पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/८३

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भन्न PR जहरी जहन्नम-Enjo [H] ३० पहागुम' । २.अप्रिय वात या काम । वह वात या काम जो वहत नागवार जहन्नुस-संशा पुं० [१०] १. मरफ । पोषस । मालूम हो । जैसे,-हमारा यहाँ भाना उन्हें जहर मालम हमा। मुहा०-पहनुम बहुत अधिक भप्रिय या पागा (१) गष्ट या पर्वाद होना, (२) महा०-बहर करना या कर देना सांगा दूर होना । जहन्नुम जाय। हमें कोई सवष नहीं। असह्य कर देना । बहुत नागवार बना देना । जैसे,—उन्होंने हमारा खाना पीना जहर कर दिया । जहर मिलाना= किसी पियोष-इस मुहावरे का प्रयोग दुखजनित उदासीनता प्रफ्ट बात को अप्रिय कर देना । जहर में वुझाना - जिसी बात या प्र मिये होता है। जैसे,-भव यह मानता ही नहीं, सप काम को अप्रिय बनाना । जैसे,-माप जो बात कहते हैं, जाहन्म में पाय। २. पह स्थान ही बहस दुख और कष्ट हो। जहर मे बुझाफर कहते हैं। जहर लगना = वहत मप्रिय जान पटना । बहुत नागवार मालूम होना। जहन्नुमरसीय-पि. [फा०] नरक में गपाहमा । दोजखी। महाव-पहानुकरसीद करना= नष्ट करना। नामनिशान मिटा जहर-वि० घातक । मार डालनेवाला। प्राण लेनेवाला। देना । जहन्नुमरसीद होना = नष्ट या बरबाद होना । २ सहुत अधिक हानि पहुंचाने याला । जैसे,- ज्वर के रोगी बिये पी पहर है। जहन्यासी-धि० [फा०] पहन्तुम में पानवाला । नारक्षिक । जहर --समा पू. हि पौहर] दे॰ 'जोहर। उ०-ग्यारह पुत्र पठाइयारहे मजय पचायो। साजि जहर प्रत नारि धर्म जएमच-tar स्त्री॰ [अ० सहमत ] १ मापत्ति । मुसीयत । धर्म फल लायो।-राधाकृष्ण दास (शब्द०)। पाख यौ०--बाहर प्रत = पौहर का प्रत। जौहर का कार्य रूप में सुहास-बहमत उठाना = दुक भोगना । मुसीबत सहना। । परिणयन । १. झम्टा पड़ा । सरददुव । जहरगत-संज्ञा स्त्री० [हिं. जहर+गति ] नाच की एक गत। सहा--जहमत में परमासमट में फैसवा । बस में पदया। जिसमे धुघट फाढ़कर नाचा जाता है। जहर'-संज्ञा स्त्री० [फा०पह] । पद्य पदार्थ खो शरीर के जहरदार- वि० [फा० जहरदार ] जहरीला। विषाक्त । अंदर पहुंचकर पाए पेले अथवा किसी प्रग मे पहुँचदार उसे पाएरपाद-संशा पू० [फा० जहरवाद ] रक्त के विकार के कारण रोगी कर दे । पिष । पएस। उत्पन्न होनेयाला एक प्रकार का बहुत भयकर पौर विषाक्त पो०-जहरदार । पहरयाय । जहरमोहरा। फोड़ा। महा०- जहर अगसना = (१) मर्मभेदी पाठ कहना जिससे विशेष--इस फोप्रारंभ में शरीर के किसी प्रग में सूजन भौर कोई पहत दुखी हो। (२) वेषपूर्ण बास कहना। जली फटी जलन होती है और तदुपरांत उस पग मे फोड़ा होकर बढ़ने फहना । जहर फरमाया हर ना पहत अधिक नमक मिर्च पादिपालकर फिसी वाद्यपदार्थ को इसना फरमा कर पेना लगता है। इसका विष शरीर के भीतर ही भीतर शीघ्रता से शि उस पापा कठिन हो। बाय बाहर का फैलने लगता है पौर घोड़ा बड़ी कठिनता से मच्छा होता है। महत यह रोग मनुष्यों प्रादि को भी होता है। कहते हैं, इस फोडे सपथा। येसपश्य वा बहया होने कारण प साने योग्य । जहर का पूरा साकिसी धमूषित बात को देखकर कोष पच्छे हो भने पर भी रोपी मधिक दिनों तक नहीं जीता। को मन ही मन एका रस्या झोष को प्रगटबछोने देना। जहरमोहरा--सा पुं० [फा० जहरमोहरह ] काले रंग का एक बार का मसपाको पहन अधिा उपद्रव या पनिष्ट प्रकार का परपर जिसमें साँप काटने के कारण शरीर में कर सकता झामर की मीठ विष की गांठ। किसी पर चढ़े विष को खींच लेने की शक्ति होती है। घहर क्षागा-शिबी पास या बादमी के कारण ग्लानि, ईष्या, विशेष-यह पत्थर शरीर मे उस स्थान पर रखा जाता है सम्मा पारिवारदरता पर उताफ होना । जैसे,-अपने जहाँ साँप ने फाटा हो। कहते है, यह पत्थर उस स्थान इस काम परवीन्हें बाहर सा लेना चाहिए । पहर वेना = पर पापसे धाप चिपक जाता है, और जबतक सारा विष जहर पिघा पा शिवामा। जहर मार करना = पनिच्छा नहीं खीच लेता, तबतक वहाँ से नही छूटता। यह भी पापरविर घी परवस्सी साना। बै?,-कचहरी प्रयास है कि यह परपर बड़े मेढक के सिर में से निकलता है। पाने की जल्दी; किसी तरह धो रोटिया बहर यार २. हरे रंग का पक प्रकार का पत्थर जो कई तरह के विषो पर पीले। बहर मारमा-विष के प्रभार कोप सेवा है। ने स्वामा बाधांत करना। बहर में झामाबाद विशेष-बाबत ठढा होता है, इसलिये गरमी के दिनो मे पुरी, छपार, स्टार भादि हथियारों को विधात स्था। सोस इस विधर शरबत में मिलाकर पीते हैं। सुतन देश निरोप- पियारी से जर वार किया जाता है, यसो पर, जिसे 'बहरमोहरा सताई' कहते हैं, बहुत भावारपार मनुष्य के शरीर में उनका विष भरपरी स किा प्रपाष से मामी बहुत बस्ती र पारी-RINE. वर ( m.) ] १. बहरवामा दिवाल - बासुखमयो, कशष बहरी, कुछ झिव-