पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/७५

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जलहर' १७१८ जलाटीन उ०-- दादू करता करत मिमिष में जल माह थल थाप । पल जलहारिणी-सझा श्री० 0]१ पानी भरनेवाली। पनिहारिन । मा है जलहर करे, ऐसा समरथ माप ।-दादू (शब्द०)। २. नाली। जल के निकाम की प्रणाली (को०)। जलहरा -सहा पुं० [सं० जलधर, प्रा. जलहर] १ मेघ । जलहारी-सचा पुं० [सं० जनहारिन् ] [श्री. जनहारिणी] बादल । उ.-बिज्जुलिया नीलज्जियां जलहर तू ही लज्जि। पनिहारा । जलहारफ । सूनी सेज विदेस प्रिय मधुर मधुरइ गज्जि। --होला०, जलहालम-सशा पु० [सं० जन+देश हालम ] एक प्रकार का दु. ५०। २ तालाव । सरवर । जलाशय । उ०-(क) हालम या चसुर वृक्ष जो जलाशयों के निकट होता है। इसकी विरह जलाई मैं जलूजलती जलहर जाउ। मों देखे जलहर पत्तियाँ सलाद पा मसाले की तरह काम में प्राप्ती है भोर षले सतो कहा वुझा।फमीर (शब्द॰) । (ख) नैना बीजों का उपयोग पौषष में होता है। भए मनाथ हमारे । मदन गोपाल वहाँ ते सजनी सुनियत जलहास-ससा पुं० [सं०] १ झाग । फैन । २ समुद्र का फेन । दूर सिघारे। वे जलहर हम मीन वापुरी कैसे जियहि समुद्रफेन । निनारे । -सूर (शब्द०)। (ग) सुदर सोल सिंगार सजि जलहोम-सधा [म.] एक प्रकार का होम जिसमें वैश्वदेवादि गई सरोवर पाल । धद मुलक्यउ जल हस्यर जलहर कपी के उद्देश्य से जल मे पाहुति दी जाती है। पाल 1-ढोला०, दू० ३६४1 जलांचल-सपा पुं० [सं० जलाञ्चल ] १ पानी की नहर। जलहरण- सप्ता पुं० [सं०] बत्तीस प्रक्षरों की एक घणति या पानी का सोता । २ झरना। निर्मर (को०) । ३ सेवार । ददक जिसके प्रत में दो लघु पड़ते हैं। इसमें सोलहवें वर्ण काई (को०)। पर यति होती है। जैसे,-भरत सदा ही पूजे पाटुका उतै जलांजल-सपा पुं० [सं० जलापाल १ सेवार । २ सोता । स्रोत । सनेम, इते राम सिय वधु सहित सिधारे मन । सूपनखा के जलांजलि-सझा श्री० [सं०] १. पानी भरी मंजुनी। २ पितरों कुरूप मारे खल झंह घने, हरी दससीस सीता राघव या प्रेतादिक के उद्देश्य से प्रजुली में जल भरकर देना । विकल मन। महा०-जलजिसि देना-त्याग देना। छोड देना। कोई सबष जलहरी- सज्ञा स्त्री० [सं० अलपरी] १ पत्थर या पातु पावि का न रखना। यह अर्घा जिसमें शिवलिंग स्थापित किया जाता है । उ०- जलांटक-ससा पुं० [सं० जलाण्टक "] मगर । मक नाक [को०) । लिंग जलहरी घर घर रोपा ।-कवीर सा., पु. १५८१ । २ एक वर्सन जिसमें नीचे पानी भरा रहता है। लोहार इसमें जलांवक-सक्षा पुं० [सं० जजान्तक १ सात समुद्रों में से एक समुद्र लोहा गरम करके बुझाते हैं। ३. मिट्टी का घडा जो गरमी २ हरिवरा के अनुसार कृष्णचद्र का एक पुष जो सत्यभामा के दिनों में शिवलिंग के ऊपर टांगा जाता है। इसके नीचे गर्भ से उत्पन्न हुना था। एक बारीक छेद होता है जिसमे से दिन रात शिवलिंग पर जलाविका-सहा खी० [सं०जलाम्बिकाः] कूप । कुमा। पानी टपका करता है। जलाफ-सनः खी० [हिं० जलना] १ पेट की जलन । २ तीक्ष्ण क्रि० प्र-चढ़ना । चढाना । धूप की लपट । ३ लू। जलहस्ती-मला पुं० [सं०] सील की जाति का एक जलजतु जो जलाकर--सज्ञा पं० [सं०] समुद्र, नदी, कप, स्रोत, जलाशय मादि स्तनपायी होता है। जो जलयुक्त हो। विशेष--यह प्राय छह से पाठ गज तक लबा होता है और जलाकांक्ष-सचा पुं० [ म० जलाफाडाक्ष ] हाथी । इसके शरीर का चमड़ा बिना वालो का पौर काले रग का जलाकांक्षी-सहा पु० [सं० जलाकाइक्षिन् । दे० 'जलाकाक्ष'। होता है। इसके मुह में कार की ओर १६ और नीचे की जलाका-साखी० [सं०] जोंक। मोर १४ दाँत होते हैं। यह प्राय दक्षिण महासागर में जलाकाश--सझा पुं० [सं०] १ जल में प्राकाश का प्रतिदिन । २ पाया जाता है, पर जब यहाँ प्रषिक सरदी पहने लगती है, तब यह उत्तर की ओर बढ़ता है। नर की नाक कुछ लवी जलगत प्राकाश या शून्य (को०)। और संह की तरह मागे को निकली हुई होती है और वह जलाक्षी-सक्षा स्त्री० [सं०] जलपीपल । जलपिप्पली। प्राय १५-२० मादापों के मुह में रहता है। गरमी के दिनो जलाखु-सम[सं०] ऊदबिलाव । में इसकी मादा एक या दो चच्चे देती है। इसका मांस काले जहाजल-~सका पुं० [हिं० झलाभल ] गोटे प्रादि की झालर । रग का और चरबी मिला होता है और बहुत गरिष्ठ होने झलाझल 13०-गति गयद कुन कुम किंकिणी मनई घट के कारण खाने योग्य नहीं होता। इसकी घरवी के लिये, महनावै । मोतिन हार चलाजल मानो खुमीदत झलकाचे '- जिप्ससे मोमबत्तियां प्रादि बनती हैं, इसका शिकार किया सूर (शब्द०)। जाता है। प्रयत्न करने पर यह पाला भी जा सकता है। . जक्षाटन-मुठा पुं० [सं०] कक नामक पक्षी । - जलहार-सहा पुं० [सं०] [ो जलहरी ] पानी भरनेवाला। जलाटनी-सहा श्री० [सं०] जोंक। पनिहारा। जलाटीन-समा पु० [म० जेलाटोन ] एक प्रकार की सरेस । ३० जलधारक-मक्षा पुं० [सं०] दे० 'जलहार'। 'जेलाटीन'।