छाता। २. वह कुटी जो एक स्थान पृ० १३३ । से हटाकर दूसरे स्थान तक पहुंचाई जा सके। जलजात -वि० [सं०] जो जल में उत्पन्न हो । जलज। जलनास-सा पुं० [सं०] वह मय जो कुत्ते, शृगाल मादि जीवों के जखजात-सना ० प । कमल । काटने पर मनुष्य को जल देसने अपवा उसका नाम सुनने से जलजान -सा . [मे० जलयान] दे॰ 'जलयान' : उ०-हुप, उत्पन्न होता है। भग्रेजी मे इसे 'हाइड्रोफोबिया' कहते है। पोत, नतका, पलन, तरि, वहिन, जलजान । नाम नाव चढ़ि जलथंभ-सज्ञा पुं० [सं० जलस्तम्भ, जलस्तम्भन] मत्रो मादि से जल भव उदधि केते तरे प्रमान ---नद० प्र०,५०६१। का स्तमन करने या उसे रोकने की क्रिया | जलस्तभन । जलजामुन-सप्ता पुं० [हिं० सल+जामुन ] एक प्रकार का जामुन १०-बिरह विधा जल परस दिन पसियत मो मन तात। जिसके वृक्ष जगलों में नदियों के किनारे पापसे माप उगते कछु जानत जलयम विधि दुर्बोधन लो सास ।-बिहारी र०, । हैं। इसके फल बहुत छोटे मोर पत्ते कनेर के पत्तों के समान दो०४१४। होते हैं। जलद-वि० [सं०] पब देनेवाला । जो जल दे। जलजायलि-सप्पा स्त्री० [सं० जसज+प्रवलि] मोतियो की माला। बलदर-सा पुं० [सं०] १. मेघ । बादल । २ मोथा। फपर। उ.--सट तोल कपोल कलोल करे, कल कठ बनी बलजावचि ४. पुराणानुसार थारुडीप के प्रतर्गत एक वर्ष का नाम ।