पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/११५

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बहनापा २४०८ बहलो रघुराज । *(१७) धारण करना । रम्बना । उ०-छोनी क्रि० अ० (७) बाहर की ओर होना(२) अलग होना। में न छड़यो छप्यो छोनिप को छौना छोटो छोनिपछपन - जुदा होना। (३) नाव का किनारे से हट कर मसधार वाको विरद बहुत ही।-तुलसी। (१८) उठना । चलना। की ओर जाना। उ.-बहइ न हाथ दहइ रिम छाती।-तुलसी। बहरी-संशा स्त्री० [अ०] एक शिकारी चिड़िया जिसका रूप रंग यहनापा-संक्षा पु० [हिं० बहिन+आपा (प्रत्य॰)] भगिनी की और स्वभाव बाज़ का सा होता है, पर आकार छोटा आत्मीयता । बहिन का संबंध । होता है। क्रि० प्र०-जोड़ना। बहरू-संज्ञा पुं० [ देश० ] मध्य प्रदेश, बरार और मदरास में होने- बहनी संज्ञा स्त्री० [ देश ] कोल्हू में से रस लेकर रखनेवाली वाला मझोले आकार का एक वेब जिसकी लकवी सुदर ठिलिया। चमकदार और मजबूत होती है। हल, पाटे आदि खेती

  • संज्ञा स्त्री० [सं० वद्धि | अग्नि । आग । उ.-तुम काह के सामान, गाबियाँ तथा तसवीरों के चौकठे इस लकड़ी के

उडुराज अमृत मय तजि सुभाउ बरषत कत बहनी।-सूर। : बनते हैं। बहनु*-संशा पुं० [सं० बहन | सवारी। उ०-देत संपदा समेत . बहरूप-संशा पुं० [हिं० बहु+रूप ] एक जाति जो बैलों का व्यव- श्रीनिकेत जाचकनि भवन विभूत भाग वृषभ बहनु साय करती है और गोरखपुर, चंपारन आदि पूरबी जिलों है।-तुलसी। में बसती है। बहनोई-संज्ञा पुं० [सं० भगिनीपति, प्रा० बहिणीवह ] बहिन का पति। बहरो*+-वि० दे. "बहरा"। बहनौता-संज्ञा पु० सं० भगिनीपुत्र, प्रा. बहिणा उत्त ] बहिन बहल-संज्ञा स्त्री० [सं० बहन ] एक प्रकार की छतरीदार वा का पुन । मंडपदार गादी जिसे बैल खींचते हैं। रथ के आकार की बहनौरा-संज्ञा पुं० [हिं० बहिन+औरा (प्रत्य॰) (सं० आलय) ] बैलगाडी । वडखदिया। रब्बा। बहिन की ससुराल।

बहलना-क्रि० अ० [हिं० बहलाना ] (1) जिस बात से जी ऊबा

बहरा-वि० [सं० बधिर, प्रा. बहिर ] [ ब्री. बहरी] जो कान से या दुखी हो उसकी ओर से ध्यान हट कर दूसरी ओर सुन न सके । न सुननेवाला । जिग्ने श्रवणशक्ति न हो। जाना । संझट या दुःख की बात भूलना और चित्त का मुहा०-बहरा पत्थर, या बज्र पहरा--बहुत अधिक बहरा । जिसे दूसरी ओर लगना । जैसे,-दो चार महीने बाहर जाकर कुछ भी न सुनाई पड़ना हो।। रहो, जी बहल जायगा। बहराना-क्रि० स० [हिं० भुराना (भ का उच्चारण बह के रूप में हो संयो० क्रि०-जाना। गया ) वा फा० बहाल ] (1) जिस बात मे जी ऊबा या दुखी (२) मनोरंजन होना। चिस प्रसन्न होना । जैसे,—योबी हो उसकी ओर से ध्यान हटा कर दूसरी ओर ले जाना। देर बगीचे में जाने से जी बहल जाता है। ऐसी बात कहना या करना जिग्नये दुःख की बात भूल जाय बहलाना-क्रि० स० [फा० बहाल ग्वस्थ या भुलाना ] (१) जिम और चित्त प्रसन्न हो जाय । उ०—मैं पठवत अपने लरिका बात से जी ऊबा या दुखी हो उसकी ओर से ध्यान हटा को आवै मन बहराह।-सूर । (२) यहकाना । भुलाना। कर दूसरी ओर ले जाना । झंझट या दुःख की बात फुसलाना । उ०—(क) उरहन देन खालि जे आई। भुलवा कर चित्त दूसरी ओर ले जाना । (२) मनोरंजन तिन्है जशोदा दियो बहराई।—सूर । (ख) क्यों बहरावत करना। चित्त प्रसन्न करना। जैसे,-थोड़ी देर जी बहलाने के झट मोहि और बढ़ावत योग । अब भारत में नाहि वे. लिये बगीचे चला जाता हूँ। (३) भुलावा देना । बातों रहे बीर जे लोग। हरिश्चन्द्र । में लगाना । बहकाना । किसी के साथ ऐसा करना जिसमें क्रि० स० दे० "बहरियाना" । वह सावधान न रह जाय । जैसे,—उसे बहला कर हम कुछ यहरिया-संशा पुं० [हिं० बाहर+इया (प्रत्य०)] बल्लभ संप्र रूपया निकाल लाए हैं। दाय के मंदिरों के छोटे कर्मचारी जो प्राय: मंदिर के बाहर : बहलाव-संज्ञा पुं० [हिं० बहलना ] चित्त का किसी ओर कुछ ही रहते हैं। काल के लिये लग जाना । मनोरंजन । प्रसन्नता । वि० बाहर का । थाहर-संबंधी। यौ०-मनबहलाव। बहरियाना-क्रि० स० [हि बाहर+झ्याना (प्रत्य॰)] (१) । बहलिया -संज्ञा पुं० दे० "बहेलिया"। बाहर की ओर करना । निकालना । (२) अलग करना ।। बहली-संज्ञा स्त्री० [सं० वहन ] एक प्रकार की छतरीदार या जुदा करना । (३) नाव को किनारे से हटा कर मझधार . परदेदार गादी जिसे बैल खींचते हैं। रथं के आकार की की ओर ले जाना । ( मल्लाह)। बैलगाड़ी।