पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/९५

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जाननिहारा १७४० जानाँ किसी का सहायसाथं दिया हुमा धन या किया हमा उपकार कहावत जानपनो की कहा परी बाट ।-हरिदास स्मरण रम्बना । किसी के किए हुए उपकार के लिये कुतज्ञ (भन्दा )। होना । किसी का एहसानमद होना । जैसे,--क्यो मुझे कोई दो जानपनी--सामा स्त्री० [हिं० जान+पन (प्रत्य॰)] बुद्धिमानी। बात कहे, मैं रुिसी का कुछ जानता हूँ। (. ) तो मैं जानकारी । चतुराई । होशियारी। उ०-(क) जानपनी पार्ने = (१)( ) तो मैं समहूं कि वष्ठा भारी काम किया की गुमान घडो तुलसी के विचार गॅवार महा है ।-~-तुलसी या बड़ी अनहोनी बात हो गई । जैसे,-क) यदि तुम इसना ( शन्द०)।( ख ) जानी है जानपनी हरि की प्रब कूद जामो तो मैं जानें। (स) यदि वह दो दिन में इसे कर वधिएगी फछु मोठ कला की ---तुलसी (शब्द०)। (ग) लाए तो जानूं। (२) ") तो मैं समझं कि बात ठीक है। दमदान दया नहि जानपनी । जन्ता पर वचन ताठि घनी। जैसे,—सुना तो है कि वे मानेवाले हैं, पर आ जायें तो जानें। --तुपसी (शब्द०)। विशेष--इस मुहावरे के प्रयोग द्वारा यह अर्थ सूचित किया जानबाज-सपुं० [फा० जान+बाज़ ] बल्लमटेर। वालटियर। जाता है कि कोई काम बहुत कठिन है या किसी बात के होने जान पर खेल जानेवाला ( लश० )। का निश्चय कम है। इसका प्रयोग 'मैं' और 'हम' दोनों के जानमनि..-सहा पुं० हिं० जान+सं० मरिण] शानियों में श्रेष्ठ। साथ होता है। बड़ा ज्ञानी पुरुष । बहुत बुद्धिमान मनुष्य । उ-रूप सील ( .) तो मैं नहीं जानता = ( ) तो मैं जिम्मेदार नहीं। सिंधु गुन सिंघु मधु दीन को, दयानिधान जानमनि घोर माह तो मेरा दोष नही । जैसे,--उसपर चढ़ते तो हो, पर यदि वोल को।-तुलसी पं०, पृ० २०० । गिर पड़ोगे तो मैं नहीं जानता। मैं क्या जानू ? तुम क्या जानमाज-सहा सी० [फा० जानमाज ] एक पतला कालीन या जानो? वह क्या जाने ? = मैं, नही जानता, तुम नही जानते, पासन जिसपर मुसलमान नमाज पढ़ने हैं। नमाज पाने यह नही जानता । (बहुवचन में भी यह मुहावरा पोला जाता का फर्श। है) । जाने अनजाने - जान बूझकर या बिना जाने बूझे । २ सूचना पाना । खघर पाना या रखना । अवगत होना। जानराय-सशा पु० [हिं० जान + राय ] जानकारों में श्रेष्ठ । प्रत्यत ज्ञानी पुरुष । बहा बुद्धिमान मनुष्य । सुजान । 3.--जागिए पता पाना या रखना। जैसे,--हमे यह जानकर घडी प्रसन्नता हुई कि वे मानेयामे हैं। ३ मनुमान करना। सोचना। कृपानिधान जानराय रामचन्द्र जनती कहैं वार चार भोर भयो जैसे,~-मैं जानता हूँ कि वे कल तक मा जाएंगे। प्यारे।-तुलसी (शब्द०)। जाननिहाराकु---वि० [हिं० जाननि+हार (प्रत्या1 जाननेवाला। जानवर'-महापुं० [फा०]१ प्राणी। जीव । जीवधारी। २. पाश । समझनेवाला । उ०-(क) और तुम्हहिं को जाननिहारा । जतु । हैवान । -मानस, २११२७ । (ख) भूत भविष को जाननिहारा । मुहा०--जानवर लगना=जानवरों का आना जाना या दिखाई कहतु है बन शुभ गवन की बारा । -नद० प्र०, पृ० १५६ । पड़ना। उ०-और वहाँ जगलों में दरिद जानवर लगते हैं जानपसिषु-वि० [सं० ज्ञान+पति ] ज्ञानियों में प्रधान । • पौर भादमियों को खा जाते हैं।-सैर कु०, पृ० १६ जानकारों में श्रेष्ठ । उ-जानपति दानपति हाड़ा हिंदुवान जानवर'-वि० मूर्ख । अहमक । बड़। पति दिल्लीपति दलपति बलायषपति है। ---मति० प्र०, जानशीन-सा पुं० [फा० जानशीन] १. वह जो दूसरे की स्वीकृति पु. ३६। के अनुसार उसके स्थान, पद या अधिकार पर हो । २ वह जो जनपद-सा मुं० [म.] १ जनपद सबंधी वस्तु । २ जनपद का व्ययस्थानुसार दूसरे के पद या सपत्ति प्रादि का अधिकारी हो। निवासी। जन । लोक । मनुष्य । ३ देश । ४. कर । माल उत्तराधिकारी। गुजारी ! ५ मिताक्षरा के अनुसार लेख्य ( दस्तावेज ) के दो। जानहार -वि० [हिं० जाना+हार ( प्रत्य)] १. जानेवाला। भदों में से एक २. खो जानेवाला । हाथ से निकल जानेवाला । ३ मरनेवाला । विशेष-इस लेख्य ( दस्तावेज मे ) लेख प्रजावर्ग के परस्पर नष्ट होनेवाला। बहार के सवध में होता है। यह दो प्रकार का होता है-एक जानहार..सधा पुं० [हिं० जानना+द्वार ( प्रत्य० ) १ वह जी अपने हाथ से लिखा हुमा, दूसरा पूसरे के हाथ से लिखा हुमा । जाननेवाला हो। जाननेवाला या समझनेवाला व्यक्ति । दे. अपने हाथ से लिखे हुए में साक्षी की भावश्यकता नहीं होती थी। 'जाननिहार'। जानपदी-सशास्त्री० [सं०] १ वृत्ति २ एक मप्सरा । जानहार-वि० जाननेवाला। विशेष-इस पप्सग को इद्र ने शरद्वान् ऋषि का तप भग करने जान -प्रय [ हिं• जानना ] मानो । जैसे । उ०-धनि राजा के लिये भेजा था । शरद्वान् ऋषि ने मोहित होकर जो शुक्र- पस सभा संवारी । जानहु फूलि रही पुनदारी !--जायमी पात किया, उससे कृप पौर कृपीय फी उत्पत्ति हुई । महाभारत पादिपर्व में यह पाख्यान वरिणत है। जानी-मया ( [फा०] प्रिय । माशूक । प्यारा। उ०—दिल का जानपना-सज [हिं० जान+पन ( प्रत्य०) ] जानकारी। हजरा साफ कर जाना के माने के लिये ।-तु सी. मभिज्ञता । बतुराई । होशियारी | उ.--बेकायो है जान सा०, पृ० ४।