पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/८४

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बहरीक्षा कहान मिलती, कुछ कुछ गहरी, वह माती ज्यौं नमगंधार मेरी वीणा जिनमें बहुत छोटे छोटे घुधुरुपों फूलबारणेपिरो में एक तार। -वासि, पृ०७४ 1 २. प्रत्यधिक मादक या दिए जाते हैं । इन पटरियों को भी पामीरी । नशीली वस्तु पोनेवाला । ३ कसर रखनेवाला । साही। २ हाथ में पहनने की लास की एक प्रकार बीड़ी। ईर्ष्यालु। जहाँदीद-वि० [फा०] जिसने दुनिया को रेसारमात मतमा जहरीला-वि० [हिं० जहर+ईला (प्रत्य॰)] जिसके जहर किया हो। अनुभवी। हो । जहरदार। विषाक्त । जैसे, जहरीला फस, बहरीला जहाँदीदा-वि० [फा० जहांदीदह 1 दे. 'जहादीद। जानवर। . जहाँपनाह-सपुं० [फा०] ससार का रक्षरू । जहल' मझा पुं० [अ० जहल ] नासमझी। मुर्खता। बुद्धिहीनता विशेप-इस शब्द का प्रयोग कपल महत बड़े राजासिये उ०-गैर उसकी हफम करना ममल । नफा नई नुकसान ही किया जाता है। है जानो जहन। -दक्खिनी०, पृ० १६२। जहा--सक स्मी [०] गौरवमुंगे। जहला-सपा पुं० [म. जेल] कारागार । बदीगृह । जहाज-मका [जहाप] बहुत अधिकपड़ी भागो गत यो०-लहालखाना =जेहलखाना । बदीगृह । उ०-फैर अहल गहरे जल विशेषत समुद्र में पाती है। पोट। खाना रे हरी। --प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० ३५६ । विशेष-पाजकल के जहाजों का अधिकांस भागमो का ही जहल्लक्षणा--सशास्त्री० [सं०] दे० 'जहत्त्वार्थी' । होता है और उनके पलाने के लिये भाप बसविनों जवाबुन-क्रि० वि० [सं० यत्र ] दे० 'जहाँ"। से काम लिया जाता है। यात्रियों को से जाने, बाम डोने, देशों की रक्षा करने, लड़ने भिरने पाविबामोरे लिये जहाँ-त्रि० वि० [ स. यत्र, पा० यत्प, प्रा. जह] १. स्थान- साधारण जहाजों की लंबाई छह सौ फुट तक होती है। सूचक एक शब्द । जिस स्थान पर । जिस जगह । उ.-धन्य सो देस जहाँ सुरसरी। धन्य नारि पतिव्रत मनुसरी। यौ०-जहाज का कौवा या कागा । जाजरे. -तुलसी (शब्द०)। जहाजी कौमा।०-(क) सीतापति रघुनाबममग मेरी दौर। जैसे काग जहाज को सूझा पोर ठौर-तुलसी मुहा०-जहाँ का सही-अपने पहले के स्थान पर। जिस जगह (शब्द॰) । (ख) मेरो मन मनत कहाँ सुखा से नहि पर हो, उमी जगह पर । जहाँ का तहां रह पाना-(१) जहाज को पछी फिरि जहाज 4 पाये।-सूर.३।११७८ । दव जाना । मागे न बढ़ना! (२) कुछ कारवाई होना । जहाँ तहां - इतस्तत । इधर उधर 30-जह सह गई जहाजरान-सा पु० [फा० महाज+फा०॥ (प्राप.)1बहाव सकल तव सीता कर मन सोष। मार दिवस पौठे मोहि चलानेवाला 1 पोत का चालक (को॰] । मारिहि निसिचर पोच। -तुलसी (शब्द॰) । जहाजरानी-सका स्त्री० [म. पहाज फा. रानी (प.) पहाज पलाने का कार्य या पेथा । जहाज माना। २. सब जगह । सम स्थानों पर। उ०-रहा एक दिन अवधि कर प्रति धारत पुर लोग । जहं तह सोहि नारि नर कृश जहाजी-वि० [म. बहाज +फाई (प्रत्यारे संबंध तनु राम वियोग । --तुलसी (शब्द०)। रखनेवाला । जैसे, बहाजी वेडा। यौ०-जहाजी इत्र = एक प्रकार का निकृष्ट समोसमीर में जहाँ–समा पुं० [फा०] जहान । ससार । सोक । बनता है। जहाजो कौमा-(१)बह कौमाया कोई पक्षी विशेप---इस रूप में इस पान्द का व्यवहार केवल फविता या जो किसी जहाज के छूटने के समय उसार बैठ जाता है। नौगिक शब्दों में होता है। जैसे,—(क) जहाँ में जहाँ तक पौर बहार के बहुत दूर समुद्र में निकल जाने पर पर वह जगह पाइए । इमारत बनाते चले जाइए। (ख) जहाँगीरी। उडता है, तब चारो मोर कहीं स्थत न देसकर फिर उसी जहाँपनाह। जहाज पर मा बैठता है। साधारणत इससे ऐसे मनुष्य का यो०-जहांयारा । लहॉगर्द= ससार में धूमनेवाला । धुमक्कड । मभिप्राय मिया पाता है जिसे अपने ठहरने या कोई काम जहाँगर्दी-विश्वभ्रमण । ससारपर्यटन । जहाँगीर- करने के लिये एक के सिवा और कोई दूसरा स्थान मिलता विश्वविजयी। विश्व का शासक । महादीद । जहाँदीदा। हो। (२) बहुत बड़ा धूतं । भारी पासा पहाजी- जहाँगीरी । जहाँपनाह । ये शक जो समुद्रों में अपना जहान हर घुमते और जहाँआरा-वि० [फा०] संसार को शोभित करनेवाला (फो०] । साधारण जहाजों है यात्रियों की पुरा जहाँगीर-सहा पुं० [फा०] मुगल सम्राट अकबर पा पुष । पहाजी सुपारी - एक प्रभार की गरीबी 4 जहाँगीरी-सदा श्री• [फा०] १. हाप में पहनने का एक प्रकार का से मगमग सूनी बड़ी होती है। जड़ाक गहना। जहान-सं• [फा०] संसार। मोह । -mta मिरोष-यह कई प्रकार का होता है। साधारणत हाय में पाम है (हायत), पहनने की सोने की ये पटरियो जहाँगीरी कहलाती है, जिन- विशेप-करिता बीर यौगिक पाएetta पर मग परे होते है। कहीं कहीं पटरियों में कोदे भी परे होते पाठावि . .