पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/८२

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जहंदम १७२५ पवहार अनेक प्रकार के कार्यों में, विशेषतः लोहे की पादरों छके रंग दोऊ बैठे, फेसि पर साज घोदिरंग नौ महफि पर, उन्हें मोरचे से बचाने के लिये फलई करने, पैटरी में जहफि । --मारतेंदु ग्रं०, मा०२, पृ० १५०। २ उन्मत्रा विजली उत्पन्न करने तथा वरतन धनाने मादि में होता है। होना । प्रमत्त होना । उ-महान सामी पर कोर्स पमंद भारत में इसकी सुरादियां बनती हैं जिनमें रखने से पानी चंद सघि घई मोर सो पकोर नागे जहकन । -प्रेमबन, बहुत जल्दी पोर खूब ठंडा हो जाता है। इसे तावे में मिलाने मा०१,पू. २२८1 से पीतल बनता है। जर्मन सिलवर बनाने में भी इसका जहकना--कि० स० [हि माना ] १. चिड़ना । कुढना । उपयोग होता है। विशेष रासायनिक प्रक्रिया से इसका जहका-संवा सी• [सं०] एक जतु । कटास । कटार [को०) । क्षार भी बनाया जाता है, जिसे 'सफेदा' कहते हैं और जिसका जहतिया--सा [हिं० जगात (=कर) जगात उगाहनेवाला। व्यवहार प्रौषधों तथा रगों में होता है। पहले यह धातु भारत और चीन में ही मिलती थी पर बाद में बेलनियम भूमिकर पा सगान वसूल करनेवाला। उ०-साँचो सो मिड- यार कहावै । काया प्राम मसाहत करिफै जमा वाघि ठहरा। तथा पूधिया में भी इसकी बहुत सी खानें मिलीं। यूरोपवालों मन्मय को फैद अपनी में जान जहतिया लावै । माहि मारि को इसका पता बहुत हाल में लगा है। सरिहान कोष को फोता भजन मरा 1--सूर (पाद)। जहंदम -[अ० जहन्नम, हिं० जहन्नुम ] दे० 'जहन्नुम' । उ०- जहत्वार्था-संवा श्री० [सं०] एक प्रकार की लक्षणा जिसमें पद जगत जहृदम राषिया, कुठे कुल भी लाज । वन विनसें कुल या पाक्य अपने पापा को छोड़कर अभिप्रेत पर्ष को प्रकट विनसिहै, गली न राम जिहाषा-फवीर ग्र०, पृ०४७। फरता है। जैसे, मम पर गंगा माहि' यहाँ 'गगा माहि' से जल-कि० वि० [सं० पत्र, प्रा० बथ्थ, अप. जहं ] दे० 'जहाँ'। 'गंगा के बीच प्रर्य नहीं है, किंतु 'गंगा के किनारे' अर्थ है। १०-- अग गयो गिरि मिफट विकट उद्यान भयकर । पहें न इसे जहनक्षणा भी कहते है। खबरि दिसि विदसि बहुत जहें जीव खयकर।-पृ० रा०, १९-५° °, जहदुजहल्लक्षणासासी० [] एक प्रकार की सक्षरणा ! जिसमें एक या एक से अधिक देश का त्याग पोर मयत एक यो०-जहें जह-जहाँ जहाँ। जिस जिस जगह । २०-जहें देश का ग्रहण फिया जाय। वह लक्षणा जिसमें बोलनेवाले जहं चरण पड़े संतन के तहं तह बटाधार ।-फहाबत को धन्द के वाच्यार्थ से निकलनेवाले कई एक भावों में से ( शन्द०)। पहं तहँ जहाँ तहाँ । यत्र तत्र। उ०-जह कुछ का परित्याग कर केवल किसी एक का ग्रहण पमिप्रेत तहें लोगन्ह रेरा कीन्हा । भरत सोधु समही कर लीन्हा ।- होता है। जैसे, यह वही देवदत्त है. इस वाक्य से बोलनेवाले मानस, २६१६८। का अभिप्राय कियल देवदत्त से है, न कि पहले के देवदत से जहँगोरी-सका श्री.[फा० जहाँगीरी ] कमाई का एका आभूषण। या पब के देवदत्त से। इसी प्रकार छांदोग्य उपनिषद में वि० दे० 'जहाँगीरी'। माए हुए 'तत्वमिस श्वेतकेती' पर्याद है स्वेतकेतु ! वहतू जहँदना-क्रि० स० [सं० जहन, हि. जहंाना ] १ घाटा ही है', पाया है। इस वाक्य से कहनेवाले फा मभिप्राय उठाना । हानि उठाना। 10-हिंदू गूंगा गुरु कहै, मुसलिम ब्रह्म के सर्वशव भोर श्वेतकेतु * प्रल्पशस्व या ब्रह्म की पोयमगोय। कहै कबीर जहरे दोक, मोह नींद में सोय ।- सर्वव्यापिता पौर श्वेतकेतु की एकदेशिता को एक ठहराने का कबीर. ( शन्द०)।२ धोखे में माना: भ्रम में पठना। नहीं है किंतु दोनों को चेतनवा ही की पोर सप है। १०--मब हम बाना हो हारबाजी को खेल । इक बजाय जहदना-कि० म० [हिं० जहदा] १. कोचर होना । दलदल देखाय तमाशा बहरि सो तेल सफेल । हरि बाजी सुर नर हो जाना। मुनि जहंढ़े मामा घटक लाया। घर में हारि सपन भरमाया संयो०क्रि-आना। -उठाना । हृदया शान न भाया ।-कबीर (चन्द.)। २ शिथिल पड़ना । थक जाना । हाफ जाना। जहरीना-कि०म० जहन ]१ हानि उठाना । २ धोखे में जहदा-सा पुं० [7] दलदल । पहत मधिक कीचड़ । उ.- परमा। 10-सवै लोग जहंसा दयी पंधा सभे भुलान । कहा जग जहदा मे राचिया झूठे फूल की साप । नदीजे फूस कोई नहिं मानहि सब एक माह समान 1-कधीर (शन्द०)। पिनमिह रटन नाम जहाज। -कबीर (पन्द०)। जहक-सबा श्री० [हिं० झकना ] १ फुढन । चिढ़ । खीझ । २ जहंदम -संबा . [प० जहन्नुम ] दे॰ 'बहनुम'। माधेश ! उत्तेजना। जहन-० [फा० नेहन, जेहन] समझ । दिमाग । बुद्धि । पारणा। जहक'-वि० [8] छोड़ने या त्याग करनेवाला । [फोन । उ.-बादल नीचे हो भौर इनसान रुचे पर यह बात उनके सहक'-सा पु०१ समय। २ वालफ । शिशु । ३ साँप की जहन में नहीं पाती थी।-सैर कु०,१०१२। घुस [को०)। जहना-क्रि० स० [स.पहन ] १ त्यागना । छोडना । परित्याग जहकना--कि०म० [हिं० चहकना ] १. मस्त होना । प्रसन्न करना । २ नाप फरना। नए करना। 30-बहि पर पोष होना । पान से सराबोर होना। २०-धाजु कुंज मंदिर में यस्त भी कैसे। फिरि भय उतूक सुगम है। (शब्द)।