पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जवेन मलोत्सर्ग जलोत्सर्ग- सण पुं० [सं०] पुराणानुसार साल, कुमाया वावली जल्पना-कि०म० जल्पन ] व्यषं रकवाद करना । महत मादि का विवाह । पढ़ पढ़कर बात करना। गैंग मारना । सौटना । उ.-(क) जलोदर-समा पु० [सं०] एक रोग जिसमें नाभि के पास पेट के फट जल्पसि जड़ कपि बल जाके। यह प्रताप दृषि तेजन चमड़े के नीचे की तह मे पानी एकत्र हो जाता है। ताके ।-तुलसी (शब्द॰) । (स) जनि जस्पसि जर जतु विशेष--इस रोग में पानी इकट्ठा होने से पेट फूल पाता है और कपि सठ पिलोकु मम बाहु । सोकपाल यस बिपुल ससिप्रसन मागे की भोर निकल पड़ता है। वैद्यो का मत है कि पृतादि हेतु सब राह। -तुलसी (सन्द०)। पान करने मोर वस्ति कम, रेचन और यमन के पश्चात् चटपट जल्पना२-सक्षा बी० [10] जल्पन । रकवाद । हींग। 30-- ठठे जल से स्नान करने से शारीर की जलवाहिनी नसें दूषित भजि रघुपति कर हित मापना । घाइह नाय तृषा जल्पना । हो जाती है और पानी उतर पाता है। इसमे रोगी के पेट में -मानस, ६ ॥ ५५॥ शब्द होता है और उसका शरीर कांपने लगता है। जल्पाक-वि० [सं०] व्यर्थ की बहुत सी बातें करनेवाला । अस्पक । जलोद्धतिगति-समा सी० म० ] चारह प्रक्षरो की एफ वर्णवृत्ति वकवादी । वाचक । जिसके प्रत्येक चरण में जगण, सगण, जगण पौर सगरण होता जल्पित-वि० [सं०१ जो (मात) यास्तव मे ठीक न हो। है ।।51,15151, 1s)। जैसे-जु साजि सुपली हरी मिथ्या । २ कथित । उक्त । कहा हमा। हि सिर मे । पसे जु वसुदेव रेन जल मे। प्रभू परण को छुपा जल्ला सभा पुं० [हिं० झोल] १. झील ।-लश.)। २ जमुन मे । जलोद्धति गति हरी छिनक में। २ जल बढ़ने ' ताल । ३. होज । हृद। की स्थिति। जलोद्भवा-सधा स्त्री० [सं०] १ गुदला । २. छोटी ग्राह्यो। जल्लाद-सा [म.] यह जिसका काम ऐसे पुरुषों के प्राण लेना हो, जिन्हें प्रारणदह की भाशा हो चुकी हो। पातक । जलोद्भूता-सा सो [ सं०] गुदला नाम की घास । मधुमा । जलोनाद-सा ई० [सं० ] शिव के एक अनुचर का नाम । जल्लाद-वि० क्रूर । निर्दय । बेरहम । जलोरगी-सा श्री [सं०] जोक। जल्हु-सहा . [सं०] पग्नि । जलीकस-सपा पुं० [सं.] जलौका । जोंक। जल्वा-सचा पुं० [म. जल्वह, दे० 'जलया। उ०-विना उसके जलोका-सहा सी० [सं० जलौकस् ] जोंक । जल्वा के विखती कोई परी या हर नहीं। सिया यार के दूसरे जल्द-क्रि० वि० [म.] [ सष्ठा जल्दी]१ शीघ्र । पटपट । विना का इस दुनिया में मूर नहीं 1-भारतेंदु म, भा०२, पृ० विलव । २ तेजी से। १६४। जल्दवाज-वि० [फा. जल्दबाज][सा जल्दबाजी ] जो किसी यौ०-जल्वागार = दे० 'बलसागर' ! जल्वागाह प्रदर्शनगृह । काम के करने में बहुत. विशेषत मावश्यकता से अधिक, जल्दी उ.-मौरों सा रस लेता रहता गाता फिरता तू राहों में। करता हो। बहुत अधिक जल्दी करनेवाला। रुप और रस राग भरी हन जीवन को जल्वागाहों में । जल्दबाजी-सपा सी० [फा० जल्दवाडी ] उतावली। शीघ्रता । दीप ज०, पृ० १५३ । जल्दी-सशास्त्री० [अ० ] शीघ्रता । फुरती । जल्वागाय -[फा. जल्वागाह] दे० 'जल्वागाह । उ०--जब इस जल्दी-कि० वि० [प्र. जल्द ] दे० 'जाँद'। वज्म छम की उरूसी दिखाय। तो पोहर हो ज्यों दिप मने जल्प-सथा [सं०] १ कपन । कहना। २. यकवाद । व्पर्य जल्वागाय।-दक्खिनी०, पृ० १३८ ।। की बात। प्रलाप । ३. न्याय के अनुसार सोलह पदापों मे जल्मा-सया [ rom से एक पदार्थ । में, साने पीने के जल्सो मे, पात बैठने में पौर बातचीत विशेष--यह एक प्रकार का वाद है जिसमें वादी छस, जाति करने में जानपहचान नहीं समझी जाती।--श्रीनिवास 40, पौर निग्रह स्थान को लेकर अपने पक्ष का महन पौर विपक्षी पु. ३३० । के पक्ष का खडन करता है। इसमें वादी का उद्देश्य तत्त्व- जव-सहा पुं० [सं०] वेग। निर्णय नही होता किंतु स्वपक्ष स्पापन पौर परपक्ष खस्न मात्र जव-सहा . [सं० यव ] जो। होता है। बाद के समान इसमे भी प्रतिज्ञा, हेतु माचि पाप जवन-वि० [सं०] [वि०सी० अवयव होते हैं। जवनी] वेगवान् । येग- युक्त । देजा जल्पक-वि० [सं०] वकवादी। वाचाल। यातूनी। उ०-सब करमर्जी नोसेहि जवन समापुं० [सं०] १. वेग। २. स्कंद का एक सैनिक । पास कट जल्पफ निसिचर प्रधम । -मानस, ६ । ३२ । ३ पोहा । जल्पन'-सफा०1१ बकवाद। प्रलाप। गपगप । व्यर्ष जवन- पु.[६० पवन] दे० 'पवन'130-पीराव र को बातें। २ यहत बढ़कर एही हुई बात ।मंग। फरिपवन बुलायो।-भारतदुप, मा० १,१०५.01 अल्पन'-वि० सं० पातुनी । अल्पक [को०] 1 जवन ७- ० [सं० य पुनः प्रा०. बरण, या हि.]