पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/७४

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अलसाई जलहर समिति प्रादि का वडा पाधिवेशन जिसमें सर्वसाधारण जलसेनापति-सचा [ 0] वह सेनापति जिसकी अधीनता में सम्मिलित हों। जैसे,-परसों मार्य समाज का सालाना जलमेना हो। समुद्री सेना का प्रधान अधिकारी जिसकी जलसा होगा। अधीनता में बहुत से लहाई के जहाज पीर जलसैनिक हों। जलसाई -संवा पुं० [सं० जलशायी] भगवान् विष्णु । १०-नींव, जल या मौसेना का प्रधान या मध्यक्ष । नौसेनापति । मुख मरु प्यास तजि करती हो तन राख । जलसाई विन जलसेनी-समापुं० [सं०] एक प्रकार की मछली। पूजिह क्यों मन के प्रमिलाख 1 - मति ०, पृ०४४५। जलस्तंभ-सका पुं० [म० जलस्सम्म ] एक देवी घटना जिसमें जलसिंह-संघा पुं० [0] [श्री. जलसिही ] सील की जाति जलायी या समुद्र में प्राकाश से बादल झुक पडते हैं पौर का एफजंतु। बादलों से जल तक एक मोटा स्तम सा बन जाता है। सुंडी। विशेष-यह जंतु, पाँच सात गज सवा होता है और इसके सारे विशेष-यह जलस्तम कभी कभी सौ सवा सौ गज सक ध्यास शरीर में लगाई लिए पीले रंग के या काले मरे बाल होते हैं। का होता है। जब यह बनने लगता है, तब प्राकाश में बादल इसकी गर्दन पर सिंह की तरह लवे लबे बाल होते हैं । यह स्तंभ के समान नीचे झुकते हुए दिखाई पड़ते हैं और थोडी अन्यत बनी और शाह प्रकृति का होता है। यह अमेरिका ही देर में बढ़ते हुए जल तक पहुँचकर एक मोटे खंभे का और एशिया के बीच 'कमचटका' उपद्वीप तथा 'क्यूरायल' रूप धारण कर लेते हैं। यह स्तंम नीचे की भोर कुछ अधिक मादिद्वीपों के पास पास मिलता है। यह मु मे रहता है। चौड़ा होता है। यह बीच में भूरे रंग का, पर किनारे की इसकी गरज घड़ी भयानक होती है और तग किए जाने पर पोर काले रंग का होता है। इसमें एक केंद्ररेखा भी होती है यह मय कर रूप से प्राक्रमण करता है। जिसके पास पाम भाप को एक मोटी सह होती है। इससे जलसिक्क-वि० [सं०] जल से सींचा हुमा । गीला । माद्र [फो०] । जलाशय का पानी ऊपर को खिंचने लगता है और वहा शोर होता है। यह स्तंभ प्राय घटों तक रहता है मौर बहुधा जलसिरस-सचा पुं० [सं० जलशिरिष ] जल मे या जलाशय के बढता भी है। कभी कभी कई स्तम एक साथ ही दिखाई प्रति निकट पैदा होनेवाला एक प्रकार का सिरस वृक्ष जो पड़ते हैं। स्थल में भी कभी कभी ऐसा स्तम बनता है जिसके साधारण सिरस वृक्ष में बहुत छोटा होता है। इसे कहीं कहीं कारण उस स्थान पर जहाँ वह बनता है, गहरा कुंड बन ढाढोन भी कहते हैं। जाता है । जब यह नष्ट होने को होता है, तर पर का भाग जलसीप-सशस्वी [अ० जनशक्ति 1 वह सीप जिसमें मोती तो उठकर बादल में मिल जाता है और नीचे का पानी हो __ होता है। कर पानी बरस पड़ता है। लोग इसे प्रायः अणुभ पौर जलसुत-सश पुं० [सं०] १. कमल । जलज । उ०-जलसुत प्रीतम हानिकारक समझते हैं। जानि तास सम परम प्रकासा । पहिरिपु मध्य कियी जिनि जलस्तंभन-सक्षा पुं० [सं० जलस्तम्मन ] मत्रादि से जस की गति निश्नन बामा । --सुदर प्र०, भा० १, (जी.), पृ० ११.। का प्रवरोष करना । पानी पांधना । यो०---जलसुत प्रीतम = सूर्य । विशेष-दुर्योधन को यह विद्या पाती थी प्रतएव यह शल्य के २ मोती। मुक्का। 30-- याम हृदय जलसुत की माला, मारे जाने के बाद 'ट्रैपायन हद मे जल का स्तभन करके परा भतिहि अनूपम छाजे (री)। मनहूँ बलाक भाति नव धन पर, था। इसका विशेष विवरण महाभारत में शल्य पर्व के २६ यह उपमा फछु भ्राजै (री)।-सूर०, १०११८०७ । अध्याय में द्रष्टव्य है। जलसूचि..-सहा पुं॰ [सं०] सम । शिशमार । २ घण्टा कछुपा । जलस्थल-सका [म. जल थल । जस मौर जमीन । ३ जोंक । ४ एक प्रकार का पौधा जो जल में पैदा होता जलस्था-सहा लो० [सं०] गंडदूर्वा ! है । ५. कोषा। ६ ककमोट या कोमा नाम की मछली। जलस्थान, जलस्थाय-सहा पु० [सं०] पानी का स्थान | जलाशय । ७ सिंघाडी। तालाब (को०] . जनसूत-मचा पुं० [सं०] नहरुघा रोग । जलसाव--सा पुं० [सं०] एफ नेत्ररोग [को०] । जलसूर्य, जजसूर्यक-सहा पुं० [ म० ] पानी में व्यक्त सूर्य का जलस्रोत-सा पुं० [सं०] जल का घोता । चश्मा । जलप्रवाह (को०)। प्रतिविष [को०] । जलसेकसझा ० ०1१.सीचना । पानी देना । जल का जलह-सहा पुं० [सं०] जल के फौदारोंवाला छोटा म्यान स्थान जहाँ फुहारा लगा हो को। छिडकाव । जनसेचन--गुज्ञा दु०म० दे० 'जलसेक' ! जलहडो-सश पुं० [हिं० जल+हड्डी] मोती। उ.- सौ लाख समापिया रावल लालच छड्ड। सांसए सोचारणा जिसा, जेप जलसेना-या प्रो० मुं०] वह सेना जो जहाजों पर चढ़कर हुले जलहड ।-चौको० प्र०, मा० १,०५०। समुद्र में युद्ध करती हो। जहाजी देहों पर रहनेवाली फौज । नौसेना । समुद्री सेना। जलहर -वि० [हिं० जल +हर ] जलमय । पल से भरा हमा। J