पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बलद २३९८ बला पलद-संशा पुं० [सं० ] (१) बैल । (२) जीवक नामक वृक्ष । (३) ताकि रहत छिन और तिय, लेत और को नाउँ । ए अलि गृह्याग्नि का एक भेद जिसमे पौष्टिक कर्म किया जाता है।। ऐसे बलम की विविध भाँति बलि जाउँ ।-पनाकर । बलदा-संज्ञा स्त्री० [सं०] अश्वगंधा । बलय*-संज्ञा पुं० ० "वलय"। बलदाक-संहा पुं० [सं० बलदेव वा वल+हिं. दाऊ ] बलदेव ।। बलराम-संज्ञा पुं० [सं०] कृष्णचंद्र के बड़े भाई जो रोहिणी से बलराम । उ०--(क) गये नगर देखन को मोहन बलदाऊ उत्पन्न हुए थे। कृष्ण के साथ ये गोकुल में रहे और उनके के साथ । पुर कुलबधू झरोखन झाँकत निरखि निरखि साथ ही मथुरा में आए। ये स्वभाव के थने उद्दर थे और मुसुकात ।--सूर (ख) ले हर मूसर असर है कहूँ आयो मध पिया करते थे। इनका अब हल और मूसल था । तहाँ बनिकै बलदाऊ। पनाकर । सूत पौराणिक की सृष्टता पर क्रुद्ध होकर इन्होंने उन्हें मार बलदेष-संज्ञा पुं० [सं०] कृष्णचन्द्र के बड़े भाई जो रोहिणी के डाला था। पुत्र थे। | बलधंड*-वि० [सं० बलवंतः ] बली। पराक्रमवाला । उ०- बलना-क्रि० अ० [सं० वर्षण वा ज्वलन ] जलना । लपट फेंक । आगर इक लोह जटित लीनों बलवंड दुहूँ करनि असुर हयो कर जलना । दहकना। भयो मानस पिडा-सूर । बलनेह-संज्ञा पुं० [हिं० बल+नेह ] एक संकर राग जो रामकली, बलवंत-वि० [सं० बलवंतः ] बलवान् । बली। श्याम, पूर्वी, सुवरी, गुणकली और गांधार से मिलकर | बलवा-संशा पुं० [फा०] (1) दंगा। हुलक । खलबली । विप्लव । बना है। (२) बगावत । विद्रोह ।। बलपांडुर-संज्ञा पुं० [सं० ] कुद का पौधा। क्रि० प्र०-मचाना।-करना ।—होना । बलपुच्छक-संज्ञा पुं० [सं० ] कौा। बलवाई-संज्ञा पुं० [फा० बलवा+ ई (प्रत्य॰)] (1) बलवा करने- बलपृष्टक-संज्ञा पुं० [सं०] रोहू मछली। वाला । विद्रोही । बागी । (२) उपद्रवी । फसादी। बलबलाना-क्रि० अ० [ अनु० ] (१) ऊँट का बोलना । (२) बलवान्-वि० [सं०] [स्त्री० बलवती ] (१) बलिष्ठ । मज़बूत । व्यर्थ बकना । (३) निरर्थक शब्द उच्चारण करना। ताकतवर । जिसके शरीर में दल हो। (२) सामर्थ्यवान् । बलबलाहट-संशा स्त्री० [हिं० बलबलाना ] (1) ऊँट की बोली।। शक्तिमान् । (३) हद । मजवृत्त । (२) व्यर्थ बकवाद । (३) उमंग । (४) अहंकार । घमंद। बलविकर्णिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] दुर्गा का एक नाम । बलबीज-संज्ञा पुं० [सं० बला+बीज ] कंघी नाम के पौधे का | बलवीर-संशा पुं० दे० "बलबीर"। बीज । | बलव्यसन-संक्षा पु० [सं०] सेना को हराना वा तितर बितर बलबीर*-संज्ञा पुं० [हिं० बल बलराम+वीर=माई ] बलराम करना । के भाई श्रीकृष्ण । उ०-(क) छठ छ रागिनी गाय बलव्यूह-संशा पुं० [सं०] एक प्रकार की समाधि । रिझावत अति नागर बलबीर । खेलत फाग संग गोपिन बलशाली-वि० [सं० बलशालिन् ] [ स्त्री० बलशालिनी ] बलवान् । के गोपवंद की भीर । -सूर । (ख) एरी! बलबीर के बली। अहीरन की भीरन में सिमिटि समीरन अबीर को अटा | बलशील-वि० [सं०] बली । शक्तिवाला । उ.-अंगद मयंद भयो।-पभाकर। नलनील बलसील महाबालधी फिरावै मुख नाना गति लेत बलभ-संज्ञा पुं० [सं०] एक विषैला कीया। हैं।-तुलसी। बलभद्र-संज्ञा पुं० [सं०] (1) बलदेवजी का एक नाम । (२) बलसुम-वि० [हिं० बाल+सम ] बलुआ। जिसमें बालू हो। लोध का पेड़ । (३) नील गाय। (४) भागवत के अनु बलसूदन-संज्ञा पुं० [सं०] (1) इंद्र। (२) विष्णु । सार एक पर्वत का नाम । बलहन-संज्ञा पुं० [सं०] (1) इंद्र। (२) श्लेष्मा । का। बलभद्रा-संज्ञा स्त्री० [सं० ] (१) कुमारी । (२) त्रायमाण नाम | बलांगक-संज्ञा पुं० [सं० ] वसंतकाल । वसंत ऋतु । की लता । (३) नील गाय । (४) जंगली वाय। बला-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) बरियारा नामक क्षुप । दे. बलभी-संज्ञा स्त्री० [सं० वलभि ] वह कोठरी जो मकान के सब "बरियारा"। (२) वैद्यक के अनुसार पौधों को एक जाति से ऊपरवाली छत पर बनी हो। ऊपर का खंड। चौबारा । का नाम जिसके अंतर्गत चार पौधे माने जाते है।-(1) उ.--कंचन कलित नग लालन बलित सीध, द्वारिका हालित बला वा बरियारा, (२) महाबला या सहदेवी (सह- जाकी दिपित अपार है। ता ऊपर बलभी, विचिन्न अति देइया ), (३) अतिबला या कैंगनी और (५) नागबला ऊँची, जासो निपटे नजीक सुरपति को भगार है। दास । वागगेरन । ये चारों पौधे पौष्टिक माने जाते हैं और इनके बलम-संज्ञा पुं० [सं० बल्लभ ] प्रियतम । पति । नायक । उ०- बीज, जब आदि का प्रयोग औषध में होता है। (३) एक का नाम।