पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/८१

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जवाहर जस्ता १७१४ जवाहर-सहा पुं० [10] रल । मरिण। जंसी-वि० [सं० यशी कौतिवाला । यशवाला। यशस्वी। उ.- जवाहरखाना- पु. [4. जवाहर+फा० खानह. ] वह जाति की जान देख जोसों में, जो जसी लोग जान पर खेलें। स्थान जिसमें बहुत से रत्न पोर प्राभूषण प्रादि रहते हों। -चुमते, पू०७। गलकोप । तोचाखाना। जसीम-वि० [म.] मोटा । स्थूल । पीवर । पीन (को०] । जवाहराव-सया पुं० [म०, जवाहर का बहुवचन रूप ] बहुत से जसु -सहा श्री० [सं० यशोदा ] नद की पत्नी। यशोदा । ३०- या अनेक प्रकार के रत्न मोर मरिण मादि। जैसे,-प्रव थोरोई दूष पूत के हितही। रासति जसु जमानित नित ही। उन्होंने कपडे का काम छोडकर जवाहरात का काम शुरू -नद० ग्रं॰, पृ०२४८ । किया है। जसुरि-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] बच । जवाहिर-सपा पुं० [10] दे० 'जवाहर'। उ०—जटिल अवाहिर जसुदा, जरोदाखु-संक्षा ली. [हिं० ] दे० यशोदा। माभरन छवि के उठत तरग। लपट गहत कर लपट सी लपट जसद-सका पुं० [ देश एक प्रकार का वृक्ष । लगी सब सग ।-स० समक, पृ० ३७३ । विशेष-इस वृक्ष के रेशों से रस्से प्रादि बनते हैं। इसकी लकठी यो०-जवाहिरखाना = दे० 'जवाहरखाना'। मुलायम होती है और मेष कुर्सी मादि बनाने के काम मे जवाहिरात-समा पुं० [4.] जवाहिर का बहुवचन । दे० पाती है। इसे नसाउल मी कहते हैं। वि० दे० 'नताउल'। 'जवाहरात'। जसोमति -सहा बी.[हिं० ] दे० 'यशोदा'। जवाही-वि० [हिं० जवाह] 1. जिसकी पांच में जवाह रोग हुमा जसोबा. जसोवैल-सबी० [हिं०] दे० 'यशोदा'। 30- हो। २. बयाह रोप युक्त । पैसे, जवाही पाख । सो तुम मातु बसोवै, मोहि न जानहु पार । बह राजा बसि मबिन-वि० [सं.] वेगवान । गतिशील [को॰] । बांधा छोरी पैठि पतार।-जायसी (शब्द०)। नवी'-वि० [सं० जविन् ] वेगयुक्त । वेगवान् । जस्टिफाई-समा पुं० [अ० जस्टिफाई] कपोज किए हुए मैटर को इस जवी-संवा ०१ घोड़ा। ट। सहलियत से बैठाना या कसना कि कोई लाइन या पक्ति जवीय-वि० [सं-जवीयस् पश्यत वेगवान् । बहुत तेज । छोटी पड़ी या कोई पक्षर इधर उधर न होने पाए। जैसे,-- जवैया-वि० [हिं० जाना+ ऐया (प्रत्य॰)] जानेवाला। इस पेज का जस्टिफाई ठीक नहीं हमा है। गमनील । क्रि० प्र०करना । होना। जशन- समा • [ फा० जश्न, मि० सं० यजन ] १. धार्मिक उत्सव। जस्टिस--संज्ञा स्त्री० [.] न्याय । इन्साफ को २ किसी प्रकार का उत्सव । नाचगान । जलसा । ३ जस्टिस--सबा पुं० वह जो न्याय करने के लिये नियुक्त हो। न्याय- मानद । हर्ष। मूर्ति । विचारपति । न्यायाधीश । जैसे-जस्टिस सुदरलाल । क्रि०प्र०-फरना ! मनाना । होना। विशेष-हिंदुस्तान में हाईकोर्ट के जज जस्टिस कहलाते हैं। ४. वह नाच पोर माना जिसमे कई वेश्याएं एक साथ समिलित जस्टिस आफ दि पीस-सा [म.][ सक्षिप्त रूप जे० पी०'] हों। यह बहुधा महफिन या जलसे की समाप्ति पर होता है। । स्थानीय छोटे मैजिस्ट्रेट जो शातिरक्षा, छोटे मोटे मामली --पर्यो भाई पब मान जशन होगा न ।-भारतेंदु ग्र०, मादि का विचार करने के लिये नियुक्त किए जाते हैं। शांति- मा० १, पृ० ५२५ । रक्षक । जैसे, मानरेरी मजिस्ट्रेट । जश्न-सका पुं० [फा०] दे॰ 'जशन'। उ०-एक अपन सा वष्ठा विशेष-बबई में कितने ही प्रतिष्ठित भारतीय अस्टिस माफ जमेगा, मदिरामों और पर्सग । सेठ हमारे चुने गए हैं, दिपीस हैं। इन्हें प्रानरेरी मजिस्ट्रट ही समझना चाहिए। पबकी कौंसिल के मेंबर । -मानव, पृ० ६८ ॥ जज, मजिस्ट्रेट प्रादि भी जस्टिस प्राफ दि पीस कहलाते हैं । जस -कि० वि० [सं० यारश>जइस>जस, प्रा० बहा] पैसा । अपने महल्ले या पास पास दगा फसाद होने पर वे जस्टिस उ-बम जस सुरसा मदन बढ़ावा । तासु दुगुन कपि स्प माफ दि पोस या शातिरक्षक की हैसियत से शातिरक्षा की देसावा! -तुलसी (शब्द॰) । व्यवस्था करते हैं। जस -पहा . [सं० यश ] दे० 'पश'। जस्व-घा . [सं०पसद ] दे० 'वस्ता'। जसद-सहा पुं० [सं०] जस्ता । जस्त--सबा बी० [फा०] छनोग। कुसोच । जैसे,-शिकार का असवान-वि० [१० यशस्वान् ] यशस्वी। जिसका यश चारों माहट पाते ही वह जम्त मारने को तैयार हो जाती।- पौर फैला हो । 30.-चढ़े सूर सावत सब, रूपवान उसवान । सन्यासी, पृ०५०। -हम्मीर०, पृ०५०। जस्तई-वि० [हिं० जस्ता ] जस्ते के रंग का । खाकी। जसामत-समा श्री [40]लपाई, पौराई और मोटाई, जस्ता-सपा पुं० [सं० जसद ] फालापन लिए सफेद या बाकी रग गहराई या ऊंचाई । २ मोटापा । स्थूलता [को० । की एक धातु । उसारत-सजा श्री० [५०] १. शूरता । बहादुरी । २. घृटता । को विशेष-इस पातु में गंधक का प्रण बहुत होता है। इसका