पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/८०

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जवाबतलव . १०२३ जवाहर जवारिस-सबा श्री० [प्रजवारिश ] दे० 'पवारिश' । उ०- सत जवारिस सी जन पावै, जा को ज्ञान प्रगासा । -धरम०, उसका जवाब दिया गया । ३ मुकापले कौ चीज । लोड। वैसे,---इस तस्वीर के जवाब में इसके सामने भी एक तस्वीर होनी चाहिए। ४ इनकार । अस्वीकार नहीं करना । ५ नौकरी छूटने की माशा। मौकूफी । जैसे,--कल चन्हें यहाँ से जवाब हो गया। क्रि० प्र०-देना । -पाना । ---मिलना । —होना । जवावतलब- वि० [म.] जिसके सघ मे समाधानकारक उत्तर मांगा गया हो। उत्तर या जवाब मांगने लायक । जवाबतलबी-सा की० [अ० जवानतल+फ्राई (प्रत्य॰)] जबाव मांगना । उत्तर मांगना [को०] । जबाबदारी-सद्या सी० [अ० जवाब+ फा० दारी (प्रत्य०)] जवाब- देही । उत्तरदाथिरव । उ०-यदि माज भारत की किसी भाषा या साहित्य के सामने जवाबदारी का विराट् प्रश्न उपस्थित है तो वह हिंदीभाषा पौर हिंदी साहित्य के सामने है ।-शुक्न पमि०६० (जी०), पृ० १३।। जवायदावा-सबा [प० जवाब+हि. दातावह उत्तर जो वादी के निवेदन पत्र के उत्तर में प्रतिवादी लिखकर अदालत में देता है। जवायदिही-सहा श्री [भ० जवाव +फा दिहो ] दे० 'जवाब- देही' । ३०-(क) उस्मै जवावदिही करने के लिये भी रूपे चाहियेंगे। --श्रीनिवास प्र०, पृ. २४३ । (ख) मदन मोहन की भौर से लाला प्रजकिशोर जवाबदिही करते हैं। -श्रीनिवास , पृ० ३५७ । जवायदेह-वि० [अ० जवाव+ फा दिह ] जिसपर किसी बात का उत्तरदायित्व हो । जिम्मेदार। जबावदेही-समा सी० [म. जवाय+फा० दिही ] १. उत्तर देने की क्रिया । २ उत्तरदायित्व । उत्तर देने का भाव । जिम्मेदारी। पैसे,-मैं अपने कपर इतनी दही जबावदेही नहीं लेता। जवायसवाल-संज्ञा पुं० [अ० जवाब + सवाल ] १ प्रश्नोत्तर ।। २ वाद विवाद । जचाची-वि० [प्र. जधाब+ फा० ई (प्रत्य॰)] 'इवाव सबंधी। जवाब का। जिसका जवाब देना हो। जैसे, जब वी तार, जवाबी का। जमार'-सका पुं० [अ०] १ पटोस । २ मामपास का प्रदेश । जवार--सपा सी.[हि. ज्वार] एक अन । वि० दे० 'जुपार'। जवार'-सका पु० [प्र. जवाल] १ अवनति । बुरे दिन । २ जजाल । . झझट । मार। जवार-सहा पुं० [हि० जवाहर ] दे॰ 'जवाहर'। उ-सो सज्जन सूरे पूरे है। हीरे तन जवार ! तुलसी श०, पृ० २१०। जवारा-सया पु० [हि. जो ] जौ के हरे हरे प्रचुर जी दशहरे के टित यि अपने भाई के कानो परोसती हैं या धावरणी और विजया दशमी में ब्राह्मण अपने यजमानों के हाथों में देते हैं। जई। जवारिश-सका नौ [.] वह हकीमी या यूनानी मौषध जो प्रयलेह या घटनी जैसी होती है (को०। जवारी-संज्ञा श्री० [हिं० जव ] एक प्रकार का हार जिसमें जौ, छुहारे, मोती मादि मिलाकर गुंथे हुए होते हैं और जिसे कुछ जातियों में विवाह के उपरात ससुर अपनी बहू को पहनाता है। जवारी२-सप्त श्री. १. सितान, तबूरे, सारगी मादि तारवाले पाजों में लकड़ी या हड्डी भादि का छोटा टुकहा जो उन बाजों में नीचे की मोर बिना जुडा हुमा रहता है और जिसपर होकर सब तार खूटियों की ओर जाते है। यह द्रकडा सव तारों को बाजे के तल से कुछ ऊपर उठाए रहता है । घोड़ी। २ तार- पाले वाजों में पड़न का तार । क्रि० प्र०-खोलना 1-चढ़ाना-बांधना । लगाना । जवाल-समा पुं० [अ० जवाल ]१ प्रवनति । उतार । घटाव । क्रि० प्र०-पाना ।-पहुंचना । २. जजाल । भाप्त । झमट । बखेडा। उ०-छाडि के जवाल जाल महि तू गोपाल लाल तातें कहि दीनद्याल फद क्यों फंसातु है। दीन० ग्र०, पृ० १७० । मुहा०-जवाल में पहना या फंसना-प्राफत में फंसना । झमठ या बसेड़े में फंसना । जवाल में डालना=ग्राफत में फंसाना। जवाशीर-सा पुं० [फा० जायशीर ] एक प्रकार का गधाबिरोजा। विशेष-यह कुछ पीले रग का और कुछ पतला होता है। इसमें से तारपीन की गध भाती है। इसका व्यवहार प्राय भौषषों में होता है। मि० दे० गाबिरोजा'। जवास-सचा पुं० [सं० यवासक प्रा०, यवासम] एक कंटीला क्षुप जिसकी पत्तियां करौंदे की पत्तियों के समान होती हैं। उ.-पर्क जवास पात बिनु भएक। जस सुराज खल उद्यम गएक ।-मानस, ४११५ विशेप-यह क्षुप नदियों के किनारे बलुई भूमि में मापसे प्राप उगता है। बरसात के दिनों में इसकी पत्तियां गिर जाती हैं। वर्षा के बीत जाने पर यह फलता फूलता है। वैद्यक में इसको करमा, फसैला, हलका और फफ, रक्त, पित्त, खांसी, तृष्णा तथा ज्वर का नाशक मौर रक्तशोधक माना गया है। कहीं कहीं गरमी के दिनों में खस की तरह इसकी टट्टियां भी लगाते हैं। पर्या०-यास । यवासफ । थनता । बालपत्र । श्रधिककटक । दूर- मूल । समुपात । दीर्घमूल | मष । कटकी। वनदर्भ । सूक्ष्मपत्रा। जवासा-सज्ञा पुं० [म० यवासक, प्रा० जवासन] ३. 'जवास'। जवाह-माया पु० [?] [वि० जवाही] १ माँख का एक रोग जिसमे पत्तक के भीतर की भोर किगरे पर बाल जम जाते हैं। प्रवाल । परवाल | २ बैलों की प्राख का एक रोग जिसमें उनको प्राख के नीचे मास बढ़ पाता है। जवाहर--संघा सी० [हिं० जवा(= दाना) + हर] बहुत छोटी हड।