पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जलाशय' जलातक १७१६ जलातंक-पृहा पुं० [म० जलाउन] जलयास नामक रोग । जनातन-वि० [हिं० जलना+न] १. फ्रोधी। विगह ल । बदमिजाज । २. ईर्ष्यालु । दाही। जमात्मिका-समा पी० [म० ] १ जौक । २. कुप्रो । कूप । जलात्यय-मदा पुं० [ 10 ] वर्षा की समाप्ति का काल । भारत् काल । जलाद -सज्ञा पुं० [अ० जल्लाद ] ३० 'जज्लाद'। उ.-हो मन राम नाम को गाहक । चौरास लव जिया जोनि लख भटकत फिरत अनाहक । करि हियाव सौ मौ जलाद यह हरि के पुर ले जाहि। घाट बाट कहूँ अटक होय नहि सब कोउ देहि निवाहि ।-मूर (शब्द०)। जलाधार-सझा पुं० [सं०] जन का आधारभूत स्थान । जलाशय [को०] । जलाधिदेवत-समा ०.[ मै० ] १ वरुण । २ पूर्वाषाढा नक्षत्र । जलधि - Kा पु० [२०] ( वरुण । २. फलित ज्योतिष के अनु- पनु मार वह मह जो परसर में जल का थधिपति हो। जलाना-क्रि० स० [हि. 'जलना' का मक० रूप] १. किमी पदार्थ को मग्नि के सयोग से अनारे या लपट के रूप में कर देना। प्रज्वलित करना । जैम, भाग जगना, दीया जलाना । २ किसी पदार्थ को बहुत गरमो पहुंचाकर या ांच की महायता से भाप या कोयले प्रादि के रूप में करना । जैसे, अंगारे पर रोटी जलाना, काढ़े का पानी जलाना । ३. प्रांच के द्वारा विकृत या पीड़ित करना । झुलसाना। जैस-प्रगारे से हाथ जलाना। ४. किसी के मन में हाह, ईष्या या उप प्रादि उत्पन्न करना । किसी के मन में सताप उत्पन्न करना । मुहा०-जला जलाकर मारना बहुत दुख देना । सूव तग करना । जलाना --कि०२० [हिं० जल+प्राना ( प्रत्य) जलमग्न • होना । जलमय होना । २०-महा प्रलय जव होवे भाई। स्वर्ग मृत्यु पाताल जलाई ।-याचीर सा०, पृ० २४३ । जलापा-सा पु० [हिं०/जल + मागा (प्रस्प० ) ] डाह या ईया मादि के कारण होनेवाली जान। क्रि० प्र०-सहना । -होमा ! जलापा-सझा पुं० [अ० जेतप पार ] OF विमायती पोषध जो रेचक होती है। जलापात-पहा . [म.] बहुत ऊर्च पामर से नी धादि के जल का गिरना । जापा। जलामई -बा . जालय जलमय 1 जल से परिपूर्ण । उ०-समुद्र मध्य चूरि + उघारि नैन दीजिए। पी दिशा जनामई प्रत्यक्ष प्यान दीजिए। --मुदर पं०, भा , १० ५४ 1 जलायुका-सहा बी० [सं० । जलार्णव-समा पु० [सं०] १. वर्षाकाल । बरसात। २ समुद्र। सागर (को०)। • जला-सा पुं० [] १८ मोमा बल । २ जलसिक्त पंखा । ३. जल से भीगा हुमा पदार्थ या स्यान [फो०] । जलाल-सक्ष पु० [प्र.] १. तेज। प्रकाश । ३०-खुदावद का बलाल दहकती भाग के सदृश दिखलाई देता था।-नीर म०, पृ० २०१। २ महिमा के कारण उत्पन्न होनेवाला प्रमाव । भातका जलालत-छा सौ. [म. जलालत ] तिरस्कार । अपमान । भेइ- उजती।३०-कुछ देर बाद म सबा पलटा । बबई के कारनामे याद पाए । जलालत से नसो मे खून दौडने लगा, सोचा क्या बबई में मुंह दिखाएं।-काले०, पृ० ३७ ।। जलाली--वि० [भ] प्रकाशित । दीप्ता मातकयुक्त। 10.-किया जला उस उपर यक जलाली नजर, जो हैवत तूं पानी हुमा सर वसर । दक्खिनी०, पृ० ११७। २. ईश्वरीय। उ०-रूह जलाली करत हलाली, क्यो दोजख भागी जलता है।-कवीर श०, भा २, पृ० १७ । ३. पराक्रमी। दुर्दम । मजेप। 30-- ऐसी सेन जलाली बर मोरगजेब ।-नठ, पृ० १६७ । जलालुक-सहा पुं० [सं०] कमल की बह । भसींह। जलालुका - सच्चा श्री० [सं० ] जोक। जलालोका-शा ० [सं०] दे० 'जलालुका' [को०] । जलावंत -वि० [सं० जलवन्त ] पानीवाला । जल से परिपूर्ण। उ.- जलावत इक सिंघ प्रगम है सुखमन सूरत लाया। उलट पलट के यह मन गरजे गगन मडल घर पाया ।-पलटू०, पृ. ८१॥ जिलाव-सला ० [हिं० जलना+माव (प्रत्य॰)]१ समीर या भाटे प्रादि का उठना । क्रि०प्र०-श्राना । पतला शोरा। . २ वह भाटा जो उठाया हो । खमीर । ३ किवाम । जलावतन--वि० [4] [सज्ञा स्त्री० जलावतनी] जिसे देश निकाले का दड मिला हो । निर्वासित । जलाववनी-पशा त्री० [अ० जलावतन + ई ] दहस्वरूप किसी अपराधी का शासक द्वारा देश से निकाल दिया जाना । देश- निकाला। निर्वासन । जलापतार-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] नदी का वह स्थान जहाँ उतरने चढने के लिये नाव मादि लगाई जाती है । घाट [को०] । जलापन--सबा पुं० [हिं० जलाना] १. लकडी, को प्रादि जो जलाने के काम में माते है। ईधन । २ किसी वस्तु का वह अश जो भाग में उसके उपाए. जनाए या गसाए जाने पर जल जाता है। जलठा। क्रि० प्र०-जाना ।—निकलना । ३ मौसिम मे कोल्हू के पहले पहन चलने का उत्सव । भैरव । विशेप-इसमें वे सब काश्तकार जो उस कोल्हू मे अपनी ईस पेरना चाहते है, अपने अपने खेत से थोडी थोड़ी ईस लाकर वहा पेरते हैं मोर उमका रस ब्राह्मणो, भिखारियों मादि को पिलाते तया उससे गुट बनाकर वोटते है। जलाव-सहा पुं० [सं०] पानी का भेवर । नाल । जलाशय-वि० [सं०] १ जल में रहने या शयन करनेवाला। २ मूर्ख । जड़ [को०] ।