पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/८५

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१७२८ जांयवती महानक जहसनया-सक्ष श्री. [ 0] गगा। जानक-सया पुं० [सं०] प्रलय । जसप्तमी-- सदा श्री० [सं०] वैशाप शुक्ला समी। कहते हैं, जहालत-सचा स्त्री० [म.] प्रज्ञान । मूसंता । मूढना। - इसी दिन जहनु ने गगा को पान किया पा। गगासामी। जहिया -कि० वि० [सं० यद+हिया] जिस समय । जिस दिन । जव। उ०--(क) फह कवीर कुछ मयसो न पहिया। जबसता-संका सी० [सं०] गगा। हरि बिरवा प्रतिपालेसि तहिया । कबीर (शत)। कवार जह-समा [ .जह ] विप। जहर [को०। (C) मुजवल विश्व जितब तुम पहिया । धरिहै विष्णु जांगल-सा [भास१. तीतर । २ मास । ३ वह मनुज सनु तहिया । —तुलसी (शब्द०)। देश जहाँ जस महत कम बरसता हो, धूप और गरमी पधिक यौ० जहिया वहिया -जिस किसी समय । परती हो, हरे वृक्षो या घास भादि का अभाव हो, करीष जहील-फि० वि० [सं० यत्र, पा० यस्प] १. जहाँ हो। जिस मदार, वेल भौर शमी मादि के पेड़ हो मौर थारहसिंधै तपा स्थान पर। उ०---सत्त खर सात ही तरंगिनी वहे जहीं। हिरन मादि पशु रहते हों। ४.ऐसे प्रदेश में पाए जानेवाले सोह रूप ईथ को प्रशेष जंतु सेवही।-फेयाव (शब्द०)। हिरन मोर बारहसिंघे घादि जंतु जिनका मास मधुर, लखा, यौ०-जही बहीं तही नहीं। 30----जहीं जही विराम लेत हलका, दीपन, रुपिकारक, शीतल और प्रमेह, काठमासा तथा राम न सही नहीं अनेक भाति के भनेक भोग माग सो बढ़।- एलोपद पादि रोगों का नामाक पहा गया है। फेशव (शब्द०)। जांगन - वि० बगल संबधी । जगली। २ ज्यों हो । २०-सीय जहीं पहिराई। रामहि माल सुहाई। जांगलि-सा ० [सं० जानल] १, सपेरा। साप पकनेवाला। दुमि देव बजाए । फूल वहीं बरसाए। -केशव (पान्द०)। मवारी। २.निषवैध । साप फा जहर उतारनेवाला। जाहीन-वि . जहीन ] १. बुद्धिमान् । समझदार। २. धारणा जांगलिया-सया पु० [सं०मालिक दे'जागति। शक्तिवाला । मेघावी। जांगली-सलो. [सं० जानली] कोछ । वाच । जहु-सक्षा पुं० [सं०] सतान । सतति । पोलाद । जांगलू---वि० [फा० उंगल ] गंधार । जगली । उगहु । जहर--सा [म. जहर या जूहुर] प्रकाश । दीप्ति | उ0- जांगी-सहा पुं० [फा० जुग? ] नगाडा --हि०)। जांगी--Hriteraram अदपि रही है भावतो सकल जगत भरपूर । घल य वा जांगल--- [सं० जाएन१ तोरई। सरोई। २ विष। ठोर की जई ह फरे जहूर ।--स० सप्तक, पृ. १७८ । ३.३० गुन'। महा०--जहर में माना-प्रकट होना। पहर मे लाना=प्रकट ६ जांगुलिमा पुं० [सं० जामुलि ] सप परहनेवाला ! गारो। फरना। सपेरा। हराल-सचा पुं० [म. जहूर था हर ] १. देखावा । म जांगलिक-साम[सं० जाजलि दे० 'जाति'। उ.---ये सच यार प्यार लख पूरा । रूपं न रेस जतरा । २ जांगुली--पृशा स्त्री॰ [सं० जागती ) सौप पा विप उतारने की विद्य। ठाठ। ३लड़का 1- बाजारू)। जांघिक--- स० [सं० जातिको १ उष्ट्र ऊँट । २. एक प्रकार का सहेज-सका पु० [अ० हेज़ मि० स० लायन] वह धन सपत्ति ओ मुग जिसे शिकारी भी कहते हैं । ३. वह जिसकी जोनिका बहुत कन्या के विवाह में पिता की मोर से वर को अथवा उसके दौडने मादि से ही चलती है। जैसे, हरकारा । घरवालों को दी जाती है । दहेज । जांवव-वि० [सं० जान्तद ] जतु संबंधी। जतुजन्य । बह-सहा पुं० [सं०] १. विष्णु । २. एक राजर्षि का नाम। जांच -सया पु० [सं० जाम्बद ] जामुन का फल या वृक्ष । "विशेष-(१) पुराणों के अनुसार अब भतीरथ गगा को लेकर प्रा रहे थे, तब जह्न ऋषि मार्ग में यक्ष कर रहे थे ! गगा के कारण जांववंत-सपा पुं० [सं० जगम्यवत् जाम्बवन्त ] दे० 'जॉबवान्। यज्ञ में विघ्न होने के भय से इन्होंने उनको पी लिया वा। उ6-(क) महाधीर गौर वचन सुनि जागवत समझाए। भगीरथ भी के बहुत प्रार्थना करने पर इन्होंने फिर गगा को बढ़ी परस्पर प्रीति रीति हम भूषण सिया दिखाए ।--सर कान से निकाल दिया था। तभी से गगा का नाम जह्वसुता, (शब्द०)।(ब) जांबत सुतासुत कहाँ मम सुता बुद्धि जान्हवी प्रादि पहा । (२) इस शब्द के साथ कन्या, सुठा, तनया वत पुरुष यह सब संमार 1-~-पुर ( द)। मादि पुचीवाचक शब्द लगाने से गंगा का अर्थ होता है। जांचव-सा (० [सं० जाम्बर १ जामुन का फत्त । जवू फल ! २. यौo-जनुजा । जनुकन्या । जनुतनया ! जनुलधमी ।। जामुन के फल से धनी हुई शगव । जामुन का बना मद्य । ३. जहनुसता। जामुन का सिरका । ४. सोना। स्वरम् । जझकन्या-पाखी [सं०] गगा। जांबवक-सधा पुं० [सं० जाम्बवक ] दे० 'जांबव' । जहजा-सपा सी० [सं० 1 गगा। 30-जो पृथ्वी के विपूल जांबवत्-सहा पुं० [पुं० आमय ] दे० 'ओबयान । सुख की माधुरी है विपाशा प्राणी सेवा जनित सुख की प्राप्ति जांववती---सक श्री. [सं० जाम्बवती ] १. जाम्यवान् की कन्या वो बह जा है। -प्रिया, पृ. २४४ । मिसके साथ श्रीकृष्ण ने विवाह किया था। उ०--(क)