पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/६९

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जलना जलदकाल जलधारा-संज्ञा श्री० [स०] १ पानी का प्रवाह । [पानी की धारा । जलदकाल-सया पुं० [सं०] वर्षाऋतु । बरसात । २ एक प्रकार की तपस्या जिसमें तपस्या करनेवाले पर कोई जलदक्ष्य-सहा पुं० [सं०] शरद ऋतु। मनुष्य बराबर धार बांधकर पानी डालता रहता है। जलदतिताला-मुक्षा पुं० [हिं० जल्दी+तिलाला] वह साधारण तिताला ताल जिसकी गति साधारण से कुछ तेज हो। यह जलधारी'-वि० [सं० जलधारिन् ] [ वि० स्त्री०जलधारिणी पानी कौवाली से कुछ विलवित होता है। को धारण करनेवाला । जलधारक । जलधारी -सक्षा पुं० बादल । मेष । उ०...श्रवण न सुनत, चरण शापुं० [सं०] एक प्रकार का वाद्य [को०] । गति वाके, नैन भये जलधारी-सूर।। जलदस्यु-सा पुं० [सं०] समुद्री डाकू। समुद्री जहाजो पर डकैती करनेवाले व्यक्ति । जलधि-सज्जा पुं० [सं०] १ समुद्र । उ०-बोध्यो बननिधि मीर- नीघि जलधि सिंधु वारीस । सत्य तोयनिधि कपति उदधि जलदाता-सक्षा पुं० [सं० जलदात] तर्पण करनेवाला । देव, ऋषि पयोघि नदीस।-मानस, ६।५। २. एक सख्या जो दस पौर पितृ गणो को पानी देनेवाला (को०] । शख की होती है और कुछ लोगों के मत से दस नील की। जलदान--सक्षा ० [सं०] तर्पण [को०] । ३ चार की सख्या (को०)। जलदाशन-सझा पुं० [सं०] साखू का पेठ । जलधिगा-सका श्री० [40] १ लक्ष्मी । २ नदी दरिया। विशेप-प्राचीन काल मे प्रवाद था कि बादल साख की पत्तियाँ जलधिज-सचा पुं० [सं०] चद्रमा । खाते हैं, इसी से साखू का यह नाम पडा । जलधिजा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] लक्ष्मी [को०) । जलदर्ग-राश पुं० [सं०] वह दुर्ग जो चारो ओर नदी, झील धादि से जलधिरशना-सा त्री० [सं०] समुद्र रूपी करघनोदाली अर्थात् सुरक्षित हो। पृथिवी [को०] । जलदेव-सहा पुं० [सं०] १ पूर्वाषाढा नाम का नक्षत्र । २ वरुण जो जलधेनु- समा स्त्री० [सं० ] पुराणानुसार दान के लिये एक प्रकार ___ जल के देवता हैं। की कल्पित घेनु । जलदेवता-समा पु० [सं०] वरुण । विशेष-इस धेनु की कल्पना जल के घडे मे दान के लिये की जलदोदो-सहा पुं० [?] एक प्रकार का पौधा जो काई की तरह जाती है। इस दान का विधान भनेक प्रकार के महापातको से पानी पर फैलता है। इसके पारीर में लगने से खुजली पैदा मुक्त होने के लिये है, और इस दान का लेनेवाला भी सब होती है। प्रकार के पातको से मुक्त हो जाता है। 'लद्रव्य-सहा पु[सं०] मुक्ता, शख प्रादि द्रव्य जो जल से उत्पन्न जलन-सक्षा स्त्री० [सं० ज्वलन, हिं जलना ] १ जलने की पीडा __ होते हैं। या दु ख । मानसिक वेदना या ताप । दाह । २ बहुत पधिक जलद्रोणी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] दोन, जिससे खेत में पानी देते या नाव ईर्ष्या या दाह। का पानी उलीचते हैं। मुहा०-जलन निकालना - द्वेष या ईया से उत्पन्न इच्छा जलद्विप-संक्षा पु० [सं०] एक स्तनपायी जलजतु । वि०२० 'जलहस्ती' पूरी करना । जलघर-सहा पु० [सं०] १ बादल । २ मुरता । ३ समुद्र । ४. जलनकुल-सचा पुं० [सं०] ऊदविलाव । तिनिश । तिनस का पेड़। ५ जलाशय । तालाब ! झील। 11 जलना-क्रि० प्र० [सं० ज्वलन] १. किसी पदार्थ का भग्नि के . उ०-वहता दिन वीजह पछह राति पहती देखि ! रोही मझि सयोग से प्रगारे या लपट के रूप में हो जाना । दग्ध होना । डेरा किया ऊजल जलघर देखि ।-ढोना०, दू० ५६८ । भस्म होना । वलना । जैसे, लकही जलना, मशाल जलना, जलधर केदारा-सचा ० [से जलघर+हि० केदारा] एक सकर राग घर जलना, दीपक जलना । जो मेघ और केदार के योग से बनता है। यौ०-जलता चलता = होलिकाटक या पितृपक्ष का कोई दिन जलघरमाला-सज्ञा स्त्री० सं०] १ बादलों की श्रेणी। २ बारह जिसमें कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता। पक्षरी की एक दृत्ति जिसके प्रत्येक घर में क्रमश मगण, महा०-जलती आग = भयानक विपत्ति । जलती भाग में भगण, सगण मौर मगण (ss, st, 1s, ss) होते हैं। जैसे-मो भास मोहन हमको द योगा। ठानो ऊधो उन कुवजा फूटना =जान बूझकर भारी विपत्ति मे फंसना । सों भोगा। साँचो ग्वालागन कर नेहा देखी। प्रेमाभक्ती २ किसी पदार्थ का बहुत गरमी या प्रचि के कारण भाफ या जलघरमाला लेखो। कोयले पादि के रूप में हो जाना । जैसे, तवे पर रोटी जलना, जलवरी-सचा त्री० [सं०] पत्थर का या घातु मादि का बना हमा कडाही में घी जलना, धूप में घास या पौधे का जलना । ३. पाँच लगने के कारण किसी भग का पीड़ित पौर विकृत होना ___ वह मर्पा जिसमे शिवलिंग स्थापित किया जाता है । जलहरी । झुलसना । जैसे, हाथ जलना। जलधार-सज्ञा पुं० [सं०] शाकद्वीप का एक पर्वत । मुहा०-~जले पर नमक छिड़कना या लगाना = किसी दुखी या बलधार -सबा स्त्री० [सं० जलधारा ] दे० 'जलधारा' । व्यथित मनुष्य को पौर अधिक दुख या व्यथा पहुंचाना ।