पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

र। उत्पन्न होता है। अलाशय जलोच्छास जलाशय-सधा पुं० [सं०] १. वह स्थान जहाँ पानी जमा हो। जलेच्छया--सका पुं० [सं०] हाथीसू नाम का पौधा जो पानी में जैसे,--गड़हा, तालाव, नदी, नाला, समुद्र आदि। २ उशीर। खस । ३ सिंघाड़ा । ४. लामज्जक नामक तृण । ५ मत्स्य । जलेज-सज्ञा पुं० [सं०] कमल । जलज । मछली (को०)। जलेतन-वि० [हिं० जलनर + तन] १ जिसे बहुत जल्दी क्रोष मा जलाशया-सहा खी० [सं०] गुंदला । नागरमोथा। जाता हो। जिसमे सहनशीलता बिलकुल न हो। २. जो सह, जलाशयोत्सर्ग-सहा पुं० [सं०] नए बने कूप या तालाब आदि की ईया प्राधि के कारण बहुत जलता हो। प्रतिष्ठा ! दे 'जलोत्सर्ग'। जलेबा-समा [ हि० जलेबी ] बठी जलेबी। वि० दे० 'जलेबी'। जलाश्रय-सधा पुं० [सं०] १. वृत्तगुड या दीर्घनाल नाम का तृण। जलेबी-सेश खी० [हिं० अलाव ( = खमीर या शोरा) 1१ एक २ जलाशय [को०] | ३ सारस । सक (को०)। प्रकार की मिठाई जो कु इलाकर होती है भोर खमीर उठाए हुए पतले मैदे से बनाई जाती है। जलाश्रया-सझा स्रो० [सं०] शूली घास । विशेष-इसके बनाने की पद्धति यह है कि पत्तले उठे हुए मैदे जलाष्टोला-सचा मो० [सं०] वडा और चौकोर तालाब को। को मिट्टी के किसी ऐसे बरतन में भर लेते हैं जिसके नीचे छेद जलासुका-समा स्त्री॰ [सं०] जोक । होता है। तब उस बरतन को धी की कड़ाही के ऊपर रखकर जलाहल'-वि० [हिं० जनाजल, या सं० जलस्थल ] जलमय । इस प्रकार धुमाते है कि उसमें से मैदे की घार निकलकर उ.-प्रानप्रिया मंसुमान के नीर पनारे भए बहि के भए फूडलाकार होती जाती है। पक पुकने पर से घी में से नारे। नारे भए ते भई नदियां नदियां नदब गए काटि निकालकर शोरे में थोड़ी देर तक हुबो देते हैं। मिट्टी के किनारे । वैगि चलो जू पलो ब्रज को नंदनदन चाहत चेत वरतन की जगह कभी को कपड़े की पोटली का भी व्यवहार हमारे । वे नद चाहत सिंघु भए मब सिंघु ते हहै जलाहल किया जाता है। सारे ।-( शन्द०)। २ बरियारे की जाति का एक प्रकार का पौधा । जनाहल-वि० [हिं० झलाझल ] झलझलाता हुप्रा । चमक दमक । विशेष--यह पौषा चार पांच हाथ ऊँचा होता है और इसमें वाला । देदीप्यमान । उ०- कठसरी बहु क्रांति, मिली मुकता पीले रग के फूल लगते हैं। इसके फूल के प्रदर कुरलाकार हला !-बाँकी० प्र०, भा० ३, पृ० ३६ । लिपटे हुए बहुत से छोटे छोटे बोज होते हैं। जलाय-या पुं० [सं०] १. कमल । २. कुमुद । फुई। ३. गोल घेरा । कुंडली । लपेट । ४. एक प्रकार की भातिशवाजी जलिका-सया खौ० [सं०] जोंक । जो मिट्टी के कसोरे में कुछ मसाले मादि रखकर पौर ऊपर जली-वि० [म.] प्रकट । व्यक्त। स्पष्ट । प्रकाशमान । उ०- फागज चिपका कर बनाई जाती है। जिन जली नित ऐसा याद हर दम भरला नाव । यू हर प्राजा यौ०-जलेबीदार = जिसमे कई घेरे हो। बरतन पूरे नासूत पावे ठाव । दक्खिनी०, पृ० ५५ जलेभ-सन्मापु० [सं०] जलहस्ती। जमील-वि० [प. जलील ] १. तुच्छ। कदर । २ जिसे नीचा जलेसहा-सहा श्री० [स] सूरजमुखी नाम के फल का पौधा। दिखाया गया हो। अपमानित । तिरस्कृत । २. एक गुल्म । कुविनी [को०] । गुफा का । 0.1 जान। जलला-सदा मा० [स०] कार्तिकेय की मनुचरी एक मातृका जलू, जलू क-सपा स्त्री॰ [फा० जस्लू, जलूफ] जलौका। जोंक [को०)। का नाम । जस्तू का-सहा सी० [सं०] जोंक। जलेवाह--सबा पुं० [सं०] पानी मे गोता लगाकर चीजें निकालने- जलूस--सचा पुं० [अ० जुलूस ] बहुत से लोगों का किसी उत्सव के वाला मनुष्य । गोताखोर । उपलक्ष में सज धजकर, विशेषत किसी सवारी के साथ किसी जलेश-सका पु० [सं०] १ वरुण । २. समुद्र । जलाधिप । विशिष्ट स्थान पर जाने या नगर की परिक्रमा करने के लिये जलेशय-सक्षा पुं० [सं०] १ मछलो। २ विष्णु का एक नाम । चलना। विशेष-जिस समय सृष्टि का लय होता है, उस समय विष्णु क्रि० प्र०-निकलना। -निकालना। जस में सोते हैं इसी से उनका यह नाम पड़ा है। २ जलसा। धूमधाम । उ०-जोवन जलूस फूस लाये लों नसाय जलेश्वर-सहा पु० [सं०] १ समुद्र । २ वरुण। कहा पाप समुदाय मान मातो सान धरि के। -दीन००, जलोका-सका श्री० [सं०] जोंक। पु० १३८ । जलोच्छास-सा पुं० सं०] १ जलाशयों में उठनेवाली लहरें जलेंद्र-सपा पुं० [सं० जलेन्द्र] १ बरुण । २ महासागर । ३ शिव (को०)। जो उनकी सीमा का उल्लघन करके बाहर गिरती हैं। जल जलेधन--मसा पुं० [सं० जलेन्धन ] १ बाड़वाग्नि । २. वह पदार्थ का उमड़कर अपनी सीमा से बाहर गिरना या बहना । २. जिसकी गरमी से पानी सूखता है । जैसे, सूर्य, विद्युत् प्रादि । वह प्रयत्न जो किसी स्थान से बल को बाहर निकालने अपवा जलेचर-वि०, सपा पु. सं०] जलपर। उसे किसी स्थान में प्रविष्ट करने के लिये किया जाय।