पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/९१

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जातिकर्म जातीफल साध्य सम । (६) प्राप्ति सम। (१०) प्राप्ति सम । विशेष-इसके मतगत ब्राह्मणों को पीड़ा देना, मदिरा पीना (११) प्रसंग सम । (१२) प्रतिष्टांत सम । (१०) अथवा अखाद्य पदार्थ खाना, कपट व्यवहार करना भोर अनुत्पत्ति सम । (१४ ) संशय सम । (१५) प्रकरण सम । पुरुषमैथुन मादि कई निंदनीय काम हैं। यह पाप यदि अनजान (१६) हेतु सम । (१७) पर्यापत्तिसम । (१) पविशेष में हो तो पापी को प्राजापत्य 'प्रायश्चित्त और यदि जानकारी सम। (१६) सपपत्ति सम । (२०) उपलब्धि सम । __ में हो तो सांतपन प्रायश्चित्त करना चाहिए। (२१) अनुपसन्धि सम । (२२) नित्य सम। (२३) सर जातिभ्रष्ट-वि० [सं०] जातिच्युत । जातिवहिष्कृत [को०)। भनित्य सम, भौर (२४ ) कार्य सम। जातिमान् - वि० [सं० जातिमत् ] सत्कुलोत्पन्न । कुलीन [को०। ५. वर्ण । ६. कुल । वंश । ७ गोत्र। जन्म । ६.मामलकी। जातिलक्षण-सका बी० [सं०] जातिसूचक भेद । जातीय छोटा पावला । १० सामान्य । साधारण। प्राम। ११. विशेषता [फो०] । चमेली। १२. जाविषी । १३. बायफल । जातीफल । १४ वह जातिवाचक-सञ्चा पुं० [सं०] १ व्याकरण में सज्ञा का एक भेद । पद्य जिसके चरणों में मात्रामों का नियम हो। मात्रिक छद। २.जाति को बतानेवाला शब्द [को०)। जातिकर्म-संशा पुं० [सं०] दे० 'जातकर्म । जातिविद्वेष-सहा पुं० [सं०] जातियों का पारस्परिक वैर 1 जातिगत जातिकोश, जातिकोष-सक्षा पुं० [सं०] जायफल । बर। [को०] जातिकोशी, जातिकोषी-सक्षा स्त्री० [सं०] दावित्री । जातिवैर-सक्षा पुं० [सं०] दे० 'जातिधर'। जातिचरित्र--मंबा ० [सं०] कौटिल्य के अनुसार बातीय रहन सहन जातिवैरी--सहा पु० [सं०] स्वाभाविक शत्रु (फो०] । तथा प्रया। जातिव्यवसाय-सचा पुं० [सं०] जातिगत पेशा । जातीय धपा या जातिच्युत-वि० [सं०] पासि से गिरा या निकाला हपा। जो काम । जैसे, सोनारी, लोहारी मादि । जाति से अलग या पाहर हो। जातिशस्य-संज्ञा पुं० [सं०] जायफल । जातित्व--सम पुं० [सं०] जाति का भाव । जातीयता । जातिसंकर-सका पुं० [सं० जातिसंकर ] दो जातियों का मिश्रण । जातिधर्म-सज्ञा पुं० [सं०] १ जाति पा वर्ण का धर्म । २ प्राह्मण, वर्णसंकरता । दोगलापन । क्षत्रिय और वैश्य मादि का मलग अलग कर्तव्य। जिस सालिसार-सबा पुं० [सं०] जायफल । जाति में मनुष्य उत्पन्न हुमा हो, उसका विशेष माचार या कर्तव्य। जातिस्मर-वि० [सं०] जिसे पपने पूर्वजन्म का इतिवृत्त याद हो । जैसे,-आतिस्मर शिशु जातिस्मर शुक । जात्तिस्मर मुनि । विशेष-प्राचीन काल में अभियोगों का निर्णय करते हए जाति- जातिसृत-सद्या पुं० [सं०] जायफल । जातीफल । धर्म का प्रादर किया जाता था। जातिस्वभाव-सज्ञा पुं० [सं०] १ एक प्रकार का प्रलकार जिसमें जातिपन्न-सज्ञा पुं० [सं०] [ मी० जातिपत्री] जावित्री। प्राकृति और गुण का वर्णन किया जाता है। २ जातिगत जातिपर्ण-सधा पुं० [सं०] जावित्री। स्वभाव, प्रकृति या लक्षण । जातिपाति-सहा स्त्री० [सं० जाति र दि० पाति>सं० पङ्क्ति] जाति जानिटी जातिहीन-वि० [सं०] १ नीची जाति का। निम्न जाति का । या वर्ण प्रादि । 10-जाति पाति उन सम हम नाही। हम उ.--जातिहीन मघ जन्म महि मुक्त कोन्हि अस नारि । निर्गुण सब गुण उन पाही।-सूर (शब्द॰) । महामद मन सुख चहसि ऐसे प्रभुहिं बिसारि ।-मानस, जातिफल-सञ्चा पुं० [सं०] जायफल । ३१३० । २. जातिभ्रष्ट । जातिच्युत ( को.)। जातिबैर-सपा पुं० [सं० जातिवेर ] स्वाभाविक पात्रुता । जातो-सहा वी० [सं०] १ चमेली । २ मामलकी । छोटा पावला। सहज वैर। ३ मालती । ४ जायफल । विशेष-महाभारत में जातिवैर पांच प्रकार का माना गया है,- जाती -सहा श्री० [सं० जाति ] दे० 'जाति'। उ०--(क) सादर (१) स्त्रीकृत । [२) वास्तुज । ( ३ ) वाग्ज । बोले सकल पराती। विष्णु बिरचि देव सब जाती ।—मानस, (४.) सापल मौर (५) पपराषष। १९( स्व ) दीन होम मति पाती। मानस, ६११५ । जातिवाक्षण-सहा पुं० [सं०] यह ब्राह्मण जिसका केवल जन्म किसी ग्राहाए के घर में हुमा हो और जिसने तपस्या या वेद अध्ययन जातो-सचा पुं० [देश॰] हाथी। हस्ती (डि०)। मादि न किया हो। जाती-वि० [अ० जाती ] १. व्यक्तिगत । २. पपना । निज का । जातिभ्रंश-सझा पुं० [ सं० ] जातिच्युत होने का भाव । जातीकोश-सक्षा पुं० [सं०] जायफल । जातिभ्रष्टता [को०] । जातीकोष-सक्षा पुं० [सं०] दे० 'जातिकोश'। जातिभ्रशकर-सज्ञा पुं॰ [सं०] मनु के अनुसार नौ प्रकार के पापों जातीपत्री-संक० [सं०] जावित्री । जायपत्री। में से एक प्रकार का पाप जिसका करनेवाला जाति पौर जातीपूग-सबा पु० (से०) जायफल । पाश्रम मादि से प्रष्ट हो जाता है। जातोफल-संज्ञा पुं॰ [सं०] जायफल । सं० पङ्क्ति] जाति जातिहा जातिहीन मघ भूहि बिर