पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जादूबयान जान' जादूषयान-वि० [फा०] जिसकी वाणी वशीभूत करनेवाली हो। जिसकी वाणी में जादू जैसी शक्ति हो [को०] । जादूबयानी-सक्षा खौ० [फा०] जादू जैसी शक्ति या प्रभाववाली वाणी। 7०-आपकी जदूवयानी तो इस दम अपना काम __कर गई।-फिसाना०, भा० १, पृ०५। जादो -सक्षा पुं० [सं० यादव ] दे० 'नादौ' । उ०-दुरजोधन को गर्व घटायो जादो कुल नास करी। कबीर श०, पृष्ठ ४० । जादौ -सहा पुं० [सं० यादव ] १ यदुवशी। यदुवश मे उत्पन्न ।, उ.--सुमति विचारहिं परिहरहि दल समनह सग्राम । सफल गए तन बिनु भए साखी जादौ फाम ।- तुलसी (शब्द०)। २. नीच जाति ! नीच कुलोत्पन्न । जादौराइ-सज्ञा पुं० [सं० यादवराज ] श्रीकृष्णचन्द्र । उ०- गई मारन पूतना कुच कालकूट लगाइ। मातु की गति दई ताहि कृपाल जादौराइ ।-तुलसी (शब्द॰) । जान'---सहा स्त्री० [सं० ज्ञान]१ ज्ञान । जानकारी। जैसे,- हमारी जान मे तो कोई ऐसा भादमी नहीं है। २ समझ । मनुमान । खयाल । उ०-मेरे जान इन्हहि बोलिवे कारन चतुर जनक ठयो ठाट हतोरी।-तुलसी (शब्द०)। यौ०-जान पहचान = परिचय । एक दुसरे से जानकारी। जैसे,—(क) हमारी उनकी जान पहचान नहीं है। (ख) उनसे तुमसे जान पहचान होगी। मुहाल-जान मे= जानकारी मे। जहां तक कोई जानता है वहाँ तक। विशेष- इस शब्द का प्रयोग समास मे या 'मैं' विभक्ति के साथ ही होता है। इसके लिंग के विषय में भी मतभेद है। पुलिंग और स्त्रीलिंग दोनों में प्रयोग प्राप्त होते है। जान--वि० सुजान । जानकार । ज्ञानवान । चतुर । उ०-(फ) जानकी जीधन जान न जान्यो तो जान कहावत जान्यो कहा है। -तुलसी ग्र०, पृ० २०७१ (ख) प्रेम समुद्र रूप रस गहिरे कैसे लागै घाट | बेकायो है जान कहावत जानपनो कि कहा परी वाट । -हरिदास (शब्द)। यौ०--जानपन । जानपनी। जानपनो 1 जानराय । जानसिरो- मनि - ज्ञानवानों में श्रेष्ठ । उ०—(क) तुन्ह परिपूरन काम जान सिरोमनि भाव प्रिय । जनगुन गाहक राम दोपदलन करुनायतन 1-मानस, २३२। (ख) प्रभु को देखो एक सुभाह। प्रति गमीर सदार उदधि हरि जान सिरोमनि राह। -सूर०, १। । जान-सहा पुं० [सं० जानु ] दे० 'जानु। जान-सचा पुं० [स. यान] दे० 'यान'। जान"- सद्या स्त्री॰ [फा० ] १ प्राण। जीव । प्राणवायु । दम । जैसे,-जान है तो जहान है। मुहा०--जान पाना - जी ठिकाने होना। चित्त में धैर्य होना । चित्त स्थिर होना । प्राति होना । जान का गाहक (१) प्राए लेने की इच्छा रखनेवाला । मार डालने का यत्न करने- वाला। शत्रु (२) बहुत तग करनेवाला पोछा । न छोडने- वाला । जान का रोग = ऐसा दुखदायी व्यक्ति या पस्तु जो पीछा न छोडे। सब दिन कष्ट देनेवाला । जान का लामू-३० जान का गाहक'। जान के लाले पटना % प्राण वचना कठिन देखाई देना । जी पर मा बनना । (अपनी) जान को जान न मिझना-प्राण जाने की परवाह न करना । प्रत्यत अधिक कष्ट या परिषम सहना । ( दूसरे को ) जान की जान न समझना=किसी को प्रत्पत कष्ट या दुख देना । किसी में साथ निष्ठुर व्यवहार करना । (किसी की जान को रोना- किसी के कारण फष्ट पाकर उसका स्मरण करते हुए दुखी होना । किसी द्वारा पहुँचाए हुए कष्ट को याद करके दुखी होम । जेप्ते,-तुमने उसकी जीविका ली, वह अबतक तुम्हारी जान को रोता है। जान पाना = (१) तंग करना । बार वार कर दिक करना । (२) किसी बात के लिये बार पार कहना । जैसे,-चलते हैं, क्यो जान साते हो। जान सोना-प्राण देना । मरना । जान चुराना = दे० 'जी 'घुराना' जान छुड़ाना = (१) प्राण बचाना । (२) किसी मझट से छुटकारा करना । किसी मनिय या कपदायक वस्तु को दूर करना । सकट टालना । छुटकारा करना। निस्तार करना। जैसे,-(क) जब काम करने का समय पाता है तब लोग जान छुडाकर भागते हैं। (स) इसे कुछ देकर अपनी जान छुटायो। जान छूटना=किसी भभट या पापत्ति से छुटकारा मिलना। किसी पप्रिय या कष्टदायफ वस्तु का दूर होना । निस्तार होना । जैसे,-विना कुछ दिए जान नहीं घटेगी। जान जाना-प्राण निकलना । मृत्यु होना । (फिसी पर) जान जाना=किसी पर प्रत्यत अधिक प्रेम होना। जान जोखों - प्राण का भय । प्राणहानि को माशंका । जीवन का सफट । प्राण जाने का हर । जान डालना = शक्ति का संचार फरना । उ०-हम जान में जान डाल देठे ये।-घुमते. (दो दो०), पृ० २ 1 जान तोड़कर-२० 'जी तोड़कर जान दूभर होना= जीवन कटना कठिन जान पडना। भारी मालूम होना। दुप पहने के कारण जीने की इच्छा न रह जाना । जान देना=प्राण त्याग करना । मरना ( क्सिी पर) जान देना=(१)किसी के किसी फर्म के कारण प्राण त्याग करना। किसी के किसी काम से कष्ट या दुखी होकर मरना । (२) किसी पर प्राण न्योछावर करना । किसी को प्राए से बढ़कर पाहना। बहुत ही अधिक प्रेम करना । (किसी के लिये ) जान देना=किसी को बहुत अधिक चाहना । (किसी वस्तु के खिये या पोधे) जान देना -क्सिी वस्तु के लिये प्रत्यंत अधिक ध्यग्र होना । किसी वस्तु की प्राप्ति या रक्षा के लिये धेचैन होना । जैसे,—वह एक एक पैसे के लिये जान देता है, उसका कोई कुछ नही दवा समाता । जान निकालना - (१) प्राण निकलना। मरना । (२) भय के मारे प्रारण सूखना । डर लगना। अत्यत फष्ट होना । घोर पीडा होना । जान पडना = दे० 'जान पाना' । जान पर भा बनना= (१) प्राण का भय होना । प्राण बचना कठिन दिखाई देना । (२) मापत्ति माना। चित्त सकट में पडना । (३) हैरानी होना । नाक में दम होना ! गहरी व्यग्रता होना । जान पर खेलना=प्राणों को भय मे डालना। जान को जोखो मे पालना।