पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/८६

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| जॉबवान १७३६ जाधिपा - - - - आबवती भरपी कन्या भरि मरिण राखी समुहाय ! फरि जाँ-वि० [फा.नादे० 'मा। हरि ध्यान गए हरिपुर को जहाँ योगेश्वर जाय । --सूर जानि -सचा त्री० [हिं० जामुन ० 'जामुन' । (शब्द०)। (स ) रिच्छराज यह मनि तासौं ले जाबवती को . जॉग-संभ० देश धौलों की एक जाति । उ.-जरदा, जिरही, दीन्हीं। जब प्रसेन को विलंब भई तव सभाजित सुध लीन्हीं। बांग, सुगीची ऊदे अन । कर रकवाहे कवल गिलमिली -सूर०,१०। ४१६०1 गुलगुल रजन । -सूदन (शब्द)। विशेष-भागवत में लिखा है कि श्रीकृष्ण जव स्यमतक मणि की खोज में जगल में गए थे, तब वहीं उन्होंने जांबवान् को जाँग-सहा सीहि ज जांध ] दे॰ 'जाध। परास्त करके वह मणि पाई थी और उसकी कन्या जाववती जॉराड़ा-सा पुं० [देश॰] राजामों का यश गानेवाला । माटबदी। से विवाह किया था। जाँगड़िया-समा, पुं० [देश॰] दे॰ 'जागहा। उ०-१क) जोगड़िया २. नागदमनी नागवीम। दूहा दिऐ सिंधू राग मझार। -यांकी 40, भा॰ २, पृ० । जांचवान-मचा पुं० [सं० जाम्बवान् । सुग्रीव के मत्री का नाम जो ६६ । (ख) कुण पूछे ढोलाको जांगड़िया नू जाय। | ब्रह्मा का पुत्र माना जाता है। -दाँकी प०, भा०२, पृ०१०। विशेप-इनके विषय मे यह प्रसिद्ध है कि यह रीछ थे। रावण जाँगर'- पुं० [हिं० जान या जांध>जांग+फा गर (प्रत्य॰)] के साथ युद्ध करने मे त्रेता युग में इन्होने रामचंद्र को बहुत १शरीर । पेह । २ हाय पैर । ३ पौरुष । पल । शक्ति । सहायता दी थी। भागवत में लिखा है कि द्वापर युग में इसी की फन्या जाववती के साथ श्रीकृष्ण ने विवाह किया था। यो०-जागरचोर-जो काम करने से जी चुराता हो। भालसी। होलहराम । जांगरतोड= मेहनत करनेवाला । मेहनती। जैसे, यह भी कहा जाता है कि सतयुग में इन्होने वामन भगवान् की परिक्रमा की थी। इस कपा का उल्लेख रामचरितमानस जांगरतोस भादमी, जाँगरतोड़ काम । ( किविधा कांड, दोहा २८) मे भी है, यपा-बलि बांधत महा०–जाँगर टूटना, जाँगर पकना-शरीर शिथिल होना। प्रभु बाउ सो तनु बरनि न जाय । उभय घरी महें दीन्ही पौरुष या श्रमशक्ति का जवाब देना। सात प्रदच्छिन धाय। जाँगर--सा पुं० [ देश० ] खाली डंठल सिसमें से मन भाड़ लिया जाबवि-सा पुं० [सं० जाम्ववि ] बज। गया हो। उ०--तुलसी गिलोक की समृद्धि सौग संपदा पकेसि जाववी-संक्षा स्त्री० [सं० जाम्बवी] १ जांबवान् की पुत्री। पाकि राखी रासि जाँगर जहान भो। --तुलसी (शब्द०)। जाववती । २ नागदमनी। जॉगरा--सक्षा पुं० [देश॰] दे० 'जागड़ा'। उ०-फर जांगरे पालाप जाववोष्ठ-सा पुं० [ म० जाम्बवोष्ठ ] जायोवष्ठ नामक छोटा घिरद फलाप सूप प्रताप । प्रतिशय मिनाजी चढ़े बाजी करत पस्त्र जिससे प्राचीन काल मे फोटे मादि जलाए जाते हैं। परि र ताप-रघुराज (भाब्द०)। जांवीर-सका पं० [ सै० जाम्बीर ] जबीरी नीबू । अंभोरी नीबू । जॉगलू-वि० हिं. जंगल ] दे. 'पागलू। जावील-सशः पुं० [सं० जाम्बील ] १ पैर के घुटनेवाली गोल जाँगी--महा पुं० [फा० जंग ] नगाया। -(हिं०)। हडी। २ जबीरी नीबू (को०) । जाँघ-सहा सी० [सं० जाप (=पिंडली) घुटने मौर कमर के जांवक-वि० [सं० जाम्बुक] जबुक सबषी। शृगाल संबधी (को०)। दो का प्रग। कर। जांवमाली--सद्धा पु० [सं० जाम्बुमालिन् ] प्रहस्त नामक राक्षस के जाँघrt-सका [ देश०] १. क ।- (पूरबी)। २. कुएँ से पुत्र का नाम जिसे अशोक वाटिका उजाडते समय हनुमान ने । ऊपर गदारी रखने का खभा । ३ लकडी या लोहे का यह मार डाला था। पुरा जिसमे गहारी पहनाई हुई होती है। जांचुवत्-संहा पुं० [ स. जाम्बुवत् ] दे० 'जाववान् । जाँघिया-सशः पुं० [हिं० जाध+ इया ( प्रत्य०J१ लंगोट की जांबुवान--सज्ञा पुं० [सं० जाम्युषान् ] दे० 'जाचवान् । तरह पहनावे का भांघ को ढकने का एक प्रकार का सिला हमा जायूसता पुं० [म. जम्बू] दे० 'जबू' (दीप)130-जाबू मौर यस्त्र । काया। पलाक्ष है शाल्मली कुश धारि । क्रौंच सक्ला द्वीप पट विशेष-यह पायजामे की तरह का कमर में पहनने का एफ पुष्कर सात विधारि--(शब्द॰) । प्रकार का सिला हुमा पहनावा है जिसकी पुस्त मोहरियाँ जायूनद-सक्षा पुं० [स. जाम्वूनद] १ चतरा । २ सोना।३ स्वर्ण घुटनों के ऊपर कमर और पैर के जोड तक ही रहती है। भूषण (को०)। इसमें पूरी रान दिखाई पड़ती है। इसे प्रायः पहलवान भौर जांबोष्ठ-सझा . [ #० जाम्बोष्ठ । प्राचीन काल का एक प्रकार नट आदि लंगोटे के ऊपर पहनते हैं। का छोटा मस्त्र जिससे फोहे प्रादि जलाए जाते थे। २. मालखम की एक प्रकार की कसरत । जाँ'-वि., समा स्त्री० [सं० जा ] दे॰ 'जा" । विशेष--इसमें बेंत को पैर के अंगूठे और दूसरी गमी से जॉर-सी० [फा०] प्राण । जान । पकड़कर पिहली में लपेटते हुए दुसरी पिडली पर भी सपेटते